-छोटी-छोटी गलतियों का असर पड़ता है रीडिंग पर
-जूम ऐप पर आयोजित कार्यक्रम में डॉ विनोद जैन ने दी जानकारी
-कोविड से ग्रस्त होने के बाद स्वयं भी होम आइसोलेशन में हैं डॉ जैन

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। कोरोना की दूसरी लहर में एक बड़ी चुनौती ऑक्सीजन लेवल को मेन्टेन रखना है। होम आइसोलेशन में रहने वाले रोगियों के ऑक्सीजन लेवल को मेन्टेन रखने के लिए किये जाने वाले प्रयासों के साथ ही छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखना कितना आवश्यक है तथा उनका कितना महत्व है इस बारे में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के प्रोफेसर डॉ विनोद जैन ने आरोग्य दर्पण संस्था द्वारा जूम पर आयोजित एक कार्यक्रम में जानकारी दी।
आपको बता दें डॉ विनोद जैन इस समय कोविड से ग्रस्त हैं तथा होम आइसोलेशन में रहकर इलाज ले रहे हैं। इस दौरान वे जूम वेबिनार में भी हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने पिछले वर्ष कोरोना काल में बरती जाने वाली सावधानियों लेकर अंग्रेजी एवं हिन्दी में 63 मॉड्यूल वाले 6 घंटे के प्रशिक्षण कोर्स का आयोजन किया था, जिसमें नर्सेज, टेक्नीशियन, तीमारदार, सफाई कर्मी आदि को प्रशिक्षण दिया गया था। ये मॉड्यूल चिकित्सा सेतु एप पर भी उपलब्ध हैं। इनका उत्तर प्रदेश समेत 8 राज्यों में मुख्यमंत्रियों द्वारा लोकार्पण किया जा चुका है। इस प्रशिक्षण में कोरोना संक्रमण से संबंधित सामान्य जानकारी के अतिरिक्त अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीके, संक्रमण से बचने एवं दूसरों को बचाने के तरीके, संदिग्ध कोरोना संक्रमण मरीज के नमूने लेने एवं उन्हें सुरक्षित भेजने के तरीके, हाथों को स्वच्छ रखना, मास्क का सुरक्षित ढंग से प्रयोग करना तथा इस्तेमाल करने के बाद उसका सावधानी से डिस्पोजल करना, पीपीई किट को सुरक्षित तरीके से पहनना एवं उतारना, सकारात्मक सोच रखना, कोरोना संक्रमित रोगी की मृत्यु के उपरांत उसके शरीर का निस्तारण करना, बायो वेस्ट मैनेजमेंट तथा आइसोलेशन एवं क्वॉरेंटाइन की अवधारणा के बारे में विस्तृत जानकारी देना शामिल है।

जूम पर आयोजित कार्यक्रम में डॉ जैन ने कहा कि होम आइसोलेशन में रहने वाले रोगियों की ऑक्सीजन के स्तर पर नजर रखना बहुत आवश्यक है, जिसके लिए लोग पल्स ऑक्सीमीटर का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने बताया कि पल्स ऑक्सीमीटर में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है अन्यथा उसकी रीडिंग सही नहीं आती है, जो कि मरीज के इलाज के लिए आगे की रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभाती है।
डॉ जैन ने बताया कि पल्स ऑक्सीमीटर बायें हाथ की बीच की उंगली में लगाना चाहिये, क्योंकि पतली उंगली में ठीक से फिट न होने के कारण रीडिंग सही नहीं आती है।
उंगली लगाने के बाद 30 सेकंड तक रुकना चाहिये, क्योंकि रीडिंग फ्लक्चुएट होती है, 30 सेकंड बाद जो रीडिंग आये उसे सही मानना चाहिये।
उन्होंने कहा कि उंगली के नाखूनों में नेल पॉलिश नहीं लगी होनी चाहिये। इससे भी रीडिंग पर फर्क पड़ता है।
दो दिन के अंतराल पर जिस तरह चश्मे के शीशे को साफ करते हैं उसी कपड़े से पल्स ऑक्सीमीटर के अंदर जहां उंगली रखी जाती है, वहां सफाई करते रहना चाहिये, क्योंकि उसमें उंगली की चिकनाई आदि लग जाती है, जिससे उसका सेंसर ठीक से काम नहीं करता है। नतीजा रीडिंग पर असर पड़ेगा।
रीडिंग लेते समय हाथ मुड़ा न हो, सीधा हो तथा हार्ट के लेवल पर हो, हार्ट के लेवल से नीचे भी ठीक नहीं है।
उन्होंने कहा कि हमेशा घर में दो पल्स ऑक्सीमीटर और छह बैटरी रखें, क्योंकि ऑक्सीमीटर खराब होने पर या बैटरी समाप्त होने पर रीडिंग में दिक्कत न हो।
देखें वीडियो पल्स ऑक्सीमीटर पर महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं डॉ विनोद जैन
नेबुलाइजेशन नहीं रोटाहेलर का करें प्रयोग
डॉ विनोद जैन ने कहा कि मौजूदा समय में नेबुलाइजेशन पर विवाद है इसलिए बेहतर होगा कि रोटाहेलर से फोराकार्ट पाउडर का पफ लें, इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, एम्स ने भी इसकी अनुशंसा की है। भाप लेने के बारे में उन्होंने कहा कि सादे पानी से भाप लें, इसमें कुछ मिलाने की आवश्यकता नहीं है।
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तनाव क्यों है खतरनाक
डॉ विनोद जैन ने कहा कि तनाव न रखें, क्योंकि इसमें जो स्ट्रेस हार्मोन निकलता है, वह टी सेल्स को डाउन करता है, जब स्ट्रेस हार्मोन्स ज्यादा हो जायेंगे तो टी सेल्स डाउन हो जायेंगे और टी सेल्स डाउन हुए तो इम्यून सिस्टम कमजोर हो जायेगा, इम्यून सिस्टम कम होने से वायरस आसानी से अटैक कर सकेगा।
