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एसजीपीजीआई को यूं ही नहीं कहा जाता है उच्‍चकोटि का संस्‍थान…

-कार्डियोलॉजी विभाग ने नहीं आने दी ओपन हार्ट सर्जरी की नौबत
-गले की नस के रास्‍ते बैलून डाइलेटेशन किया डॉ रूपाली खन्‍ना व उनकी टीम ने

सेहत टाइम्‍स
लखनऊ।
संजय गांधी पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग द्वारा 25 वर्षीय युवती के ह्रदय में बैलून डाइलेटेशन गले की नसों द्वारा करने की जटिल प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम देकर यह सिद्ध कर दिया है कि एसजीपीजीआई यूं ही एसजीपीजीआई नहीं है। आपको बता दें गले की नसों से बैलून डाइलेटेशन करना अत्यंत करने के लिए असाधारण अनुभव और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और इस प्रक्रिया से अब तक संपूर्ण विश्व में बहुत ही कम केस किए गए हैं।

संस्थान द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार एक 25 वर्षीय युवती के ह्रदय का बायां वॉल्व संकीर्ण होने के कारण बैलून डाइलेटेशन किया जाना था। सामान्यतः यह प्रक्रिया पैर की नसों से की जाती है लेकिन इस रोगी के पैरों की नसें क्योंकि असामान्य थीं, अतः पैरों की नसों के द्वारा बैलूनिंग करना संभव नहीं था, सामान्य तौर पर दूसरा रास्ता ओपन हार्ट सर्जरी का होता है जोकि जोखिम भरी और महंगी होती है, ऐसी स्थिति को देखते हुए कार्डियोलॉजी विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ रूपाली खन्ना ने इस चुनौती को स्वीकार किया और रोगी को भर्ती किया।

इसके बाद डॉ रूपाली ने एनेस्थीसिया विभाग के अपने सहयोगी डॉ अमित रस्तोगी के सहयोग से इस प्रक्रिया को गले की नसों द्वारा करने का निर्णय लिया। डॉ रूपाली और उनकी टीम ने बैलून डाइलेटेशन के द्वारा वॉल्व को सफलतापूर्वक चौड़ा करने में सफलता प्राप्‍त की। विज्ञप्ति में कहा गया है कि अब रोगी पूर्णतया स्वस्थ है और उसे एक-दो दिनों में छुट्टी मिल जाएगी।

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