मस्तिष्क की तरंगों का आकलन कर ढूंढ़ा जा रहा डिप्रेशन का इलाज
मीठा, नमकीन, कड़वा स्वाद पहचानने की दिशा में मिले हैं सकारात्मक परिणाम
केजीएमयू के वृद्धावस्था मानसिक रोग विभाग में चल रही है रिसर्च

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विदयालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ श्रीकान्त श्रीवास्तव की टीम अवसाद यानी डिप्रेशन के समय के विचारों को मशीन की सहायता से पढ़कर इस दिशा में उपचार के लिए रिसर्च कर रही है, उम्मीद जतायी जा रही है कि इसके सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे। भारत में इस तरह की यह पहली रिसर्च है।
केजीएमयू द्वारा दी गयी जानकारी में बताया गया है कि शोधकर्ता विभागाध्यक्ष, वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ विभाग के हेड डॉ श्रीकांत श्रीवास्तव और उनके साथ टीम में अनामिका श्रीवास्तव एवं डॉ सौम्यजीत सान्याल शमिल हैं, शोध में वर्तमान में इलेक्ट्रोइन्सेफेलोग्राफी (ईईजी) के द्वारा डिप्रेशन के बुजुर्ग मरीजों के दिमाग में होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए अध्ययन कर रहे हैं। यह भारत में अपने प्रकार का पहला अध्ययन है, हालाकि ईईजी का प्रयोग विगत तीस वर्षों से मुख्य रूप से मिर्गी मारी की पहचान को सुनिष्चित करने के लिए किया जा रहा है। ईईजी परीक्षण में सिर पर तारों को लगा कर दिमाग की विद्युतीय क्रियाओं को मापा जाता है। ईईजी द्वारा दिमाग की सतह पर मापी गयी विद्युतीय तरंगों के पैटर्न को आमतौर पर “मस्तिष्कीय तरंगे” कहते हैं।
वर्तमान में डिप्रेशन के मरीजों के मस्तिष्कीय तरंगों के पैटर्न से सम्बन्धित दो अध्ययन चल रहे हैं। प्रथम अध्ययन का उद्देश्य डिप्रेशन के मरीजों में उपचार से पहले एवं बाद में मस्तिष्क की तरंगों, स्वाद को पहचानने की क्षमता तथा याददाश्त् सम्बन्धी क्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना हैं। विभाग यह शोध इस विषय से सम्बन्धित विभिन्न अनुसन्धानों के परिणामों को देखते हुए कर रहा है जिसमें यह कहा गया है कि डिप्रेशन के बुजुर्ग मरीजों में लगातार औषधीय उपचार से समयोपरान्त उन मरीजों के मीठे, नमकीन और कड़वे स्वादों को पहचाने की क्षमता में होने वाली कमी दूर हो जाती है। इस अध्ययन के अन्तर्गत उपचार से पहले एवं बाद की अवस्था से सम्बन्धित कोई दिमागी परिवर्तनों जैसे कि याददाश्त् इत्यादि की भी पड़ताल की जायेगी।
बताया गया कि दूसरे अध्ययन का उद्देश्य 30 से 70 वर्ष तक की उम्र के डिप्रेशन के रोगियों एवं इसी उम्र के स्वस्थ व्यक्तियों में मस्तिष्कीय तरंगो के पैटर्न एवं दिमागी क्रियाओं जैसे कि याददाश्त् का स्तर इत्यादि का पता लगाना है। इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि डिप्रेशन के रोगियों में दिमागी क्रियाएं धीमी और एक तरफा हो जाती हैं, अतः ऐसे मे इस अध्ययन कि महत्ता और बढ़ जाती है। अतः इस दशा में मस्तिष्क के नेटवर्क की गतिशीलता का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इस अध्ययन के परिणाम स्वस्थ व्यक्तियों के मानसिक प्रक्रियाओं में शामिल विभिन्न संचालन तन्त्रों के मध्य अन्तर करने में अपना योगदान दे सकते हैं।
इन दोनों अध्ययनों के परिणाम, चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, हित-धारकों एवं इस विषय में रूचि रखने वाले व्यक्तियों के चिकित्सकीय अभ्यासों एवं अनुसन्धानों की विधियों और प्रक्रियाओं की पारदर्शिता बनाये रखने, उपचार एवं प्रबन्धन के अन्तर्गत दवा के बारे में निर्णय लेने में, एवं समग्र रूप से रोगियों के जीवन स्तर की गुणवत्ता की वृद्धि में सहायक सिद्ध होंगे।

Sehat Times | सेहत टाइम्स Health news and updates | Sehat Times