उत्तर भारत में पहली बार आयोजित किया गया कैडेवर व जानवर पर प्रशिक्षण देने वाला वर्कशॉप
लखनऊ। लम्बे समय तक वेंटीलेटर पर रखने वाले मरीजों के सांस लेने के लिए गले (ट्रैकिया) में सांस की कृत्रिम नली बनाने की जरूरत होती है, इस नली को किस प्रकार बनाना चाहिये, बनाने में क्या सावधानियां बरतनी चाहिये, इसके बारे में आज शनिवार को Percutaneous Tracheostomy यानी ट्रैकिया में कृत्रिम सांस नली बनाना सिखाने के लिए एक लाइव वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इस वर्कशॉप में एक कैडेवर बॉडी पर प्रशिक्षण दिया गया ताकि प्रतिभागी इसे महसूस कर सकें। प्रतिभागियों को बकरी की ट्रैकिया पर प्रैक्टिस करायी गयी। इसके लिए एनिमल एथिक्स से अनुमोदन भी लिया गया था।
यह जानकारी देते हुए वर्कशॉप के संयोजक डॉ अक्षय आनंद ने बताया कि इस वर्कशॉप के आयोजन अध्यक्ष प्रो जीपी सिंह थे। डॉ अक्षय ने बताया कि उत्तर भारत में पहली बार इस तरह की लाइव वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में केजीएमयू, एरा मेडिकल कॉलेज, हिन्द मेडिकल कॉलेज के 24 डॉक्टरों ने प्रतिभागी के रूप में भाग लिया। उन्होंने बताया कि बकरी की ट्रैकिया पर प्रैक्टिस करवाने के पीछे का मकसद यह था कि प्रतिभागियों को कृत्रिम सांस नली बनाने की जीवंतता महसूस हो सके।

उन्होंने बताया कि क्रिटिकल केयर के ऐसे मरीज जिन्हें सात दिन से ज्यादा वेंटीलेटर पर रखना होता है, उनके मुंह के अंदर सांस नली में ट्यूब नहीं डाला जा सकता है क्योंकि इससे संक्रमण होने की आशंका रहती है इसलिए ऐसे केस में ऊपर से सांस लेने का रास्ता बनाना आवश्यक होता है, क्योंकि किसी भी दशा में शरीर में सांस लेने में दिक्कत न हो, यह सुनिश्चित किया जाता है। उन्होंने बताया कि अगर दुर्घटना होने से मुंह में गंभीर चोट लग गयी हो तो भी मरीज की ट्रैकिया में सांस नली बनायी जाती है।
इस वर्कशॉप में नयी दिल्ली से डॉ अनिल मिश्र व डॉ आशीष डैंग, जयपुर से डॉ अखिल अग्रवाल भाग लेने आये थे। इनके अलावा इस वर्कशॉप में डॉ जीपी सिंह, डॉ अविनाश अग्रवाल, डॉ अक्षय आनंद, डॉ सुहैल सरवर सिद्दीकी सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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