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शोध की आग में तपकर कुंदन बन रही है संतान का सुख देने वाली आईवीएफ तकनीक

-एआईसीओजी 2020 के पहले दिन आयोजित क्रियेटिंग फैमिली वर्कशॉप में प्रतिभागी डॉक्टरों को मिलीं नयी-नयी जानकारियां

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। नि:संतान दम्‍पति को शिशु की खुशी देने की तकनीक आईवीएफ आज नयी ऊंचाइयां छू रही है, पिछले दो दशकों में विकसित हुई तकनीकी प्रगति और शोधों का परिणाम है कि बांझपन के उपचार की इस तकनीक की सफलता की दर भी बढ़ गई है।

यह जानकारी प्रसिद्ध आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ गीता खन्ना ने 29 जनवरी से 2 फरवरी तक हो रही ऑल इंडिया कॉग्रेस ऑफ ऑब्‍स्‍टेट्रिक्‍स एंड गाइनीकोलॉजी की 63वीं कॉन्‍फ्रेंस एआईसीओजी 2020 के पहले दिन क्रिएटिंग फेमिलीज़ (एआरटी वर्कशॉप) के दौरान एआईसीओजी 2020 कार्यशाला में बुधवार को दी। स्‍मृति उपवन में हो रही कॉन्‍फ्रेंस के सिद्धी हॉल में आयोजित इस कार्यशाला में डॉ गीता खन्‍ना ने यह भी बताया कि आईवीएफ तकनीक पर हुए शोध और उसके बेहतर परिणाम का ही नतीजा है कि अब युवा स्त्रीरोग विशेषज्ञ अपने कॅरिअर के रूप में आईवीएफ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो तीन दशक पहले कई के लिए एक मिशन हुआ करता था।

डॉ गीता खन्ना, जिन्होंने एआरटी कार्यशाला का संयोजन भी किया, ने बताया कि इस तरह का मेगा अकादमिक कार्यक्रम विशेष रूप से आईवीएफ में आवर्तक आरोपण विफलताओं पर बांझपन और प्रबुद्ध डॉक्टरों के सभी पहलुओं को सुलझाता है। इनमें शामिल हैं आईयूआई और आईवीएफ में हार्मोन के डिम्बग्रंथि उत्तेजना के प्रोटोकॉल, पुरुष कारक बांझपन और जीवनशैली कारकों के कारण शुक्राणु डीएनए को नुकसान की भूमिका, बांझपन प्रबंधन में 3 डी/4 डी अल्ट्रासाउंड आदि जैसे प्रमुख कारण।

हार्मोनल दवाओं को देने के प्रोटोकाल के बारे में डॉ गीता खन्‍ना ने बताया कि यदि महिलाओं के अंडाशय में खराबी है तो उनमें अंडे का उत्पादन करने के लिए डिम्बग्रंथि को उत्तेजित किया जाता है। इसके लिए हार्मोन दवाओं की आवश्यकता होती है, लेकिन इलाज करने वाले डॉक्‍टरों के लिए यह बहुत चुनौतीपूर्ण होता है कि वे यह जान सकें कि किन मरीजों को ये दवायें फायदा करेंगी और किन्‍हें नहीं और उनका इलाज किस प्रकार किया जाये।

कार्यक्रम में अंडाणु, भ्रूण स्थानांतरण, आईसीएसआई (इक्‍सी) और भ्रूण फ्रीजिंग जैसी विभिन्न एआरटी प्रक्रियाओं के वीडियो ने डॉक्टरों को रोमांचक और बेहतर सीखने का अनुभव दिया। उन्हें आईयूआई और आईवीएफ लैब स्थापित करने के बारे में प्रख्यात एआरटी विशेषज्ञों से पहली बार जानकारी मिली।

कार्यशाला में एफओजीएसआई अध्यक्ष डॉ नंदिता पल्‍शेटकर, प्रेसीडेंट इलेक्‍ट डॉ अल्पेश गांधी, निष्ठावान डॉ रेशमा पाई, डॉ एचडी पाई, प्रो मीरा अग्निहोत्री, डॉ सोनम मल्लिक, डॉ कमला साल्वरज, प्रो सुधा प्रसाद, डॉ जयदीप मल्होत्रा, डॉ नरेंद्र मल्होत्रा, डॉ मंजू शुक्ला, डॉ इंदु टंडन, प्रो विनीता दास, डॉ कुलदीप जैन, डॉ आशा बख्‍शी, डॉ.आशा राव और डॉ फेस्सी लुइस भी शामिल रहे।  प्रोफ़ेसर सुधा प्रसाद और डॉ कुंजिमोइदी द्वारा संचालित बांझपन प्रबंधन में चुनौतियों पर एक जानकारीपरक पैनल चर्चा के साथ कार्यशाला समाप्त हुई। डॉ. गीता खन्ना ने बताया कि इस जानकारी भरे सत्र में लगभग 800 प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया।

अखिल भारतीय प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों के इस राष्ट्रीय सम्मेलन में पूरे भारत और विदेशों से 13,000 से अधिक ओबीजीएन विषेषज्ञ स्मृति उपवन लखनऊ में मौजूद थे। पांच दिवसीय मेगा कार्यक्रम का आयोजन लखनऊ की ओबीजीएन की टीम के साथ सचिव डॉ प्रीति कुमार और चेयरपर्सन प्रोफेसर चंद्रावती द्वारा किया गया।