Friday , October 13 2023

ग्रामीण परिवेश में सामाजिक चलन का हिस्सा बन चुकी बीड़ी से हो रहा सबसे ज्यादा नुकसान

51 फीसदी लोग पीते हैं बीड़ी, 19 प्रतिशत लोग सिगरेट और 30 प्रतिशत लोग खाते हैं तम्बाकू

लखनऊ. तंबाकू कितनी नुकसानदायक है, यह हम सभी को पता है. यह 40 प्रकार के कैंसर सहित 65 प्रकार की बीमारियों को जन्म देती है तथा प्रतिवर्ष 60 लाख लोगों की जान ले लेती है. लेकिन क्या आप यह जानते हैं की तंबाकू के सेवन में सबसे ज्यादा नुकसान बीड़ी पीने से हो रहा है क्योंकि इसको पीने वालों की संख्या देश में 51% है. जाहिर है बीड़ी पीने वालों की अधिकतर संख्या ग्रामीण इलाकों में है लेकिन उन गाँव वालों के लिया बीड़ी एक सामजिक जरूरत बन चुकी है. पढ़े-लिखे लोग भी इसे सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न मानते हैं, ऐसे में उन लोगों को समझाना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए सरकार और हम सभी को बहुत प्रयत्न करना होगा.

 

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद

विश्व तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर ‘सेहत टाइम्स’ से एक विशेष बातचीत में पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट के पूर्व निदेशक तथा वर्तमान में एरा मेडिकल यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी विशेषज्ञ प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि जहां 51% लोग बीड़ी पीते हैं वहीं 19% लोग सिगरेट पीते हैं जबकि तंबाकू खाने वालों का प्रतिशत 30 है. उन्होंने बताया कि बीड़ी में दशमलव 2 ग्राम तंबाकू का प्रयोग होता है और सिगरेट में दशमलव 8 ग्राम तंबाकू का प्रयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि अब सवाल यह आता है कि जब बीड़ी के मुकाबले सिगरेट में तंबाकू 4 गुना होती है तो दोनों से नुकसान बराबर कैसे होता है ? प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद ने बताया इस पर उनकी एक रिसर्च है जिसमें सामने आया कि इसके कई कारण हैं पहला कारण सिगरेट में प्रयोग होने वाला कागज अत्यधिक ज्वलनशील होता है यानी अगर सिगरेट को एक बार जला दिया जाये तो वह अपने आप भी जलती रहेगी, लेकिन बीड़ी चूँकि पत्ते से बनती है तो वह अपने आप सुलगती नहीं रह सकती, इसलिए उसे जलाए रखने के लिए बीड़ी पीने वाला व्यक्ति जल्दी-जल्दी और गहरे कश लेता है इसके विपरीत सिगरेट पीने वाला व्यक्ति हल्के कश से भी काम चला लेता है. उन्होंने बताया कि  बीड़ी पीने वाला व्यक्ति जब बार-बार गहरे कश लेता है तो उसका धुआं फेफड़ों में तेजी से और ज्यादा मात्रा में पहुंचता है. जबकि सिगरेट पीने वाला व्यक्ति भले ही बीड़ी के मुकाबले कम कश लेता है लेकिन बीड़ी के मुकाबले सिगरेट में तम्बाकू चार गुना अधिक होने की वजह से उसे भी उतना ही नुक्सान होता है.

 

बीड़ी नहीं पियेंगे और पिलायेंगे तो चुनाव कैसे जीतेंगे

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद से जब यह पूछा गया कि बीड़ी न पीने के प्रति कैसे जागरूक किया जा सकता है तो उनका कहना था कि इसके लिए सरकार को और बाकी सभी लोगों को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. क्योंकि बीड़ी की जड़ें खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत गहरे तक जमी हुई हैं. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इस बारे में बीड़ी पीने वालों को बहुत भ्रांति भी है. पहली बात वे सोचते हैं कि यह सिगरेट से सस्ती है, इसमें कम तंबाकू है तो यह कम नुकसान करती होगी. दूसरी एक महत्वपूर्ण बात उन्होंने बतायी कि  ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ नशा ही नहीं बल्कि एक चलन बन गया है. उन्होंने बताया कि एक बार उनके पास एक ग्राम प्रधान इलाज कराने आया था जब उन्होंने प्रधान से कहा कि बीड़ी मत पिया करो यह बहुत नुकसानदायक है तो जो जवाब उसने दिया वह आश्चर्यचकित करने वाला था. प्रधान ने बताया की बीड़ी पीना तो हमारे लिए उतना ही जरूरी है जैसा कि समाज में रहना. उसने बताया कि हम लोगों के घर कोई आए तो चाय-नाश्ता कराने के साथ-साथ अगर बीड़ी न पिलायें तो वह व्यक्ति बहुत बुरा मानता है, इसी प्रकार हम किसी के घर जाएं और वह जब हमको चाय-नाश्ते के साथ बीड़ी पीने को देता है और यदि हम ना पीयें तो भी वह बहुत बुरा मानता है. यही नहीं प्रधान होने की वजह से उसने बताया कि अगर हम बीड़ी न पियें तो चुनाव नहीं लड़ पाएंगे क्योंकि जब सामाजिक रीति का रूप ले चुकी बीड़ी पीने-पिलाने की बात से अगर हम दूर हो गए तो हमारा वोटर हमसे दूर हो जाएगा.

 

प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि ऐसी हालत में आप सोच कर देखिए कि लोगों के मन से इसके हानिकारक प्रभाव बताते हुए बीड़ी न पीने के लिए प्रेरित करना कितना बड़ा चैलेंज है, इसीलिए मेरा यह कहना है कि इस पर सरकार को और हम सब को बहुत मेहनत करने की जरूरत है तभी उन्हें जागरुक किया जा सकता है.

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.