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मोबाइल फोन से हो रहा ‘टेक्स्ट नेक सिंड्रोम’, बनती जा रही है महामारी

-आईएमए में आयोजित सीएमई में एंडोस्कोपिक स्पाइन सर्जन डॉ अभिनव श्रीवास्तव ने दी जानकारी

सेहत टाइम्स

लखनऊ। एडवांस्ड ऑर्थोस्पाइन सेंटर के एंडोस्कोपिक स्पाइन सर्जन डॉ अभिनव श्रीवास्तव ने टेक्स्ट नेक सिंड्रोम के बारे में बताया कि टेकनेक शब्द मोबाइल की टेक्नोलॉजी और इससे गर्दन में होने वाले नुकसान का मिश्रण है। उन्होंने बताया कि टेक्स्ट नेक एक बीमारी नहीं बल्कि यह सिंड्रोम यानी बीमारियों का गुच्छा है आजकल यह समस्या महामारी बनते हुए बहुत बड़ा रूप लेती जा रही है उन्होंने बताया कि यह कितनी बड़ी समस्या है, यह कैसे होती है, इसके लक्षण क्या हैं और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है और इससे बचने के लिए क्या टिप्स अपनाने चाहिये।

आईएमए में 23 मार्च को आयोजित सीएमई में बोलते हुए उन्होंने बताया कि अधिकृत रिसर्च बताती हैं कि विश्व में 65 से 70 प्रतिशत लोगों को यह बीमारी है, भारत में भी यह 57 से 60 फीसदी लोगों को है। उन्होंने बताया कि इसके कारण लोगों में ‘नोमो फोबिया’ यानी नो मोबाइल फोेबिया हो रहा है। यानी मोबाइल न हो इसका व्यक्ति पर कितना असर पड़ेगा। उन्होंने बताया हम जगते हुए समय का चालीस फीसदी समय मोबाइल को देते हैं यानी साल भर के 12 महीनों में ढाई महीने का समय मोबाइल पर बिताते हैं। बिना मतलब के 150 से 200 बार देखते हैं। जेब में पड़ा होने की स्थिति में भी जेब में अंदर, बाहर करीब 2500 बार मोबाइल का मूवमेंट करते हैं। इससे शारीरिक और मानसिक ही नहीं सामाजिक असर भी पड़ रहा है। समाज में आपस में कैसे सम्बन्ध रखना है, कैसे मेलजोल रखना है, इस पर असर पड़ रहा है। शारीरिक असर की बात करें तो सिर्फ गर्दन ही नहीं, सिर दर्द, कंधा दर्द, हाथों में दर्द, कमर दर्द भी हो जाता है। आंखों में दर्द होता है, मोटापा बढ़ता है। अनिद्रा बढ़ रही है। इसकी वजह रात में सोते समय मोबाइल चलाना है, क्योंकि जब व्यक्ति मोबाइल देखता है तो रोशनी ब्रेन में भी जाती है, ब्रेन समझता है कि यह दिन है।

डोपामीन का लती हो रहा है मस्तिष्क

उन्होंने कहा कि आजकल लोगों विशेषकर बच्चोें को यह पता ही नहीं होता है कि लोगों से बात कैसे करनी है, यही वजह है कि आपस में लड़ाइयां हो जाती है, छोटी-छोटी बात पर हत्या जैसे संगीन अपराध तक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि जब हम लोग फील गुड करते हैं यानी अच्छा महसूस करते हैं तो हमारे शरीर से हार्मोन डोपामीन निकलता है, तो पहले जब हम सीरियल देखते थे तो लगभग आधे घंटे के बाद कोई ऐसा सीन आता था जब हमारे शरीर से डोपामीन निकलता था अब क्या है कि मोबाइल पर 10 सेकंड की छोटी सी रील देखने पर हमारे शरीर से डोपामीन निकल रहा है, जब इतनी जल्दी-जल्दी डोपामीन निकलेगा तो ब्रेन इसका आदी हो जाता है यानी आपको इसकी लत लग जाती है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर आने वाले वीडियो में यह खास बात होती है कि यदि आपने एक प्रकार के चार-पांच से आठ-दस वीडियो देख लिये तो आगे वैसे ही वीडियो आते रहते हैं जो आपको लती बनाते हैं। बच्चों को गेम की लत इसी का परिणाम है। यहां तक कि बच्चों के दिमाग की ईईजी का पैटर्न तक बदल जा रहा है। यह अत्यन्त खतरनाक स्थिति है क्योंकि जिन बच्चों का ब्रेन विकसित हो रहा है, उनमें जब यह पैटर्न बदल जायेगा तो कितना नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार बहुत छोटे बच्चों को देखा गया है कि उनके अभिभावकों ने ऐसी आदत डलवा दी है कि जब तक वह मोबाइल देख नहीं लेता है तब वह खाना नहीं खाता है। बच्चे साइको हो रहे हैं। आने वाले दस साल में स्थिति बहुत खराब हो जायेगी।

उन्होंने बताया कि जब हम मोबाइल देखते समय गर्दन आगे की ओर झुका कर रखते हैं तो मांसपेशियां छोटी हो जाती हैं, जबकि पीछे की मांसपेशियां खिंच जाती हैं, कूबड़ निकल आता है, जब हम लगातार आठ घंटे गर्दन झुका कर मोबाइल देखेंगे तो मांसपेशियां छोटी रह जाती हैं जिससे आजकल व्यक्ति की मुद्रा आगे की ओर झुकी हुई हो गयी है। आगे की मांसपेशियां छोटी होने से जबड़े की डिस्क पर ज्यादा जोर पड़ता है तो वह सिल-बट्टे की तरह पिसता है। हड्डी बढ़ जाती है, पीछे गर्दन में दर्द, नसों में झनझनाहट पैदा हो जाती है, स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण आजकल इसीलिए बढ़ रहे हैं। जब हम सीधे खड़े होते हैं तो सिर सीधा रहने पर गुरुत्वाकर्षण बीच से जाता है, ऐसे में गर्दन पर सिर्फ सिर का भार आता है लेकिन जब हम सिर झुका कर देखते हैं गर्दन पर भार कई गुना बढ़ जाता है। इसीलिए पांचवें और छठे नम्बर की डिस्क ज्यादा प्रभावित होती है और लोगों को हाथों में झुनझुनी ज्यादा होती है।

उन्होंने इस स्थितियों से बचने के लिए टिप्स देते हुए बताया कि आजकल ऐप आ गये हैं जिसमें आप प्रोग्राम को सेट कर सकते हैं जैसे आपने यूट्यूब, फेसबुक पर टाइमर सेट कर लिया कि 30 मिनट बाद यह बंद हो जाये तो वह निर्धारित समय के बाद अपने आप बंद हो जायेगा।
इसी प्रकार जो लोग कम्प्यूटर पर काम करते हैं उन्हें 20-20-20 का फॉर्मूला अपनाना चाहिये यानी 20 मिनट जब काम कर लें तो 20 सेकंड का ब्रेक टहल कर ले लें तथा 20 फीट की दूरी वाली चीज को 5 से 10 सेकंड देख लें जिससे आंखों का फोकस चेंज हो सके।

उन्होंने कुछ और टिप्स देते हुए बताया कि यदि दायें कंधे में दर्द हो तो बायीं करवट लेटें, दोनों पैरों के बीच और छाती पर हाथों के नीचे तकिया लगा लें। क्योंकि सोते समय आईडियल मुद्रा नहीं रहती है। इसलिए तकिया लगा रहने से नींद की अवस्था में मूवमेंट के समय नुकसान नहीं होगा।

कार्यक्रम सुबह 9:30 बजे प्रारम्भ हुआ। इसमें कुल 23 चिकित्सा विषय कवर हुए। इन विषयों में समय-समय की बीमारियों, हृदय से सम्बंधित, पालेटिव केयर कैंसर की आखरी स्टेज, डायबिटिज, नेत्र रोग, हेयर ट्रान्सप्लांट, नशा, मोबाइल फोन से हो रहे नुकसान, महिला स्वास्थ्य, टीबी आदि विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुत किये गये। कार्यक्रम में लगभग 100 डॉक्टरों ने भाग लिया।

सीएमई का उद्धाटन पूर्व अध्यक्ष डॉ रुखसाना खान के द्वारा किया गया। अध्यक्ष डॉ सरिता सिहं ने आये हुए अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर साइंटिफिक कमेटी के सलाहकार डॉ जी पी सिहं, साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉ जेडी रावत, निवर्तमान अध्यक्ष डॉ विनीता मित्तल, अध्यक्ष निर्वाचित डा० मनोज कुमार अस्थाना ने आयोजन की सराहना की और कहा कि इस से डाक्टरों के ज्ञान में वृद्धि होती है, इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिये। आईएमए लखनऊ के सचिव डा संजय सक्सेना ने ‘स्वच्छ एवं स्वस्थ लखनऊ’ बनाने की बात कही। कार्यक्रम के अंत में सचिव डॉ संजय सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ गुरमीत सिंह एवं डॉ अनिल कुमार त्रिपाठी ने किया।

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