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इनहेलर से दवा लेने का अर्थ है, अस्‍थमा पर सीधा वार और ‘नो साइड इफेक्‍ट’

-विश्‍व अस्‍थमा दिवस पर डॉ बीपी सिंह व डॉ संजय निरंजन की पत्रकार वार्ता  

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। अस्‍थमा की दवा के लिए गोलियों की अपेक्षा इनहेलर का इस्‍तेमाल हर तरह से सर्वोत्‍तम है, क्‍योंकि जहां इनहेलर से दवा लेने से यह सीधे फेफड़ों में जाती है, जहां इसकी जरूरत है, वहीं ओरल गोलियां लेने में 90 प्रतिशत दवा शरीर के अन्‍य अंगों  में पहुंचती है, काम की जगह यानी फेफड़ों तक सिर्फ 10 फीसदी दवा ही पहुंच पाती है, शरीर के अन्‍य भागों में पहुंचने वाली यह 90 फीसदी दवा ही नुकसान पहुंचाती है, जिसे साइड इफेक्‍ट का नाम दिया गया है। इसे लेकर अनेक भ्रांतियां हैं, इन भ्रांतियों को दूर किये जाने की जरूरत है।

यह महत्‍वपूर्ण जानकारी आज 2 मई विश्‍व अस्‍थमा दिवस के मौके पर यहां गोमती नगर स्थित एक होटल में डॉ बीपी सिंह (रेस्पिरेटरी, क्रिटिकल केयर एंड स्‍पेशलिस्‍ट फॉर स्‍लीप मेडिसिन) ने पत्रकार वार्ता में दी।

उन्होंने कहा कि‍ दुनियाभर में अस्थमा से 262 मिलियन लोग प्रभावित हैं इसे देखते हुए इस वर्ष विश्व दमा दिवस की थीम ‘अस्थमा केयर फॉर ऑल’ रखा गया है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष की थीम भारत में दमा की वर्तमान स्थिति को मजबूती से प्रस्तुत करती है। उन्होंने बताया कि इस रोग से देश में तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित किए जाने की आशंका है और यह और भी दुखद है कि इनमें से ज्यादातर की पहचान नहीं हो पाती है या फिर उन्हें उपचार नहीं मिल पाता। यही नहीं भारत में दमा से होने वाली मौतों का अनुपात दुनिया भर में होने वाली मौतों का 42% है। डॉ बी पी सिंह ने कहा कि इसकी बड़ी वजह इस रोग के प्रति अपर्याप्त जागरूकता और इनहेलर थेरेपी को लेकर व्याप्त गलत धारणा है।

उन्होंने बताया कि दमा एक व्यापक असंचारी रोग है जो सभी उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित करता है। इस रोग में सांस की नली संकरी हो जाती है या उसमें सूजन आ जाती है और वहां अत्यधिक म्यूकस निकलता है जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है। उन्होंने बताया कि जेनेटिक बीमारियों में गिनी जाने वाली दमा बीमारी में धूल, धुआं, गर्दा और महक से दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा इस रोग में दवा का लगातार लेना बहुत आवश्यक है अन्यथा अस्थमा अनियंत्रित हो जाता है उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से मरीज उनके पास आते हैं और बताते हैं कि 20 साल पहले से उन्हें दमा की शिकायत है और उस समय उन्हें डॉक्टर ने जिन दवाओं की सलाह दी थी, उन्हीं दवाओं को वह अब तक ले रहे हैं लेकिन फायदा कुछ नहीं होता है। डॉ बी पी सिंह ने बताया कि यहां सबसे बड़ी गलती यह है कि मरीज की दवा कब कितनी कम या ज्यादा करनी है इसका निर्धारण चिकित्सक उसकी स्थिति देखकर करता है लेकिन जब चिकित्सक से मिले बगैर अपने मन से मरीज एक ही डोज लेता रहता है तो ऐसी स्थितियां आ जाती हैं।

उन्होंने बताया कि कई बार ऐसा होता है कि नई नई दवाएं नई-नई जानकारियां आती हैं जिनका उपयोग करके मरीज के रोग में और ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन जब मरीज डॉक्टर तक पहुंचता ही नहीं है तो उसे उस लाभ से भी वंचित होना पड़ता है। उन्होंने कहा कि मरीज जिस चिकित्सक से अस्थमा का इलाज कर रहे हैं वह उनसे अन्य बातों के साथ यह परचे पर अवश्य लिखवा लें कि यदि किसी प्रकार की इमरजेंसी की स्थिति बनती है तो उस समय उन्हें क्या करना होगा, जिससे जरूरत पड़ने पर मरीज की जान को खतरा न हो।

उन्होंने दमा के रोगियों को सलाह दी कि वे स्मोकिंग बिल्कुल ना करें अगर पहले से करते हैं तो छोड़ दें, साथ ही घुटन भरे वातावरण में ना रहें, उन्होंने कहा कि इनहेलर दवा लेना सर्वोत्तम है और यह भी जरूरी  है कि इनहेलर का किस प्रकार सही ढंग से इस्‍तेमाल करें, इसके बारे में अपने चिकित्सक से अवश्य ठीक से समझ लेना चाहिए।

पत्रकार वार्ता में उपस्थित डॉ एस निरंजन (सलाहकार नियोनाटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ) ने कहा कि‍ बच्चों में इसके होने की संभावना बहुत होती है और अभी तक कोई ऐसी जांच नहीं बनी है जिससे बच्चों में दमा होने का पता लगाया जा सके। उन्होंने कहा कि यदि बच्चे को जल्दी जल्दी खांसी हो और ठीक हो जाये, रात में खांसी ज्यादा आये, ऐसे में यह भी देखना चाहिये कि बच्‍चे को किन प्रकार की दवाओं से लाभ पहुंचता है, इन सब स्थितियों का आकलन कर चिकित्सक यह पता लगा लेता है कि बच्चे को दमा की शिकायत है अथवा नहीं। उन्होंने कहा कि बड़ों की तो स्पायरोमेट्री और अन्य प्रकार से जांच करना ज्यादा आसान है बच्चे की इस प्रकार की जांच 5 वर्ष की आयु के बाद ही हो पाती है।

उन्होंने कहा कि जिन बच्चों के दमा है उनके घर में कोई भी व्यक्ति स्मोकिंग न करें क्योंकि स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक पैसिव स्मोकिंग होती है। यानी जो व्यक्ति धूम्रपान करता है और उसके धूम्रपान करने से जो धुआं निकलता है, वह दूसरों के लिए नुकसानदायक है। उन्होंने कहा कि अपने घर में यह ध्यान रखें कि कॉकरोच न हों, डॉ निरंजन ने कहा कि इनहेलर से दवा लेना अच्छा है। उन्होंने यह भी कहा कि दमा वाले बच्चों को अभिभावक खेलने से ना रोकें उनके साथ इनहेलर रखें जिसका जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल हो सके। उन्होंने कहा कि आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों में 20 फीसदी खिलाड़ी दमा के शिकार होते हैं लेकिन नियमित इनहेलर के सेवन से अपने दमा को नियंत्रित रखते हैं। 

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