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होम्‍योपैथिक दवा के असर को कम नहीं करती हैं हींग, लौंग, इलायची जैसी चीजें

-इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रोमोटिंग होम्‍योपैथी के वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्‍ता ने प्रस्‍तुत की अपनी एक्‍सपेरिमेंटल रिसर्च

-‘होम्‍योपैथी में प्रतिबंधित खाद्य पदार्थों के संबंध में भ्रांतियों पर प्रयोगात्‍मक अनुसंधान’ विषय पर व्‍याख्‍यान आयोजित

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। यह भ्रांति है कि होम्‍योपैथिक दवा खाने के साथ लौंग, इलायची, हींग जैसे सुगंधित खाद्यपदार्थ या ऐलोपैथिक दवाएं नहीं खायी जा सकती हैं, मैं जो कह रहा हूं यह सिर्फ कही-सुनी बात नहीं है बल्कि ऐसा कहने के पीछे का पुख्‍ता आधार इस सम्‍बन्‍ध में की गयी इन विट्रो एक्‍सपेरिमेंटल रिसर्च हैं। इन रिसर्च का प्रकाशन दो प्रतिष्ठित जर्नल्‍स, इंडियन जर्नल ऑफ रिसर्च इन होम्‍योपैथी के अप्रैल से जून 2018 के अंक में तथा एडवांसमेंट्स इन होम्‍योपैथिक रिसर्च जर्नल में फरवरी से अप्रैल 2017 के अंक में हो चुका है। ज्ञात हो इन जर्नल्‍स में रिसर्च पेपर छापे जाने से पूर्व रिसर्च पेपर्स के कई-कई स्‍तर पर समीक्षा की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही उसे छापने की अनुमति दी जाती है।

ये विचार इस विषय पर रिसर्च करने वाले लखनऊ स्थित गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्‍सल्‍टेंट डॉ गिरीश गुप्‍ता ने इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रोमोटिंग होम्‍योपैथी द्वारा शुक्रवार रात्रि को आयोजित वेबिनार में कही। इस वेबिनार का विषय था, ‘होम्‍योपैथी में प्रतिबंधित खाद्य पदार्थों के संबंध में भ्रांतियों पर प्रयोगात्‍मक अनुसंधान’।

मुख्‍य वक्‍ता के रूप में बोलते हुए डॉ गिरीश गुप्‍ता ने प्रस्‍तुति के माध्‍यम से बताया कि उनके द्वारा की गयी रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि खाने-पीने की खुशबूदार वस्‍तुएं, ऐलोपैथिक दवाओं जैसी चीजों के सेवन से होम्‍योपैथिक दवाओं पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है। डॉ गिरीश ने बताया कि लहसुन, प्‍याज, छोटी इलायची, लौंग, जीरा, अदरक,अदरक, मैथी दाना, काली मिर्च, हींग, लाल मिर्च, हरी मिर्च, हल्‍दी, नींबू, कपूर, चाय, कॉफी जैसी विभिन्न निषिद्ध वस्तुओं, पेय पदार्थों को होम्‍योपैथिक दवाओं के साथ कैंडिडा (एक प्रकार का फंगस) के कल्‍चर पर प्रयोग किय गया तो भी होम्योपैथिक दवाओं के प्रभाव पर कोई निरोधात्मक प्रभाव नहीं पाया गया। यानी जितना लाभ होम्‍योपैथिक दवा अकेले दे रही थी उतना ही लाभ इन वस्‍तुओं के मिश्रित करने पर भी पाया गया।

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि इसी प्रकार एंटी बायटिक, एंटी डायबिटिक, एंटी हाईपरटेंसिव, पैरासीटामॉल जैसी दवाओं को होम्‍योपै‍थिक दवाओं के साथ मिक्‍स कर प्रयोग किया गया लेकिन होम्‍योपैथिक दवा पर कोई विपरीत असर नहीं हुआ।

डॉ गुप्‍ता ने कहा कि यह सही है कि होम्‍योपैथी के जनक डॉ सैमुअल हैनिमैन जो खुद एलोपैथिक चिकित्‍सक थे, ने होम्‍योपैथिक दवाओं के सेवन के दौरान खाने-पीने की कुछ वस्‍तुओं को न लेने की सलाह दी थी, उन्‍होंने कहा कि डॉ हैनिमैन के प्रति मैं पूरे सम्‍मान के साथ आप सबको बताना चाहता हूं कि आज से लगभग 225 वर्ष पूर्व डॉ हैनिमैन की यह सलाह उस कालखण्‍ड के लिए सही थी, जब प्रयोगशाला में शोध के उन्‍नत साधन नहीं उपलब्‍ध थे। मुझे पूरा विश्‍वास है कि आज 21वीं शताब्‍दी में उपलब्‍ध संसाधनों के दौर में डॉ हैनिमैन भी नयी-नयी रिसर्च को अंजाम देते। डॉ गुप्‍ता ने कहा कि इसे एक छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है कि डॉ हैनिमैन ने अपनी लिखी किताब ‘ऑर्गनन ऑफ मेडिसिन’ में अपने जीवनकाल में छह बार रिवाइज किया। डॉ गुप्‍ता ने कहा कि सोच कर देखिये जब डॉ हैनिमैन अपनी लिखी किताब को इम्‍प्रूव करने के लिए उसे छह बार रिवाइज कर सकते थे तो संसाधन उपलब्‍ध होने पर अपनी ही खोजी हुई दवाओं के महत्‍व को बढ़ाने के लिए प्रयोग या रिसर्च भी जरूर करते। डॉ गिरीश ने कहा कि डॉ हैनिमैन के इस पुनीत कार्य को निरंतर आगे बढ़ाने की आवश्‍यकता है तथा मैं समझता हूं कि होम्‍योपैथिक दवाओं के महत्‍व और उसकी उपयोगिता बढ़ाने के लिए किये जाने वाले अनुसंधान उनके प्रति सच्‍ची श्रद्धांजलि है।

 

लगभग एक घंटे चले वेबिनार का संचालन डॉ एमके साहनी ने किया। वेबिनार से जुड़े चिकित्‍सकों ने अनेक प्रकार के प्रश्‍नों को पूछ कर अपनी जिज्ञासा को शांत किया। इन चिकित्‍सकों ने प्रेजेन्‍टेशन की प्रशंसा करते हुए कहा कि जिस प्रकार डॉ गिरीश ने अपनी बातों को साक्ष्‍य सहित प्रस्‍तुत किया है वह काबिलेतारीफ और आंखें खोलने वाला है। उन्‍होंने कहा कि विभिन्‍न प्रकार की खुश्‍बूदार खाने-पीने की चीजों को लेकर मन में बैठा मिथ दूर हुआ, जो कि चिकित्‍सकों के साथ ही मरीजों के लिए बड़ी राहत की खबर है, क्‍योंकि बहुत से मरीज सिर्फ तरह-तरह के परहेज से बचने के लिए ही होम्‍योपैथिक इलाज नहीं करते हैं।

 

 

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