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शोध में साबित, भारत में बनी वैक्‍सीन दमदार, 97.6 प्रतिशत लोगों में मिली विकसित एंटीबॉडी

-ऐरा हॉस्पिटल में 246 स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों पर किया गया विस्‍तृत शोध

-93 प्रतिशत नहीं हुए सं‍क्रमित, 91 फीसदी को जरूरत नहीं पड़ी अस्‍पताल जाने की

-टीकाकरण के चार माह बाद भी वैक्सीन का प्रभाव बरकरार दिखा

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। भारत में बनी कोरोना वैक्सीन कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ कितनी प्रभावशाली है, इसको लेकर एरा लखनऊ मेडिकल कॉलेज का शोध अत्यंत उत्साहवर्धक है। शोध के परिणाम से स्पष्ट है कि कोरोना वैक्सीन इस महामारी के खिलाफ जंग में मील का पत्थर साबित होगी।

एरा का शोध इन बिन्दुओं पर केन्द्रित था कि देश में बनी कोरोना वैक्सीन कितनी और कितने समय के लिए प्रभावशाली है, विभिन्न आयु वर्ग पर इसका कितना प्रभाव रहा, महिलाओं और पुरुषों पर इसका क्या असर रहा, वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी जिन लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ उनमे वैक्सीन कितनी कारगर साबित हुई। शोध टीम में एरा विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ फरजाना मेहदी, एरा मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ एमएमए फरीदी, विभागाध्यक्ष मेडिसिन विभाग डॉ जलीस फातिमा, प्रोफेसर शारिक अहमद, डॉ वरुण मल्होत्रा, डॉ हना खान और डॉ दिलशाद अली रिजवी प्रमुख रूप से शामिल थे।

शोध टीम के सदस्य एवं एडिशनल मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट डॉक्टर सिद्धार्थ चंदेल ने बताया कि इन बिन्दुओं को अपने शोध का भाग बनाते हुए एरा लखनऊ मेडिकल कालेज ने वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके कुल 246 स्वास्थ्य कर्मियों का लॉटरी के माध्यम से चयन किया और उनके शरीर में बनने वाली विकसित एंटीबॉडी पर रिसर्च शुरू की। चयनित स्वास्थ्य कर्मियों में 34 डॉक्टर, 35 नर्सिंग स्टाफ़, 65 पैरमेडिकल, 71 हाउस कीपिंग और 42 सुरक्षा कर्मी शामिल थे।

इन सभी पर कोविड-19 ऐंटीबाडी का आकलन 1 और 4 महीने के अंतराल पर किया गया। यहां यह भी बताना जरुरी है कि एंटी सार्स कोविड ऐंटीबाडी आकलन के लिए उपयोग की जा रही किट में 1 के ऊपर की ऐंटीबाडी की रीडिंग को सीरो पॉज़िटिव माना जाता है। गौरतलब है कि संक्रमण के लिहाज से एरा लखनऊ  मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल अति संवेदनशील था क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2020 में एरा मेडिकल कालेज को लेवल 3 कोविड हॉस्पिटल घोषित कर दिया था।

कोविड-19 की दोनों लहरों के दौरान लगभग 5000 कोरोना संक्रमित मरीजों का एरा के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा सफल उपचार और देखभाल की गयी। कोरोना की पहली लहर के बाद शुरू हुए विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के लिए एरा को भी केन्द्र बनाया गया और 16 जनवरी 2021 को प्रधानमंत्री के संबोधन के साथ एरा में टीकाकरण अभियान शुरू हुआ। इस क्रम में एरा मेडिकल कॉलेज के तकरीबन 6500 स्वास्थ्य कर्मियों और मेडिकल छात्रों को केन्द्र और राज्य सरकार के दिशा निर्देश में कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज लगायी गयी। 15 फरवरी 2021 के बाद से कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके 246 स्वास्थ्य कर्मियों पर सीरो कन्वर्जन ( शरीर में ऐंटीबाडी बनने की दर) पर शोध शुरू किया गया। शोध में 1.7:1 के अनुपात में 156 पुरुषों और 90 महिलाओं कुल (246) को शामिल किया गया। इनमे 32.5 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मी 40 से 49 आयु वर्ग के और 11 यानि 4.5 प्रतिशत 60 वर्ष से अधिक के थे।

एक माह के बाद का परिणाम—

वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के एक माह के बाद की रिसर्च में 93.1 प्रतिशत यानि 229 लोगों में विकसित एंटीबॉडी (सीरोपाजिटिव) पायी गयी, सिर्फ 17 लोगों यानि 6.9 प्रतिशत लोगों में विकसित एंटीबॉडी नहीं पायी गयी। जिन स्वास्थ्य कर्मियों में एंटीबाडी नहीं मिली उनमें 27.3 प्रतिशत 60 वर्ष के उपर के थे और मात्र 1.5 प्रतिशत 18 से 29 वर्ष के स्वास्थ्य कर्मी थे। इन 17 लोगों में 6 महिलाएं हैं,  इसे महिला और पुरुष के अनुपात में देखें तो 35.3 प्रतिशत महिलाओं में और 64.7 प्रतिशत पुरुषों में एंटीबाडी नहीं पायी गयी। यहां दो बातें स्पष्ट हैं, पहली यह कि 60 वर्ष से अधिक वालों में एंटीबाडी कम बनी, दूसरी यह कि संख्या के हिसाब से पुरुषों के मुकाबले अधिकतर महिलाओं में विकसित एंटीबाडी पायी गयी।

चार माह के बाद का परिणाम

कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज के चार माह के बाद की रिसर्च में पाया गया कि एक माह बाद का सीरोपॉजिटिव का आंकड़ा जो 93.1 प्रतिशत़ था, वह बढ़कर 97.6 हो गया। जिन 17 लोगों में एंटीबाड़ी नहीं मिली थी उसमे से भी 14 लोगों (82 प्रतिशत) में चार माह बाद विकसित एंटीबाडी प्राप्त हो गयी। यहां यह कहा जा सकता है कि समय के साथ शरीर में एंटीबाडी बनने की संभावना बनी रहती है। चार माह के बाद 246 लोगों में से मात्र तीन लोग ऐसे मिले जिनमे एंटीबाडी नहीं बन पायी, इनमे 30 से 39 आयु वर्ग के दो और 60 से अधिक आयु वर्ग का एक स्वास्थ्य कर्मी है। शोध के परिणाम की विस्तृत व्याख्या में ये देखा गया की 97.6 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मियों में 1 स्/ष्टश के ऊपर सार्स कोविड ऐंटीबाडी विकसित पायी गयीं। वहीं 88.6 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों में ऐंटीबाडी का स्तर 5 से अधिक, 46.7 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मियों में ऐंटीबाडी का स्तर 10 से अधिक और 26.8 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मियों में यह स्तर 15 से ऊपर पाया गया। ओवर ऑल एवरज को देखें तो वैक्सिनेटेड स्वास्थ्यकर्मियों में 1 माह बाद ऐंटीबाडी का स्तर 11.98 दर्ज किया गया, जबकि 4 माह बाद यह आंकड़ा 11.76  पर बना रहा।  इसके अलावा तीन ऐसे लोग भी पाये गये जिनमे एक माह बाद तो एंटीबाड़ी बनी थी, लेकिन चार माह बाद उनके शरीर से एंटीबाडी गायब हो गयी यानि वो सीरोपाजिटिव से सीरोनिगेटिव हो गये। सीरोपाजिटिव से सीरोनिगेटिव हुए स्वास्थ्य कर्मियों में 30 से 39 आयु वर्ग के दो और 40 से 49 आयु वर्ग के एक लोग हैं।

वैक्सीनेटेड पर कोरोना संक्रमण का असर-

कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके जिन 246 स्वास्थ्य कर्मियों पर शोध किया गया उसमे से मात्र 18 (7.3) ही कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में संक्रमित हुए। इसमे 10 चिकित्सक और 8 अन्य स्टाफ था। लिंग के अनुसार संक्रमितों में 11 पुरुष व सात महिलाएं थीं।

इसे ब्रेक थ्रू इंफेक्शन कहते है। इन 18 में तीन वो स्वास्थ्य कर्मी भी शामिल हैं, जिनमे एंटीबाडी नहीं बनी थी, जबकि संक्रमित 15 लोगों में एंटीबाडी पायी गयी थी।

कोरोना की दूसरी लहर मार्च माह के अंत में शुरू हुई थी, उस समय एक माह वाली ही शोध सम्पन्न हुई थी, उस समय 17 स्वास्थ्य कर्मी ऐसे थे, जिनमे एंटीबाडी नहीं बनी थी, जिसमे से सिर्फ तीन यानि 17.6 लोग ही संक्रमित हुए, यहां यह कहा जा सकता है कि एंटीबाडी न बनने पर भी वैक्सीन का प्रभाव देखने को मिल सकता है। कोरोना से संक्रमित अन्य 15 में एंटीबाडी पायी गयी थी, अगर देखा जाये तो एंटीबाडी वाले कुल 229 स्वास्थ्य कर्मियों में से मात्र 15 यानि 6.5 प्रतिशत ही कोरोना से संक्रमित हुए। ऐसे में कहा जा सकता है कि कोरोना वैक्सीन कारगर साबित हुई।

कोरोना संक्रमित इन 18 मे से सिर्फ दो को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आयी और रिकवरी 100 प्रतिशत दर्ज की गयी। शोध में पाया गया कि जो स्वास्थ्य कर्मी वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद संक्रमित हुए उनमे पहले एंटीबाडी का स्तर कम था, लेकिन ब्रेक थ्रू संक्रमण के बाद एंटीबाडी का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया।  जैसे-जैसे उनके शरीर में एंटीबाडी का स्तर बढ़ता गया खतरा भी कम होता गया।

कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद इन 18 स्वास्थ्य कर्मियों में बूस्टर एफेक्ट देखने को मिला। जिन तीन स्वास्थ्य कर्मियों में एंटीबाडी नही बनी थी, उनमे भी एंटीबाडी बन गयी थी। इसके अलावा कोरोना संक्रमितों में एंटीबाडी का स्तर अन्य वैक्सीनेटेड स्वास्थ्य कर्मियों से अधिक पाया गया।

शोध का प्रमुख निष्कर्ष

1–एरा लखनऊ मेडिकल कॉलेज के शोध से स्पष्टï है कि देश में बनी कोविशील्ड वैक्सीन कोरोना संक्रमण को रोकने और उसके प्रभाव को कम करने में कारगर साबित हो रही है।

2–संख्या के लिहाज से अधिकतर महिलाओं में एंटीबाडी विकसित होना पाया गया, जबकि एंटीबाड़ी अधिक स्तर पुरुषों में पाया गया।

3–शोध में 18 से 79 वर्ष के लोगों को शामि‍ल किया गया था, पाया गया कि बुजुर्गों के मुकाबले युवाओं में अच्छी एंटीबाजी बनी, जिन 17 (6.9 प्रतिशत) लोगों में एंटीबाड़ी नहीं पायी गयी थी उसमे 60 वर्ष से अधिक लोगों की संख्या 27.3 प्रतिशत थी, जबकि 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या मात्र 1.5 प्रतिशत थी।

4– शोध से यह भी स्पष्ट है कि समय के साथ साथ शरीर में एंटीबाडी बनने की संभावना बनी रहती है, क्योंकि चार माह की स्टडी के बाद पाया गया कि इन 17 में से 14 में चार माह विकसित एंटीबाडी पायी गयी।

5– वैक्सीन की दोनों डोज लेने के 6 से 12 सप्ताह के अन्दर कुल 246 स्वास्थ्य कर्मियों में से मात्र 18 (7.3 प्रतिशत) ही दूसरी लहर मे कोरोना से संक्रमित हुए, इनमे 15 में एंटीबाडी बनी थी, जबकि तीन में नहीं बनी थी। सीरो पाजिटिव वाले जो 15 हेल्थ वर्कर्स कोरोना संक्रमित हुए उनमें एंटीबाडी का स्तर अन्य के मुकाबले कम था, लेकिन कोई भी संक्रमित गंभीर नहीं हुआ। शोध टीम के सदस्य प्रोफेसर सिद्धार्थ चंदेल ने बताया कि वैक्सिनेटेड स्वास्थ्य कर्मियों में कोई भी कोविड संक्रमित व्यक्ति गम्भीर स्थिति में नहीं आया और ना ही किसी की मृत्यु इस कारण से हुई। उन्होंने कहा कि यह यह दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता कि इन्हें दोबारा संक्रमण नहीं होगा, लेकिन इतना जरुर है कि वैक्सिनेटेड व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत कम या ना पड़े।

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