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गुर्दा प्रत्‍यारोपण में अग्रणी राज्‍यों के दिग्गज जुटेंगे संजय गांधी पीजीआई में

-नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांटेशन विभाग 13 -14 मई को मना रहा स्‍थापना दिवस समारोह

प्रो.नारायण प्रसाद

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई का नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांटेशन विभाग 13 और 14 मई को अपना स्थापना दिवस मना रहा है। इस अवसर पर विभाग ‘मृत दाता प्रत्यारोपण कार्यक्रम’ पर एक (CME) क्रमिक चिकित्सा शिक्षा का आयोजन कर रहा है। दो दिन चलने वाले इस कार्यक्रम के लिए विभाग ने तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र से इस क्षेत्र के दिग्गजों को आमंत्रित किया है। इस कार्यक्रम में यूनाइटेड किंगडम से विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। 

यह जानकारी देते हुए नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.नारायण प्रसाद ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत मे विशेषज्ञ अपने-अपने राज्यों में मृतक दाता कार्यक्रम चलाने में सफलता और चुनौतियों के अपने अनुभवों को साझा करेंगे। इसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारकों के साथ इन मुद्दों पर एक पैनल चर्चा होगी।

उन्‍होंने बताया कि दूसरे दिन 14 मई को अंगदान पर विभिन्न कार्यशालाएं होंगी जिसमें ग्रीफ काउं‍सिलिंग (grief counseling), ब्रेन-डेड की पहचान और घोषणा, अंगों का  संरक्षण, रखरखाव, आवंटन और अंततः अंगों का प्रत्यारोपण विषय शामिल हैं।  इस सम्मेलन में सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों से विभिन्न विशेषज्ञ जैसे-नेफ्रोलॉजिस्ट, यूरोलॉजिस्ट, ट्रांसप्लांट सर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरो-सर्जन, लिवर ट्रांसप्लांट-सर्जन, गैस्ट्रो-सर्जन, कार्डियोलॉजिस्ट, कार्डियक-सर्जन, ट्रॉमा-सर्जन और एनेस्थेसियोलॉजिस्ट आदि भाग लेंगे। इस सीएमई में प्रत्यारोपण समन्वयक, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य सभी हितधारक भी प्रतिभागिता करेंगें। 

उन्‍होंने बताया कि यह सम्मेलन उत्तर प्रदेश राज्य में एक सफल मृतक अंग दान के लिए रोडमैप विकसित करने के लिए सभी हित धारकों को मंच प्रदान करेगा। ज्ञात हो संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में पहला गुर्दा प्रत्यारोपण 1989 में मृतक दाता गुर्दा प्रत्यारोपण से हुआ था, लेकिन तब से केवल 43 मृतक किडनी प्रत्यारोपण किए गए हैं। केजीएमयू, पीजीआई और अपोलो मेडिक्स अस्पताल ने कुछ मृतक डोनर लिवर ट्रांसप्लांट किए हैं। हृदय, फेफड़े और अग्न्याशय का कोई प्रत्यारोपण नहीं किया गया है।

प्रो प्रसाद ने कहा कि अब यहां कई निजी अस्पताल हैं जिनके पास अंग प्रत्यारोपण के लिए बुनियादी ढांचा है। उत्तर प्रदेश में कई मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें विशेषज्ञ सर्जन और चिकित्सक डॉक्टर हैं जो ब्रेन डेथ डिक्लेरेशन, ऑर्गन रिट्रीवल और अंत में अंग प्रत्यारोपण को बढ़ावा दे सकते हैं। हमें सार्वजनिक और निजी अस्पतालों का एक नेटवर्क विकसित करने की आवश्यकता है जो NOTTO नीति के आधार पर अंगों को परस्पर साझा कर सकें और उत्तर प्रदेश राज्य में मृतक दाता प्रत्यारोपण कार्यक्रम को बढ़ा सकें।

डॉ प्रसाद का कहना है कि अंतिम चरण की गुर्दे की बीमारी, अंतिम-चरण के यकृत एवं हृदय रोग आदि के लिए सबसे अच्छा उपचार अंग प्रत्यारोपण है। गुर्दा, यकृत और हृदय प्रत्यारोपण की सफलता पहले से सर्वविदित है। अन्य अंग जैसे अग्न्याशय, फेफड़े और छोटी आंत के प्रत्यारोपण की दिशा मे भी निरंतर प्रयास हो रहे हैं।

उन्‍होंने कहा है कि भारत में गुर्दा और यकृत प्रत्यारोपण अक्सर जीवित दाताओं के साथ किए जाते हैं। पश्चिमी दुनिया में, 80-90% प्रत्यारोपण मृत दाताओं से होते हैं, लेकिन हमारे परिदृश्य में, यह 5% से कम है। तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और गुजरात जैसे कुछ भारतीय राज्यों में मृतक अंगदान कार्यक्रम सफल हो रहे हैं, जबकि कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड आदि पिछड़ रहे हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में लगभग 45,000 क्रोनिक किडनी रोग वाले लोगों को गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। लगभग इसी संख्या में रोगियों को लिवर की भी आवश्यकता होती है और कई को हृदय प्रत्यारोपण की भी आवश्यकता होती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में मृतक दाता कार्यक्रम अपनी प्रारंभिक अवस्था में है।

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