-मृत्यु के 10वें प्रमुख कारण आत्महत्या पर महत्वपूर्ण जानकारी दी सावनी गुप्ता ने
-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस-जागरूकता सप्ताह (एपीसोड 5)
![](http://sehattimes.com/wp-content/uploads/2023/10/Sawani-Gupta-1-2.jpg)
सेहत टाइम्स
लखनऊ। अक्सर हम लोगों को आत्महत्या करने के समाचार मिलते रहते हैं, सभी प्राणियों में श्रेष्ठ मानव जीवन को आत्महत्या करके आखिर चुटकियों में लोग कैसे समाप्त कर सकते हैं। उन्हें यह क्यों समझ नहीं आता है कि जिस शरीर को वह समाप्त करने जा रहे हैं उस पर अकेले उनका ही हक नहीं है, उनको जन्म देने वाले माता-पिता पर क्या बीतेगी जिन्होंने दिन-रात एक करके उन्हें पाला है। उन्हें यह क्यों नहीं समझ में आता है कि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है, बल्कि यह समस्या को बढ़ाने वाला कदम है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह की प्रस्तुतियों के क्रम में ‘सेहत टाइम्स’ ने कपूरथला, अलीगंज स्थित फेदर्स-सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ की फाउंडर, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता से विशेष वार्ता की।
सावनी गुप्ता ने बताया कि आत्महत्या जहां मरने वाले के जीवन को छोटा बना देती है वहीं उसके प्रियजन, परिजन, दोस्तों को तबाह देती है। जो लोग आत्महत्या के प्रयास से बच जाते हैं वे गंभीर विकलांगता या अन्य चोटों का शिकार हो सकते हैं। आत्महत्या से मरने वाले लोगों के बच्चों के बाद में स्वयं आत्महत्या से मरने की संभावना अधिक होती है। ऐसे में चरम परिणामों के साथ, कोई भी व्यक्ति जीवन के स्थान पर मृत्यु को चुनने का गंभीर निर्णय आखिर कैसे ले सकता है ? उन्होंने कहा कि आत्महत्या करने के जोखिम वाले लोगों को पहचानना आवश्यक है।
सावनी बताती हैं कि आत्महत्या देशभर में मृत्यु का 10वां प्रमुख कारण है, और यह किशोरों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने अगस्त, 2023 में भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों पर डेटा जारी किया है, आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 2022 में देश में कुल 1,64,033 आत्महत्याएं हुईं, जो कुल संख्या के मामले में पिछले वर्ष की तुलना में 7.2% ज्यादा हैं। इसमें सभी लिंग, उम्र और नस्ल के लोगों को आत्महत्या का खतरा है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या का प्रयास करने की संभावना अधिक होती है, लेकिन पुरुषों में आत्महत्या से मरने की संभावना अधिक होती है।
सावनी बताती हैं कि आत्महत्या का जोखिम उन लोगों में भी अधिक होता है, जिन्हें सिज़ोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर सहित कुछ मानसिक विकार होते हैं। आत्महत्या से मरने वाले आधे से अधिक लोग अवसाद से प्रभावित होते हैं। अन्य जोखिम कारकों में पूर्व आत्महत्या का प्रयास, आत्महत्या का पारिवारिक इतिहास, मादक द्रव्यों का सेवन, या घर में बंदूकें या अन्य आग्नेयास्त्र होना शामिल हैं।
आत्महत्या की प्रवृत्ति के लक्षण:
1. परिवार और दोस्तों से दूरी बनाना: किसी भी सामाजिक दायरे से अलग रहने का मन बनाना
2. बार-बार बोझ होने के विचार आना: हर वक्त ये मन में रहना है कि बोझ है सब और किसी रूप में कुछ कर नहीं सकते।
3. सामान देना: संकेत दिखाते हैं जैसे अपना सामान बांटना, संपत्ति और सभी प्रकार की चीजें देना ताकि उनके जाने के बाद कोई मुद्दा न हो
4. शराब नशीले पदार्थों की मात्रा और आवृत्ति बढ़ जाती है
5. निराशा और लाचारी: बार-बार यह ख्याल आना कि जिंदगी में कुछ बचा नहीं है, हम किसी के काम नहीं आएंगे, मुझे कोई कुछ समझता नहीं है, इन्हीं सब छोटी-छोटी बातों को सोचकर रोने लगते हैं।
इस तरह से रोका जा सकता है :
1. औषधियाँ
2. थेरेपी: आपका थेरेपिस्ट समुचित तरीके से हिस्ट्री समझ के चरण दर चरण आपके लक्षणों को समझेगा फिर आपके विचारों, भावनाओं, व्यवहार को नियंत्रित करना सिखाता है। यदि स्थिति गंभीर है तो स्थिति को प्रबंधित करने के लिए समय पर परामर्श और दवाओं का उपयोग करें।
3. उचित आहार
4. जीवनशैली में बदलाव
5. नियमित व्यायाम
6. अच्छी नींद का पैटर्न
7. नियमित सामाजिक संपर्क रखना
8. कार्य जीवन संतुलन बनाए रखना होगा
9. समर्थन के रूप में शराब और नशीली दवाओं से बचें
10. सहायता समूहों से जुड़ सकते हैं
![](http://sehattimes.com/wp-content/uploads/2023/01/Dr.Virendra-Yadav-and-Dr.Saraswati-Patel-1.jpg)