‘उत्तर प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की दशा और दिशा’ पर बेबाक राय
![](http://sehattimes.com/wp-content/uploads/2019/04/dr.rb-singh-300x300.jpg)
लखनऊ। आजादी के समय को आधार बनाया जाये तो उत्तर प्रदेश में दो मेडिकल कॉलेज से शुरू हुआ सफर 72 साल बाद आज 45 मेडिकल कॉलेज तक पहुंच चुका है, इनमें सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों के चिकित्सा शिक्षा संस्थान शामिल हैं। लेकिन अगर गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा की बात करें तो वह अभी भी काफी दूर है। इसकी वजह सरकारी नीतियों में खामी और जो बनी भी हैं उनका पूर्णरूप से पालन न होना है। हालात ये हैं कि इस समय बहुत से संस्थानों में Ghost फैकल्टी, Ghost मरीजों के सहारे चिकित्सा शिक्षा की ‘दुकानें’ चल रही हैं।
यह कहना है पीएमएस सेवाओं से रिटायर्ड एडी प्रशासन व उपाध्यक्ष आईएमए डॉ आरबी सिंह का। डॉ सिंह ने अपने यह विचार पिछले दिनों आईएमए के तत्वावधान में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एवं सतत् चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम के मौके पर ‘उत्तर प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की दशा और दिशा’ विषय पर बोलते हुए रखे। उन्होंने कहा कि पहले प्रदेश में केजीएमसी (वर्तमान में केजीएमयू) और आगरा मेडिकल कॉलेज, केवल दो मेडिकल कॉलेज थे। जबकि वर्तमान में प्रदेश में 45 मेडिकल कॉलेज हैं। मगर जिस उददेश्य से मेडिकल कॉउसिंल ने निजी व सरकारी मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दी थी, वो पूरा नहीं हुआ है, क्योंकि चिकित्सा शिक्षा अपेक्षाकृत गुणवत्ता युक्त नहीं है।
उन्होंने कहा कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मानकों के अनुसार जिस जिले में मेडिकल कॉलेज है उसे पूरे जिले के मरीजों के उपचार के लिए कवर करना चाहिये। मेडिकल कॉलेजों को आउटरीच सेल बनाकर अपनी सेवायें दूरदराज के इलाकों में पहुंचानी चाहिये, डॉक्टरी डिग्री लेने की कतार में खड़े छात्रों को एमबीबीएस के बाद इंटर्नशिप के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में जाना चाहिये जैसे कई मानक हैं, इन मानकों को कितने मेडिकल कॉलेज पूरा कर रहे हैं, यह जांच का विषय हो सकता है। इसका नतीजा यह होता है चिकित्सक बनने के लिए जिस कसौटी पर एस डॉक्टर को कसना चाहिये, उस पर वह नहीं कसा जाता है, ऐसे में उसका रुझान ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा का कैसे बन सकेगा?
डॉ सिंह ने कहा कि बात अगर Ghost फैकल्टी, Ghost मरीजों की करें तो यह और भी ज्यादा खराब स्थिति है कि छात्र डॉक्टर तो बन जाता है लेकिन व्यावहारिकता से दूर एक कागजी डॉक्टर बनकर रह जाता है, ऐसे चिकित्सक कितनी सफल चिकित्सा कर सकेंगे, यह समझना मुश्किल नहीं है। उन्होंने जनहित में आईएमए और पीएमएस से अपील की है कि ऐसे चिकित्सकों को चिन्हित करे जो पीएमएस में नौकरी कर रहे हैं और दिखाये हुए हैं कि मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी हैं, ऐसे लोगों की असलियत उजागर करें।
इसी तरह एक और मसला है कि विदेशों में पढ़ाई करने वाले चिकित्सकों को भारत में प्रैक्टिस करने की इजाजत देना कहां तक उचित है? क्योंकि उस डॉक्टर की पढ़ाई विदेशी पर्यावरण में हुई है और भारत का पर्यावरण उससे अलग है, ऐसे में यहां के पर्यावरण का जो असर मरीज पर पड़ता है, उसके मद्देनजर विदेश में पढ़े डॉक्टर इलाज कैसे कर सकेंगे?
उन्होंने कहा कि मेरा यह सुझाव है कि यह सारी कवायद व्यक्ति को स्वस्थ रखने की है, और अगर इन सब कारणों से व्यक्ति स्वस्थ नहीं रहता है तो हमारा समाज स्वस्थ नहीं रहेगा, समाज स्वस्थ नहीं रहेगा तो राष्ट्र स्वस्थ कैसे रह सकेगा, इस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा।
![](http://sehattimes.com/wp-content/uploads/2023/01/Dr.Virendra-Yadav-and-Dr.Saraswati-Patel-1.jpg)