-ओपन सर्जरी में जीवन बचने का प्रतिशत 30, खर्च भी दोगुना
-लोहिया संस्थान के न्यूरो सर्जन डॉ दीपक कुमार ने की जटिल सर्जरी

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ.दीपक कुमार ने ब्रेन स्ट्रोक के बाद बेहोश हो चुकी 46 वर्षीय महिला की जांघ में चीरा लगाकर दिमाग की खून की नस में फ्लो डाइवर्टर प्रत्यारोपित कर महिला की जान बचाई है। प्रदेश में पहली बार इस तकनीक का उपयोग किया गया है, अन्यथा दिमाग की गहराई में बेसीलर ट्रंक एंन्यूरिज्म फटने वाले मरीजों की ओपन सर्जरी होती है जो कि जटिल होने के साथ ही इससे मृत्युदर करीब 70 प्रतिशत है।
सफल सर्जरी करने वाले डॉ.दीपक कुमार ने बताया कि यह महिला 10 दिन पूर्व आई थी, सीटी एंजियोग्राफी कराने से मूल कारण का पता चला था। दिमाग में बहुत गहरे व पीछे एन्यूरिज्म बेसीलर ट्रंक में एक खून की गांठ होती है, जिसकी लोकेशन दिमाग की गहराई में होती है, जो कि फट गई थी। जिससे उक्त नस में खून का प्रवाह रुक गया था, भविष्य में खून के अभाव में नस सूख जाती। इसका इलाज अत्यंत कठिन होता है, ओपन सर्जरी में सफलता दर मात्र 30 प्रतिशत है। इसके लिए उन्होंने फ्लो डाइवर्टर (पाइप लाइन शिल्ड डिवाइस) प्रत्यारोपित करने का निर्णय लिया और 12 फरवरी को एनेस्थीसिया के डॉ.दीपक मालवीय एवं डॉ.मनोज त्रिपाठी के सहयोग से डिवाइस प्रत्यारोपित कर दी।
डिवाइस प्रत्यारोपित करने के लिए जांघ में चीरा लगाकर डिवाइस को दिमाग में बेसीलर ट्रंक तक पहुंचा कर प्रत्यारोपित कर दिया, जिसके बाद रक्त का प्रवाह शुरू होने से महिला में चेतना आ गई और ठीक होने लगी। मरीज को चार दिन में छुटटी दे दी गई है। इस तकनीक में कुल 7 लाख का खर्च आया है, जिसमें से प्रदेश सरकार ने 4.5 लाख का सहयोग किया है, जबकि ओपन सर्जरी में 15 लाख का खर्च आता है और जोखिम 70 प्रतिशत होता है।

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