-टीएवीआर तकनीक से वाल्व बदलना ज्यादा सुरक्षित, ओपन हार्ट सर्जरी आवश्यक नहीं
सेहत टाइम्स
लखनऊ। हृदय शल्य चिकित्सा, ब्रेन स्ट्रोक, फेफड़ों, लिवर और गुर्दे जैसी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की महाधमनी का वाल्व बदलने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी का जोखिम उठाने की आवश्यकता नहीं है, इसे नयी तकनीक टीएवीआर (ट्रांसकैथेटर आर्टरी वाल्व रिप्लेसमेंट) से करना ओपन हार्ट सर्जरी से ज्यादा सुरक्षित है।
यह जानकारी शनिवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता में देते हुए फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट के सीनियर कन्सल्टेंट इंटरवेंशनल कॉर्डियोलॉजी डॉ विवुध प्रताप सिंह ने बताया कि पिछले दशक में बुजुर्गों में गंभीर महाधमनी स्टेनोसिस की देखभाल के मानक के रूप में खुद को स्थापित करते हुए टीएवीआर ने कम जोखिम वाले मामलों में भी इसके इस्तेमाल के पक्ष में साक्ष्य आ रहे हैं और एक बड़ी युवा आबादी टीएवीआर के लिए केंद्र में आ रही है। उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों में 70 से अधिक देशों में करीब 3.5 लाख से अधिक प्रक्रियाएं की गई हैं।
टीएवीआर के बारे में जानकारी देते हुए डॉ सिंह ने कहा कि रोगग्रस्त महाधमनी वाले वाल्व को बदलने के लिए रक्त वाहिका के ऊपर त्वचा में एक छोटा सा कट लगाकर कैथेटर डाल कर वाल्व बदला जाता है। लगभग एक घंटे से कम समय में पूरी होने वाली इस प्रक्रिया के दौरान रोगी को हल्की बेहोशी दी जाती है।
उन्होंने बताया कि टीएवीआर सर्जरी से पहले रोगी के फेफड़ों और हृदय की स्थिति की जांच के लिए हृदय टीम में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट और कार्डियक सर्जन दोनों ही शामिल होते हैं, यह टीम विभिन्न इमेजिंग (टीवीएआर सीटी प्रोटोकॉल/कोरोनरी एंजियोग्राफी/ईसीएचओ) से परीक्षण करते हुए रक्त परीक्षण के माध्यम से रोगी की सामान्य स्थिति की जांच करती है।
टीएवीआर प्रक्रिया के बाद, रोगी को इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में स्थानांतरित कर उस पर बारीकी से निगरानी की जाती है, तथा आमतौर पर रोगी को अपनी सामान्य गतिविधियों को करने की अनुमति देते हुए अगले दिन छुट्टी दे दी जाती है, रोगी को खून पतला करने वाली दवाएं लेने की सलाह दी जाती है। डॉ विवुध ने बताया कि वर्तमान में पूरे भारत में लगभग 30 केंद्रों में टीएवीआर प्रक्रिया नियमित रूप से की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के बारे में लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है।
