Friday , October 13 2023

चीनी विश्‍लेषकों की नजर में, भारतीयों का चीनी सामानों का विरोध पानी का बुलबुला

शुभम सक्‍सेना

चीन भारत में बहुत लंबे अरसे से अपने उत्पादों को बेच रहा है जिनकी कीमत बाज़ार में उपलब्ध अन्य उत्पादों के दाम के मुकाबले में बहुत हद तक कम होती है। हालांकि चीन के उत्पादों के मामले में एक कहावत पूरे भारत में प्रसिद्ध है कि “चले तो चांद तक वरना शाम तक”। ज्यादातर चीनी उत्पाद ग्राहकों की विश्वसनीयता पर खरे नहीं उतर पाते हैं और कहीं न कहीं वह उत्पाद खरीदते समय ग्राहक के मन में एक बार को यह खयाल जरूर आता है कि अगर यह नहीं चला तो…?? लेकिन इसके बावजूद भी अधिकतर ग्राहक चीनी समान ही खरीदते हैं क्योंकि कम पैसों में ज्यादा विशेषताओं वाली वस्तुओं को खरीदना हम भारतीयों की फितरत में है।

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक अगर सिर्फ हम मोबाइल फोन उद्योगों की ही बात करें तो उसमें चीनी स्मार्टफोन ब्रांडों की भारत में लगभग 72 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है, जो हर कीमत खंड पर हावी है। दिवाली की झालर, गणेश-लक्ष्मी जी की मूर्तियां, पटाखे, कंदील, होली की पिचकारियां, बच्चों के खिलौने लगभग हर छोटे से छोटे उत्पादों पर चीन ने अपना कब्‍जा जमा लिया है। हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली हर दूसरी छोटी से छोटी वस्तु के पीछे छोटे-छोटे लफ्जों में लिखा होता है मेड इन चाइना।

भारत में यह मुद्दा इससे पहले शायद लोगों ने इतना जोर-शोर से नहीं उठाया था क्योंकि कहीं ना कहीं हमें यह लगता था कि जब चीन का इतना बड़ा आर्थिक फायदा हिंदुस्तान की आर्थिक व्यवस्था पर टिका हुआ है और वह हमारी हर छोटी से छोटी जरूरतों को भी कम पैसों में अपने उत्पादों को बेचकर पूरा कर रहा है तो इस स्थिति में चीन किसी भी मंच पर हमारे विरुद्ध नहीं जाएगा। लेकिन अगर 7 जून 2020 को चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख को देखें तो हमें यह साफ-साफ नजर आएगा कि हमारी यह सोच गलत है और चीन ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचता, जैसा हम सोचते हैं। इस लेख में कही गई बातों में साफ-साफ दिखेगा की चीन हमें शुक्रिया कहने की बजाय हम आम नागरिकों का मजाक बना रहा है।

” भारतीय शायद ही चीनी गुणवत्ता के सामान खरीदने का विरोध कर सके” (यह उस लेख का शीर्षक है) इससे जाहिर होता है कि‍ चीन की सोच और हमारी सोच में जमीन आसमान का फर्क है। चीनी विश्लेषकों की माने तो भारत में चीनी उत्पादों को बैन करने की सोच जो आम नागरिकों में पनप रही है वह पूरी तरह विफल है, क्योंकि चीनी उत्पाद आम नागरिकों की जिंदगी में इतनी हद तक घर कर चुके हैं कि इनका प्रतिस्थापन बेहद मुश्किल है। चीनी विश्लेषकों ने कहा कि चीन के खिलाफ बढ़ती भावना भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा उकसाने का परिणाम है। चीनी विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी कि “चीनी उत्पाद हटाओ अभियान” स्थानीय भारतीय लोगों के लिए अधिक बोझ जोड़ देगा, क्योंकि “लागत-कुशल” चीनी उत्पाद बाजार के अच्छे विकल्प हैं। चीन के  दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान के उप निदेशक लू चुनहो  ने कहा कि भारतीयों के लिए चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना काफी मुश्किल है जो उच्च गुणवत्ता के हैं। उन्होंने कहा कि भारतीयों की चीनी उत्पादों की मांग बढ़ेगी और वह दूर नहीं जाएंगे।

ज्ञात हो कि यह बयान चीन से उस वक्त आया है जब लद्दाख और गलवान घाटी  में भारत और चीन की सेनायें आमने-सामने हैं और भारतीय सेना चीनी सेना को अपने इलाके से बाहर निकालने का हर संभव प्रयास कर रही है। यह कोई अनोखी बात नहीं है कि चीन की इस आक्रामक नीति को सिर्फ भारत देख रहा है अपितु भारत के साथ-साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के अन्य देश भी चीन की तानाशाही नीतियों को देख रहे हैं। खुद चीन के अपने क्षेत्र ताइवान और हांग-कांग भी चीन की इन नीतियों के शिकार हैं।

इस वर्तमान परिस्थिति में एक सवाल जो हमारे सामने हमेशा आता है कि क्या हमारे पास ऐसी तकनीक की कमी है जिसकी मदद से हम चीनी सामानों की खरीद पर एक बड़ा अंकुश लगा सकें? इसका जवाब वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार हां भी है और ना भी, क्योंकि इस बात से कोई दो राय नहीं है कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में सस्‍ते होने की वजह से चीनी उत्पादों की उपयोगिता बढ़ गई है। शायद यही एक बहुत बड़ा कारण है कि अधिकतर लोग चीनी उत्पादों के बॉयकॉट की बात तो करते हैं लेकिन वह बातें सिर्फ बातों तक ही सीमित रह जाती हैं। कुछ वामपंथी विचारधारा के लोगों को यह बातें फिजूल की लगती हैं। हममें से ज्यादातर का यह मानना होगा कि अगर यह मांग उठती है कि‍ हमें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की जरूरत है और भविष्य में वह उत्पाद जिसके इस्तेमाल पर हम चीन जैसे और देशों पर निर्भर हैं ,क्या हम उन्हें भारत में ही नहीं बना सकते..? वर्तमान परिस्थिति में शायद इसका उत्तर आप सभी के दिमाग में स्पष्ट ना हो लेकिन हाल ही में मेक इन इंडिया की पहल के बाद धीरे-धीरे ऐसी आर्थिक संस्थाएं निकल कर आ रही हैं जिनका उद्देश्य चीनी सामानों पर आपकी निर्भरता को कम करके खुद का बनाया हुआ उसी गुणवत्ता का उत्पाद आपको देना है जो आपके हर मानदंडों पर खरा उतर सके और जिस की खरीद पर आपको लेश मात्र भी संदेह ना हो।

हालांकि इस प्रक्रिया में समय लगेगा लेकिन ,अगर हमारे प्रयास निरंतर रहे और हम आम नागरिकों ने धैर्य पूर्वक चीनी सामानों पर धीरे-धीरे अपनी पाबंदियां बढ़ाईं तो इससे बाजार में नई भारतीय कंपनियों का उदय होगा जिससे वह मेड इन इंडिया उत्पादों को बाजार में उतारेगी और एक दिन ऐसा जरूर आएगा जिस दिन हमारे यह सभी सतत प्रयास पूर्ण रूप से कारगर सिद्ध होंगे। उस दिन हम गर्व से अपने उत्पादों को अन्य देशों में बेचेंगे जिससे हमारी आर्थिक बढ़ोतरी तो होगी ही साथ ही साथ हम दुनिया की अन्य तकनीकों को भी टक्कर दे सकेंगे। उस दिन हम गर्व के साथ कह सकेंगे कि यह उत्पाद मेड इन इंडिया है और अब हम आत्मनिर्भर हैं।