Wednesday , October 11 2023

मांगें न मानीं तो बोर्ड परीक्षा का बहिष्‍कार भी कर सकते हैं शिक्षक 

-माध्‍यमिक शिक्षकों ने शुरू किया निदेशालय पर दो दिवसीय धरना

लखनऊ।  उत्‍तर प्रदेश सरकार की वादाखिलाफी से नाराज शिक्षक संगठन के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम की श्रृंखला के अनुसार प्रदेश कार्यकारिणी के नेतृत्व में 6 और 7 फरवरी को शिक्षा निदेशक कार्यालय पर धरना शुरू हो गया है। लखनऊ खण्ड शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उ0प्र0मा0 शिक्षक संघ के अधिकृत प्रत्याशी एवं प्रदेशीय मंत्री/प्रवक्ता डॉ महेन्द्र नाथ राय ने बताया कि प्रदेश सरकार ने शिक्षकों को मजबूर कर दिया है कि वे अपनी जायज मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन का रास्‍ता अपनायें।

डॉ राय ने कहा कि अगर सरकार ने हमारी मांगें न मानीं तो संगठन आगे की रणनीति तय करेगा, इसके तहत बोर्ड परीक्षा और उसकी कॉपियों के मूल्‍यांकन कार्य का बहिष्‍कार का फैसला भी लिया जा सकता है।

डॉ राय ने बताया कि उनकी मांगों में जो बिन्‍दु शामिल हैं उनमें वित्तविहीन शिक्षकों की सेवा नियमावली बनाते हुए उन्हें कोषागार से सीधे बैंक खाते में सम्मानजनक पाँच अंकों मानदेय दिया जाय। 2- पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाये। 3-अद्यतन कार्यरत तदर्थ शिक्षकों का विनियमितीकरण होना चाहिये 4- सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों को चिकित्सीय सुविधा मुहैया हो। 5- माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भंग न किया जाय 6- विषय विशेषज्ञों को सेवा का लाभ दिया जाये 7- व्यावसायिक शिक्षकों एवं कम्प्यूटर अनुदेशकों का शिक्षक पद पर समायोजन किया जायेय तथा 8- माध्यमिक शिक्षा परिषद के मूल्‍यांकन निरीक्षण आदि के पारिश्रमिकों को सीबीएससी के बराबर वृद्धि एवं अवशेषों का भुगतान करना सुनिश्चित किया जाये।

धरने के दौरान डॉ महेन्‍द्र नाथ राय बता रहे हैं कि मांगें न मानीं तो बोर्ड परीक्षा का बहिष्‍कार कर सकते हैं शिक्षक

डॉ राय ने कहा कि संगठन विगत कई वर्षों से शिक्षक समस्याओं के त्वरित निदान के लिए आंदोलनरत हैं, किन्तु तत्कालीन सरकारों से लेकर वर्तमान सरकार तक मात्र आश्वासन ही दिया जाता रहा है, जिसे अब संगठन बर्दाश्त नहीं करेगा।

डॉ राय ने कहा कि पिछले वर्ष 9 फरवरी, 2019 को उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री दिनेश शर्मा से हुई वार्ता में शिक्षक समस्याओं के 09 बिन्दुओं पर सहमति के बाद भी सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम न उठाने के बाद 29.8.2019 को वार्ता के लिए विघानसभा घेराव किया गया था। फिर भी सत्ताधारियों के कान पर जूँ नहीं रेंगी, जिस कारण विवश होकर संगठन को पुन: आंदोलन के लिए बाध्‍य होना पड़ा।