-सुधार के लिए माता-पिता, अध्यापक को निभानी होगी बड़ी भूमिका
-केजीएमयू के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ आदर्श त्रिपाठी से ‘सेहत टाइम्स’ से विशेष बातचीत
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। एक ताजा सर्वे के अनुसार टीवी, मोबाइल, लैपटॉप पर इन्फोटेनमेंट (ऐसी सामग्री जिसमें मनोरंजन और सूचना दोनों होती है) के चलते मेट्रोपोलिटन सिटीज में 75 प्रतिशत किशोर और वयस्क अपनी पूरी नींद नहीं ले रहे हैं। यह एक बड़ी संख्या है, इस पर काबू पाने की जरूरत है क्योंकि लम्बे समय तक नींद की कमी अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देती है।
यह कहना है केजीएमयू के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ आदर्श त्रिपाठी का। ‘सेहत टाइम्स’ के साथ एक विशेष मुलाकात में डॉ त्रिपाठी ने बढ़ते स्क्रीन टाइम से होने वाले नुकसान पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि लम्बे समय तक नींद का पूरी न होने से समस्या सिर्फ नींद की ही नहीं है, इसके चलते दूसरी तरह की दिक्कतें पैदा हो जाती हैं, जैसे थकान बने रहना, ऊर्जा की कमी लगना, बच्चों की ओर ध्यान न दे पाना, याददाश्त पर असर होना, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, किडनी डिजीज आदि की समस्या हो सकती है। यही नहीं हार्ट अटैक का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि लाइफ स्टाइल डिजीजेस जो पहले 50-55 साल में होती थी आज 35 साल के व्यक्ति में होने लगी हैं। हालांकि इसमें सिर्फ इंटरनेट ही नहीं जिम्मेदार नहीं है, दूसरी वजहें जैसे हमारी लाइफ स्टाइल, खानपान, फिजिकल इनएक्टिविटी, पर्यावरण आदि भी हैं।
टेक्नोलॉजी का हेल्दी यूज करें
डॉ त्रिपाठी का कहना है कि इसके लिए टेक्नोलॉजी को दोष नहीं दिया जा सकता है, टेक्नोलॉजी बहुत मूल्यवान है, इससे दूर तो नहीं रहा सकता है, लेकिन इसका हेल्दी यूज किया जाये यह हम पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि 60-70 प्रतिशत बच्चे बिना स्क्रीन देखे खाना नहीं खाते हैं, उन्होंने कहा कि आज घर और बाहर सभी जगह बच्चे और बड़े सभी मोबाइल चला रहे हैं, ऐसे में बड़ों की जिम्मेदारी बनती है कि इसके फायदे-नुकसान को समझते हुए इसके इस्तेमाल का फैसला करें। डॉ त्रिपाठी ने कहा कि घर में माता-पिता बच्चों के रोल मॉडल होते हैं, ऐसे में उन्हें चाहिये कि वे स्क्रीन टाइम को लेकर एक लक्ष्मण रेखा खींचे। अध्यापक और माता-पिता बच्चों को इसके दुष्परिणाम बतायें। इसके लिए नियम बनाये जायें, जैसे रात के समय इसका प्रयोग बंद करने का नियम बनायें। इसके लिए बच्चों पर सख्ती के साथ समझायें। जहां तक वयस्कों की बात है तो उन्हें स्वयं समझना होगा। यह भी सोचें कि हम ऐसी सामग्री न देखें जो मनोवैज्ञानिक रूप से हम पर असर डालें।
डॉ आदर्श बताते हैं कि किसी भी टेक्नोलॉजी के खराब परिणाम मिडिल क्लास और लोअर क्लास पर ज्यादा असर डालते हैं, उन्होंने कहा कि आप देखते होंगे कि पूरा का पूरा परिवार खासतौर से महिलाएं जब मजदूरी में व्यस्त होती हैं तो उनके दो-दो साल के बच्चे वहीं मस्ती के साथ मोबाइल देखते रहते हैं। यही हाल मिडिल क्लास के लोगों में भी होता है, माता-पिता वर्किंग हैं तो ज्यादातार माता-पिता ऐसे हैं जिनके पास बच्चों के लिए समय ही नहीं होता है, कार्य में व्यस्तता या आराम में खलल न पड़े, इसके लिए बच्चों को मोबाइल पकड़ा देते हैं, जो बाद में उन बच्चों की आदत बन जाती है, फिर जब माता-पिता को लगता है कि बच्चा इसका लती हो गया है, तो वे उसकी आदत छुड़ाना चाहते हैं, जो कि एक समस्या बन चुकी होती है।
मोबाइल को बच्चे का खिलौना न बनायें
उन्होंने बताया कि यही नहीं बहुत से माता-पिता को या तो मालूम नहीं होता है, या वे लापरवाहीवश बच्चों को एक खिलौने की तरह मोबाइल पकड़ा देते हैं, वे यह सोचते हैं कि जब मैं अपने बच्चे को मोबाइल दिला सकता हूं तो क्यों न दिलाऊं, लेकिन जाने-अनजाने उनका यह लाड़-प्यार बच्चे के लिए परेशानी पैदा करने वाला बन जाता है। इसके विपरीत आम तौर पर देखें तो उच्च वर्ग के लोग मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी के दुष्परिणामों को समझते हुए अपने बच्चों को इसका लती नहीं बनाते हैं, वे खुद अपने ऊपर और घर में नियम बनाकर इसके नुकसान से बचने की राह निकालते हैं। उन्होंने कहा कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि मेरे कई डॉक्टर मित्र हैं जो मोबाइल का प्रतिबंधित इस्तेमाल करते हैं।
यह पूछने पर कि नींद कितनी लेनी चाहिये तो उनका कहना था यह व्यक्ति के शरीर पर निर्भर करता है कि कितनी आवश्यकता है। दो तरह के व्यक्ति होते हैं एक शॉर्ट स्लीपर और दूसरे लॉन्ग स्लीपर, शॉर्ट स्लीपर वे होते हैं जो 7 घंटे सो लेते हैं तो बिल्कुल फ्रेश हो जाते हैं जबकि लॉन्ग स्लीपर वे होते हैं जिन्हें 7 से 9 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। साधारणत: एक वयस्क के लिए 7 घंटे की नींद पर्याप्त है, जबकि बहुत छोटे बच्चों को 18 से 20 घंटे, पांच वर्ष तक के बच्चों को 10 घंटे, 5 से 8 वर्ष वाले को 9 घंटे तथा 12 वर्ष उससे ज्यादा उम्र वालों को करीब 7 घंटे की नींद की जरूरत पड़ती है।
उन्होंने कहा कि समय पर नींद इसलिए भी जरूरी है कि प्राकृतिक रूप से बायोलॉजिकल क्लॉक सूर्य के प्रकाश, तापमान, वायु से रिलेट होती है, और बॉयोलॉजिकल घड़ी के अनुसार ही शरीर में महत्वपूर्ण हार्मोन्स रिलीज होते हैं। ऐसे में हमारा सोना-जगना अगर सही समय से होगा तो हार्मोन्स के लाभ शरीर को स्वस्थ रखेंगे।
मोबाइल के स्क्रीन की लत मानवीय मूल्यों को बदल रही है, इस पर सोचने की जरूरत है, जिससे भविष्य अच्छा बने। माताएं सोचती हैं कि मेरा बच्चा डिस्टर्ब नहीं करेगा इसलिए मोबाइल पकड़ा देती हैं, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि अभी तो डिस्टर्ब नहीं करेगा लेकिन भविष्य में जो डिस्टर्ब करेगा उसका अनुमान शायद उन्हें नहीं है।