Saturday , October 14 2023

मानसिक बीमारियों को अन्‍य शारीरिक बीमारियों से अलग करके नहीं देखा जा सकता

 

 

आधुनिक रिसर्च के अनुसार बेहतर प्रबंधन के लिए दोनों पर ध्‍यान देना आवश्‍यक

 

लखनऊ। जिस तरह मस्तिष्‍क और शरीर का आपस में गहरा सम्‍बन्‍ध है उसी प्रकार मानसिक और शारीरिक बीमारियों का भी आपस में गहरा सम्‍बन्‍ध है। साइंस भी कहती है कि अगर मस्तिष्‍क स्‍वस्‍थ नहीं होगा तो शारीरिक बीमारियों पर काबू रखने में मुश्किल होगी। अगर मस्तिष्‍क पर ध्‍यान नहीं दिया जायेगा तो ब्‍लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग, कैंसर, अस्‍थमा आदि बीमारियों को बेहतर ढंग से मैनेज नहीं किया जा सकता है।

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग ने मनाया स्‍थापना दिवस

यह बात आज यहां किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय के मानसिक रोग विभाग के स्‍थापना दिवस समारोह पर माइन्‍ड बॉडी मैटर्स विषय पर आयोंजित डॉ बीबी सेठी व्‍याख्‍यान में ऑस्‍ट्रेलिया से आये प्रो मोहन आइजेक ने कही। प्रो आइजेक वेस्‍टर्न ऑस्‍ट्रेलिया मेडिकल स्‍कूल विश्‍वविद्यालय में साईक्‍याट्री के क्‍लीनिकल प्रोफेसर हैं। प्रो आइजेक ने कहा कि इन बीमारियों में तनाव प्रबंधन, भावनाओं को रेगुलेट करना सिखाया जाये जिससे इन बीमारियों पर काबू पाया जा सके।

उन्‍होंने कहा कि अब वैज्ञानिक भी इस बात को मानने लगे हैं कि माइंड का शरीर की बीमारियों से गहरा सम्‍‍बन्‍ध है। पहले वे ऐसा नहीं मानते थे। इसीलिए मानसिक रोगों के इलाज को अलग दृष्टि से देखा जाता था इसके सेंटर्स अलग से शहर से दूर बनाये जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे यह महसूस हुआ कि माइंड की बीमारियां शरीर की परिस्थिति को और शरीर की बीमारियां माइंड की परिस्थिति को प्रभावित करती हैं, दोनों का आपस में गहरा संबंध है। उनका कहना था कि बहुत सारी मार्डर्न रिसर्च कहती हैं कि डायबिटीज, हाई ब्‍लड प्रेशर, पेट की बीमारी, हार्ट की बीमारी आदि जो हैं इनकी जड़ों में शुरुआती लालन पालन कैसा हुआ, अनुभव कैसे रहे, तनाव कितना रहा, कैसे मैनेज किया, इसका बड़ा रोल पाया गया है। प्रो आइजेक ने बताया कि यह भी देखा गया है मानसिक बीमारियों वाले रोगी को शारीरिक बीमारियां ज्‍यादा घेरती हैं। शारीरिक जरूरतों पर ध्‍यान देने की आवश्‍यकता होती है।

 

भारत में करीब 10.6 प्रतिशत लोगों को मानसिक देखभाल की आवश्‍यकता

स्‍थापना दिवस समारोह में इससे पूर्व मानसिक रोग विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो पीके दलाल ने विभाग की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्‍तुत करते हुए उपलब्धयां गिनायीं। उन्‍होंने यह भी जानकारी दी कि मानसिक रोग विभाग में पीजी की सीटें अब 8 से बढ़कर 12 हो गयी हैं। यानी कि इससे मा‍नसिक रोग विशेषज्ञों की कमी को पूरा करने की दिशा में एक छोटा कदम कहा जा सकता है। उन्‍होंने बताया कि मानसिक रोग को लेकर हमारे समाज में आज भी बहुत सी भ्रान्तियां हैं जिेसकी वजह से इसका बोझ मरीज के साथ-साथ मरीज की देखभाल करने वाले पर भी पड़ता है। उन्‍होंने बताया कि एक राष्‍ट्रीय सवेक्षण में पाया गया है कि भारत में करीब 10.6 प्रतिशत लोगों को मानसिक देखभाल की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने बताया कि भारत में मनोविकृति नामक रोग का प्रसार 0.4 प्रतिशत है। इसे ध्‍यान में रखते हुए एक विशेष सत्र आयोजन किया गया। इस सत्र में इस पर विचार किया गया कि इस रोग पर काबू पाने के लिए इसका जल्‍द से जल्‍द कैसे इलाज किया जाये और भारत में इसे कैसे लागू कराया जाये, क्‍योंकि यह देखा गया है कि इस रोग के शीघ्र इलाज से इस बीमारी के परिणाम में सुधार लाया जा सकता है। यह देखा गया है कि रोग की जल्दी पहचान और सहायता, बौदि्धक प्रोत्‍साहन, तनाव प्रबंधन और काउन्सिलिंग से इलाज का परिणाम बेहतर हो जाता है।

 

इस मौके पर उपस्थित कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि केजीएमयू के कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट ने विभाग को स्‍थापना दिवस की बधाई देते हुए इसके द्वारा किये जा रहे कार्यों की सराहना की। उन्‍होंने अच्‍छा कार्य करने वाले विभाग के अनेक लोगों को सम्‍मानि‍त भी किया। इस मौके पर एक स्‍मारिका का विमोचन भी किया गया। इस मौके पर विभाग के दूसरे संकाय सदस्‍य डॉ विवेक अग्रवाल, डॉ अनिल निश्‍चल, डॉ बन्‍दना गुप्‍ता, डॉ आदर्श त्रिपाठी, डा श्‍वेता सिंह सहित पूर्व में संकाय सदस्‍य और विभागाध्‍यक्ष रह चुके प्रो प्रभात सिठोले, प्रो हरजीत सिंह, भी उपस्थित रहे। अन्‍य लोगों में डीन मेडिसिन प्रो मधुमती गोयल, मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षक प्रो एस एन संखवार सहित अन्‍य विभागों के मुखिया एवं संकाय सदस्‍य उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.