Thursday , October 12 2023

सांस के रोगियों में रेस्पिरेटरी फेलियर की स्थिति में कारगर है नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन विधि से इलाज

इंडियन चेस्ट सोसाइटी के यूपी चैप्टर ने आयोजित की प्रदेश स्तरीय संगोष्ठी

लखनऊ। ऊत्‍तर प्रदेश में सांस के रोगी बढ़ रहे हैं तथा इस बदलते मौसम में उनकी संख्या काफी हो जाती है, इनमें से कुछ सांस के रोगियों को रेसिपी फेलियर तथा सांस की गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है ऐसे रोगियों में अस्थमा सीओपीडी निमोनिया पल्मोनरी एडिमा a r d s जैसे रोगी शामिल हैं इन रोगियों की गंभीर स्थिति में टाइप वन या टाइप टू रेस्पिरेटरी फेलियर हो जाता है। टाइप व़न फेलियर में सिर्फ ऑक्सीजन की कमी होती है जबकि टाइप टू रेस्पिरेटरी फेलियर में ऑक्सीजन की कमी के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी बढ़ जाती है ऐसे रोगियों को नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन के द्वारा काफी लाभ मिलता है।

यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय (केजीएमयू) के डॉक्टर सूर्यकांत ने शनिवार 9 सितंबर को लखनऊ में इंडियन चेस्ट सोसाइटी के यूपी चैप्टर द्वारा एक प्रदेश स्तरीय संगोष्ठी में दी।  डॉ सूर्यकांत ने बताया कि नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन की शुरुआत चिकित्सा के रूप में 19वीं शताब्दी के मध्य में प्रारंभ हुई जो कि 1980 के बाद काफी तेजी से प्रयोग में लाई गई वर्तमान में नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन द्वारा सांस के गंभीर रोगियों को उपचार की विधि अपनाकर काफी मात्रा में ठीक किया जा सकता है नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन का वह बाहरी रूप है जिसके द्वारा पॉजिटिव प्रेशर से एक मशीन द्वारा नाक में मास्क लगाकर या नाक और मुंह में दोनों में मास्क लगाकर हवा का प्रवाह रोगी के फेफड़े में दिया जाता है जबकि मैकेनिकल वेंटिलेशन में एक छोटा ऑपरेशन करके ट्यूब डालकर यह प्रवाह दिया जाता है यह वेंटिलेशन एक इनवेसिव प्रक्रिया है जबकि नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन एक सरल प्रक्रिया है तथा इसके प्रयोग के दौरान रोगी बात कर सकता है खांसी कर सकता है खाना खा सकता है और यह एक आरामदायक उपचार है।

 

उन्‍होंने कहा कि किसी भी गंभीर रोगी के इमरजेंसी में आने पर अगर वह चेतन अवस्था में है तथा उसका उसका ब्लड प्रेशर 90 से ऊपर है तो उसको नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन पर रखा जा सकता है। उन्‍होंने बताया कि हर 1 घंटे पर उसका आकलन किया जाता है कि उसमें सुधार आ रहा है या नहीं, अगर सुधार आ रहा है तो इसे 1 सप्ताह तक इस रोगी को n i v पर रखा जा सकता है, साथ ही उन्‍होंने कहा कि लेकिन अगर 1 घंटे के अंदर रोगी की तबीयत बिगड़ती है या सुधार नहीं आता है तो रोगी को मैकेनिकल वेंटिलेशन पर शिफ्ट किया जाना चाहिए।

 

इस कांफ्रेंस में प्रतिभागियों को नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन के प्रयोग की कार्यशाला भी आयोजित की गई जिसमें रोगियों जिसमें चिकित्सकों को इसका प्रयोग रोगी पर कैसे करते हैं इसका भी प्रयोग करके दिखाया गया। इस कांफ्रेंस में डॉक्टर सूर्यकांत के अतिरिक्त डॉक्टर बी पी सिंह, डॉ अशोक कुमार सिंह, डॉ अनिल कुमार सिंह, डॉ आशीष टंडन, डॉ अजय कुमार वर्मा, डॉ रवि भास्कर, डॉ संजय लाल आदि भी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम के आयोजन में फि‍लिप्‍स कम्‍पनी ने अपना सहयोग दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.