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कैंसर की पहचान में ऑन्‍को पैथोलॉजिस्‍ट की भूमिका महत्‍वपूर्ण

-विश्‍व कैंसर दिवस पर ऑन्‍को पैथोलॉजिस्‍ट डॉ अविरल गुप्‍ता से ‘सेहत टाइम्‍स’ की खास बातचीत

डॉ अविरल गुप्ता

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। कैंसर जैसी बीमारी का नाम सामने आते ही एक भयावह बीमारी का बोध स्वत: होने लगता है, हालांकि चिकित्सकों के अनुसार अब ऐसी दवाएं और ऐसा इलाज उपलब्ध है कि यदि शुरुआती स्टेज में कैंसर का पता चल जाए तो उपचार करने में बहुत आसानी रहती है तथा यह दूसरी बीमारियों की तरह ठीक हो जाता है। जहां तक कैंसर होने या न होने की पहचान का सवाल है तो इसमें कैंसर की जांच करने वाले विशेषज्ञ ऑन्‍को पैथोलॉजिस्‍ट की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। विश्व कैंसर दिवस पर कैंसर की जांच के विशेषज्ञ पीके पैथोलॉजी के ऑन्को पैथोलॉजिस्ट डॉ अविरल गुप्ता से ‘सेहत टाइम्स’ ने विशेष वार्ता की। डॉ अविरल गुप्ता ने बताया कि शरीर के किसी भी हिस्से में गांठ होने पर उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, यह गांठ सामान्य गांठ है अथवा कैंसरयुक्त इसकी पहचान हिस्टोपैथोलॉजिस्ट अथवा साइटोलॉजिस्ट द्वारा गांठ में सुई डालकर तरल पदार्थ (टिश्‍यू फ्ल्‍यूड) निकालकर की जाती है इस नमूने को स्‍टेन कर माइक्रोस्कोप द्वारा जांच कर उस गांठ की प्रकृति के बारे में जाना जाता है। इस प्रक्रिया को एफ एन ए सी (fine needle aspiration Cytology) कहते हैं।

डॉ अविरल ने बताया कि कैंसर जांच की दूसरी सटीक विधि को हिस्टोपैथोलॉजी जांच कहते हैं इसमें कैंसर की अल्टीमेट टिश्‍यू डायग्नोसिस होती है जिसके बाद ही कैंसर के इलाज की दिशा तय होती है। यह महत्वपूर्ण एवं मुख्य जांच होती है जिसे ऑन्‍को पैथोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है इसमें शरीर के बाहरी अथवा भीतरी हिस्से में गांठ से जांच के लिए नमूना लिया जाता है इस प्रोसीजर को बायोप्सी कहते हैं, जिसे सर्जन अथवा फिजिशियन द्वारा किया जाता है, इसके पश्चात गांठ के छोटे टुकड़े को फॉर्मलीन में स्टोर कर ऑन्‍को पैथोलॉजिस्ट के पास भेजा जाता है, जिसे पैथोलॉजी लैब द्वारा स्‍टेन कर माइक्रोस्कोप द्वारा जांच कर कैंसर का निदान एवं उसकी स्टेज का पता लगाया जाता है। डॉ अविरल बताते हैं कि कैंसर जांच की अन्य विधियों में कभी-कभी रेडियोलॉजिस्ट का भी सहयोग लिया जाता है इस विधि को गाइडेड एफएनएसी या बयोप्‍सी कहते हैं जिसमें पैथोलॉजिस्ट रेडियोलॉजिस्ट के सहयोग से स्क्रीन पर देखते हुए शरीर के अंदरूनी हिस्से में मौजूद छोटी गांठ से टिश्यू फ्लूड अथवा टिश्‍यू पीस निकाल लेते हैं, तत्पश्चात उस नमूने की जांच पैथोलॉजिस्ट द्वारा स्टेनिंग कर माइक्रोस्कोप द्वारा ट्यूमर की पहचान की जाती है जिससे पता चलता है कि गांठ कैंसर युक्त है अथवा सामान्य गांठ है।

डॉ अविरल बताते हैं कि कैंसर जांच की एक और विधि है जिसे एंडोस्कोपिक बायोप्सी कहते हैं इसमें शरीर के अंदरूनी हिस्से विशेष रूप से खाने की नली, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय, पित्त की थैली तथा गर्भाशय आदि से दूरबीन विधि यानी एंडोस्कोपी टेक्निक द्वारा जांच के लिए टुकड़ा निकाला जाता है। इस प्रक्रिया को गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट यानी पेट रोग विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है। इस विधि से मांस का टुकड़ा निकाल कर उनको पैथोलॉजिस्ट के पास भेजा जाता है जहां कैंसर के प्रकार एवं उसकी स्टेज की जांच होती है और उसी के आधार पर इलाज की दिशा तय होती है।

उन्होंने बताया कि इसी प्रकार ब्लड कैंसर की जांच में भी पैथोलॉजिस्ट की प्रमुख भूमिका होती है इसमें रक्त के नमूने तथा बोन मैरो के नमूने द्वारा ब्लड कैंसर तथा उसके प्रकार की पहचान की जाती है जिसमें कंपलीट ब्लड काउंट, जनरल ब्लड पिक्चर तथा बोन मैरो के परीक्षण द्वारा कैंसर का निदान किया जाता है। इसमें नई-नई तकनीक की मदद ली जाती है जिसे फ्लो साइटोमेट्री मॉलिक्यूलर तथा जेनेटिक तकनीक की सहयोगी भूमिका रहती है।

डॉ अविरल ने बताया कि कैंसर जांच की अन्य विधियों में खून में टयूमर मार्कर की जांच पैथोलॉजिस्ट द्वारा की जाती है जिससे शरीर के कुछ अंगों जैसे प्रोस्टेट, ओवरी, स्तन की गांठ, बड़ी आंत, अग्नाशय आदि के कैंसर की संभावना का पता लगाया जाता है। इसे स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में किया जाता है टयूमर मार्कर कैंसर का कन्‍फर्मेट्री टेस्ट नहीं है, यानी इसमें कैंसर की संभावना का पता लगता है, इसके बाद बायोप्‍सी तथा हिस्टोपैथोलॉजी द्वारा कैंसर की जांच की जाती है।

डॉ अविरल का कहना है कि इस महत्वपूर्ण जांच में जो डॉक्टर होते हैं उनके पास एमडी पैथोलॉजी की डिग्री होती है। उन्‍होंने कहा कि पैथोलॉजी जिसे आजकल लैबोरेट्री मेडिसिन भी कहते हैं जो कि जनरल मेडिसिन से निकली हुई ब्रांच है, इसमें रोग की उत्पत्ति तथा उसकी पहचान के लिए परीक्षण तकनीक को पढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा कि आम जन की भाषा में रोग की पहचान को रोग निदान यानी डायग्नोसिस कहते हैं। मॉडर्न मेडिसिन की बुनियाद डायग्नोसिस निर्भर है इसके बाद ही सटीक इलाज होता है। ऐसे में कह सकते हैं कि इलाज की दिशा तय करने में उनको पैथोलॉजिस्ट की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

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