-विश्व निमोनिया दिवस पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग ने लोगों को किया जागरूक

सेहत टाइम्स
लखनऊ। भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर निमोनिया के लगभग 26 लाख मामले सामने आते हैं, जिनमें से लगभग 8,00,000 मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। अनुमान है कि पांच साल से कम उम्र के लगभग 43 लाख बच्चे, ठोस ईंधन के साथ खाना पकाने के कारण होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के हानिकारक स्तर के संपर्क में हैं, जो निमोनिया के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है, जो 40 प्रतिशत मामलों में जिम्मेदार है।
यह जानकारी विश्व निमोनिया दिवस के अवसर पर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में दी गयी। निमोनिया की रोकथाम, उपचार और शीघ्र निदान की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रेस वार्ता में प्रो0 (डॉ.) राजेन्द्र प्रसाद, पूर्व निदेशक, VPCI नई दिल्ली, पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग से प्रोफेसर (डॉ.) आर.ए.एस.कुशवाहा, बाल रोग विभाग से प्रोफेसर (डॉ.) राजेश यादव और माइक्रोबायोलाॅजी विभाग से प्रो0 (डॉ.) प्रशांत गुप्ता ने निमोनिया से जुड़े पहलुओं में महत्वपूर्ण जानकारियां दीं।
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि विभाग में इस दिवस पर एक चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग से डॉ. सचिन कुमार, डॉ. मोहम्मद आरिफ, डा0 अनुराग त्रिपाठी और डॉ. यश जगधारी भी उपस्थित थे। चर्चा में निमोनिया प्रबंधन में केजीएमयू की पहल, टीकाकरण के महत्व और विशेष रूप से बच्चों और उच्च जोखिम वाले समूहों में बीमारी के प्रभाव को कम करने की रणनीतियों पर जोर दिया गया। इस आयोजन ने नैदानिक उत्कृष्टता, सामुदायिक आउटरीच और सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से निमोनिया से निपटने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
पत्रकार वार्ता में बताया गया कि इस वर्ष, 2025, विश्व निमोनिया दिवस का विषय Child Survival है। यह विषय निमोनिया को बच्चों में मृत्यु का प्रमुख संक्रामक कारण मानता है और बच्चों को अच्छे पोषण, स्वच्छ हवा, टीकाकरण, और समय पर निदान और उपचार, जिसमें एंटीबायोटिक्स और ऑक्सीजन शामिल हैं, प्रदान करके उनकी सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। भारतीय राज्यों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया और मृत्यु का अनुमान लगाने वाले एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में भारत के 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि गंभीर निमोनिया के लगभग 24 प्रतिशत और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से होने वाली मृत्यु का लगभग 26 प्रतिशत का योगदान है।
पत्रकार वार्ता में बताया गया कि विश्व निमोनिया दिवस 2025 एक ऐसी बीमारी को रोकने के लिए कार्रवाई का तत्काल आह्वान है जो बच्चों और कमजोर आबादी में मृत्यु का एक प्रमुख कारण बनी हुई है। टीकाकरण, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल पहुंच, पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने और वैश्विक भागीदारी में निरंतर प्रयासों के माध्यम से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है। जैसा कि हम इस दिन को मना रहे हैं, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि निमोनिया सिर्फ एक चिकित्सा मुद्दा नहीं है यह एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है कि कोई भी सांस की लड़ाई में पीछे न रह जाए।
बताया गया कि निमोनिया को रोकने में टीके महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों में निमोनिया के मामलों को कम करने के लिए न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) और हेमोफिलस इन्फ्लुएंजी, टाइप बी वैक्सीन एवं खसरा (Measles) का टीका सबसे प्रभावी प्रयासों में से एक हैं। इन्फ्लूएंजा का टीका, फ्लू से संबंधित निमोनिया को रोकने में भी मदद करता है, विशेष रूप से बुजुर्गों और पुरानी बीमारियों वाले व्यक्तियों मे जो कि निमोनिया के लिए बहुत प्रवत्त होते हैं।
बताया गया कि विगत वर्षाें में, विश्व निमोनिया दिवस का दायरा सभी आयु समूहों को शामिल करने के लिए विस्तारित हुआ क्योंकि यह निमोनिया वयस्कों और बुजुर्गों को भी बड़ी संख्या में प्रभावित करता है। यह दिन निमोनिया से होने वाली मौतों को कम करने, स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार और टीकों, उपचारों और निदान में नवाचार को प्रोत्साहित करने की वैश्विक प्रतिबद्धता की याद दिलाता है।
निमोनिया के लक्षणः-
– लगातार खांसी रहना
– बुखार और ठंड लगना
– सांस लेने में तकलीफ
– सीने में दर्द
– थकान और कमजोरी
– भ्रम
– भूख न लगना
– निम्न रक्त चाप व ऑक्सीजन स्तर कम होना।

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