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गंजेपन में आगे के ही बाल क्‍यों झड़ते हैं, पीछे के क्‍यों नहीं

-आईएमए लखनऊ ने संगोष्‍ठी आयोजित कर मनाया विश्‍व प्‍लास्टिक सर्जरी दिवस

 

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। विश्‍व प्‍लास्टिक सर्जरी दिवस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के तत्‍वावधान में एक संगोष्‍ठी का आयो‍जन किया गया। इस संगोष्‍ठी के संयोजक केजीएमयू के प्‍लास्टिक सर्जरी विभाग के विभागाध्‍यक्ष डॉ विजय कुमार ने इस दिवस के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए वक्‍ताओं को अपने प्रेजेन्‍टेशन देने के आमंत्रित किया।

दवा और ऑपरेशन के बीच का रास्‍ता है लेजर सर्जरी : डॉ विवेक गुप्ता

प्लास्टिक सर्जन डॉ विवेक गुप्ता ने बताया कि कुछ मरीज ऐसे होते हैं जिनकी सर्जरी नहीं की जा सकती है और दवाओं से भी उन्‍हें लाभ नहीं हो रहा होता है, ऐसे में बीच का रास्‍ता लेजर सर्जरी होता है, इसमें बिना चीरा लगाये लेजर (किरणों) के माध्‍यम से एनर्जी डालकर इलाज करते हैं। ये प्रक्रिया बिना भर्ती किये की जाती है। इसके लिए मरीज को 15 से एक माह के अंतर में 4 से 6 बार के अलग-अलग सत्रों में बुलाकर इलाज किया जाता है। 

अलग-अलग प्रकार की बीमारियां व त्‍वचा के रोग जैसे पिगमेंटेशन, अनचाहे बाल, चोट व जलने के निशान, मुंहासे और मुंहासे होने के बाद के गड्ढे, रंगीन निशान जैसे पोर्ट वाइन धब्बे और  बहुत सारे जन्मजात निशानों या बर्थ मार्क जैसी समस्याओं में लेजर ही एकमात्र समाधान हो सकता है। स्किन लेजर के अलावा सॉफ्ट टिशु लेजर के माध्यम से वेरीकोज नसों, स्ट्रेस यूरिनरी इनकांटीनेंस का इलाज, वेजाइनल टाइटनिंग जैसे ट्रीटमेंट गोल्ड स्टैंडर्ड यानी सर्वोत्तम माने जाते हैं। उन्‍होंने बताया कि आज बहुत सारे छोटे- बड़े सेंटर सस्ती चाइना मेड मशीनें लेकर बैठे हैं, लेकिन यह जनता को समझना चाहिए, कि जैसे एक  प्रशिक्षित डॉक्टर और झोलाछाप डॉक्टर में फर्क होता है, वैसे ही सस्ती और अच्छी  लेजर मशीनों में फर्क होता है. अपना इलाज कराने के लिए सही लेजर सेंटर चुनने के लिए मरीज को अच्छी तरह से जांच पड़ताल करनी चाहिए।

मानसिक तनाव दे रहा गंजापन, प्रत्‍यारोपण से उगायें बाल : डॉ.नीरज उपाध्याय

दूसरा प्रेजेन्‍टेशन बालों के प्रत्‍यारोपण पर था। इसमें प्‍लास्टिक सर्जन डॉ.नीरज उपाध्याय ने कहा कि आज की भागदौड़ वाली जिन्‍दगी में प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली में तनाव का स्तर बढ़ता जा रहा है जिसके कारण गंजेपन की समस्या भी बढ़ती जा रही है, प्राय: देखने को मिलता है व्यक्ति का मनोबल केवल उसके गंजेपन के कारण कम हो जाता है जिसका आज के समय में बालों के प्रत्यारोपण के द्वारा स्थाई समाधान उपलब्ध है। उन्‍होंने कहा कि देखा गया है कि व्‍यक्ति के सिर के आगे के बाल कम हो जाते हैं जब‍कि पीछे के बालों पर असर नहीं पड़ता है, ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि पीछे के बालों पर हार्मोन्‍स का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए हम लोग पीछे के बालों से ही आगे के बालों को प्रत्‍यारोपित करते हैं। उन्‍होंने बताया कि आज जो तकनीक हमारे पास उपलब्ध हैं उस के माध्यम से हम किसी भी स्तर तक के गंजेपन को बेहतर बनाने में सक्षम है और यह प्रत्यारोपित बाल हमारे साथ लंबे समय तक चलते हैं। उन्‍होंने बताया कि बालों को लगाते समय यह ध्‍यान रखना चाहिये कि उन्‍हें किसी क्‍यारी की तरह यानी बालों को एक लाइन में नहीं लगाया जाता है, बल्कि इसे जिग-जैग तरीके से लगाया जाता है जिससे कि वे नेचुरल दिखते हैं।

टिश्‍यूज को हाई प्रेशर से ऑक्‍सीजन देकर किया जाता है इलाज : डॉ संध्या पाण्डेय

केजीएमयू के प्‍लास्टिक सर्जरी विभाग की डॉ संध्या पाण्डेय ने इलाज की प्रक्रिया हाईपरबेरिक ऑक्‍सीजन थैरेपी (एचबीओटी) के बारे में जानकारी दी। इसकी उपयोगिता कई बीमारियों में है जैसे डायबिटिक फुट  के घाव, जलने पर, कान की बीमारियों में, ट्रॉमा, कॉस्‍मेटिक, कैंसर जैसी बीमारियों में एचबीओटी की बहुत उपयोगिता है। उन्‍होंने बताया कि निजी क्षेत्र में इस इलाज की कीमत हजारों में है लेकिन यहां केजीएमयू में यह नि:शुल्‍क है। इसकी प्रक्रिया की जानकारी देते हुए उन्‍होंने बताया कि इसमें एक चैम्‍बर में व्‍यक्ति को लिटा दिया जाता है, इस चैम्‍बर में हाई प्रेशर से ऑक्‍सीजन का प्रवाह किया जाता है, इससे मरीज के टिश्‍यूज को जब प्रेशर के साथ ऑक्‍सीजन मिलती है तो वह जल्‍दी हील होते हैं। इसके लिए मरीज को 6 से 8 हफ्ते रोज बुलाया जाता है तथा ऑक्‍सीजन वाले चैम्‍बर में एक घंटे के लिए रखा जाता है। उन्‍होंने बताया कि केजीएमयू में अभी एक बार में तीन मरीजों के लिए चैम्‍बर उपलब्‍ध हैं। उन्होंने बताया कि एचबीओटी की प्रक्रिया शुरू करने के पहले मरीजों की जांच की जाती है, तथा फिट होने की स्थिति में इलाज शुरू किया जाता है। उन्‍होंने बताया कि बॉलीवुड हस्तियां इसका उपयोग अपने को फि‍ट दिखने के लिए करती हैं।

डायलिसिस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए सर्जन बनाता है फि‍स्‍टुला : डॉ. हर्षवर्द्धन

केजीएमयू के प्‍लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. हर्षवर्द्धन ने बताया आजकल किडनी  की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। जिन व्‍यक्तियों को डायलिसिस की जरूरत होती है, उन्‍हें डायलिसिस के लिए एक फिस्ट्यूला बनाया जाता है। इसमें प्‍लास्टिक सर्जन हाथ की वेन को आर्टरी से जोड़ देते हैं, जिससे ब्लड की रफ्तार अच्छी हो जाती है और डायलिसिस की प्रक्रिया में सहूलियत हो जाती है। प्लास्टिक सर्जन इस प्रक्रिया के लिए सबसे उचित होते हैं क्योंकि वे नियमित रूप से इससे बारीक प्रक्रियाएँ करते रहते हैं। इस मौके पर आईएमए लखनऊ के निवर्तमान अध्‍यक्ष डॉ नीरज टंडन, डॉ आरबी सिंह सहित अनेक डॉक्‍टर उपस्थित रहे।

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