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समय रहते अगर हो जाये लिगामेंट सर्जरी, तो नौबत नहीं आयेगी घुटना बदलवाने की

-विशेषज्ञों ने फिट रहने और अर्थराइटिस से बचने के लिए दीं अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां

-विश्व अर्थराइटिस दिवस (12 अक्टूबर) पर अनेक आयोजन कर रहा हेल्थसिटी विस्तार हॉस्पिटल

सेहत टाइम्स

लखनऊ। कोई भी एक्सरसाइज कम से शुरू करके धीरे-धीरे बढ़ायी जाती है, एकदम से ज्यादा एक्सरसाइज करने से नुकसान हो जाता है। एक्सरसाइज शुरुआत में ट्रेनर की मदद से करनी चाहिये, सीखने के बाद अपने आप करिये। टहलना एक अच्छा व्यायाम है, लेकिन यह एक कार्डियक एक्सरसाइज है, क्योंकि यह दिल में खून का दौड़ान बढ़ाती है इस वजह से इसका सर्वाधिक लाभ दिल के रोगों को बचाये रखने के लिए होता है, जहां तक अर्थराइटिस की बात है तो इसके लिए मसल्स को मजबूत करने वाली अलग प्रकार की एक्सरसाइजेस होती हैं, जिन्हें कर के आप अपने हाथ-पैर सहित सभी जोड़ों को दुरुस्त रख सकते हैं। अर्थराइटिस का मतलब जीवन में रुकावट नहीं है, बल्कि सही इलाज के साथ आगे बढ़ते रहना है। यह बात हम इलाज के बाद 15000 मरीजों के आंकड़े के आधार पर कह रहे हैं।

ये बातें विश्व अर्थराइटिस दिवस (12 अक्टूबर) के मौके पर हेल्थसिटी विस्तार और अर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होने वाले जागरूकता कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देने के लिए पत्रकार वार्ता में हेल्थ सिटी विस्तार के मैनेजिंग डाइरेक्टर वरिष्ठ ऑर्थोपैडिक सर्जन डॉ संदीप कपूर और डॉ संदीप गर्ग ने कहीं। अस्पताल द्वारा 12 अक्टूबर को साइकिलथॉन, विंटेज कार रैली, जुम्बा एवं योग कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है।

डॉ गर्ग ने कहा कि हमारे शरीर में अलग-अलग कई मांसपेशियों के समूह हैं जो विभिन्न जोड़ों को चलाने का काम करते हैं, जैसे गर्दन की मसल्स, कमर की मसल्स, कंधे की मसल्स, घुटने की मसल्स। बॉडी के जिस जोड़ की मसल्स कमजोर होंगी, उस जोड़ पर ज्यादा जोर पड़ेगा, जिससे दर्द पैदा होगा। इन मसल्स ग्रुप की मजबूती भी बहुत जरूरी होती है। अगर हमारी मांसपेशियां मजबूत हैं तो शरीर का बैलेंस बना रहता है, जिससे व्यक्ति गिरता नहीं है, क्योंकि बढ़ती उम्र में गिरने का डर ज्यादा बढ़ जाता है। इन एक्सरसाइज को शुरुआत में किसी की देखरेख में सीखकर बाद में अपने आप की जा सकती है। डॉ कपूर ने कहा कि एक्सरसाइज के साथ ही खानपान और नींद भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि वॉकिंग, साइकिलिंग व फिटनेस एक्सरसाइज जुम्बा या कोई अन्य व्यायाम प्रत्येक व्यक्ति को जरूर करना चाहिये।

एक सवाल के जवाब में डॉ संदीप गर्ग ने बताया कि जो अर्थराइटिस अनुवांशिक होती है, जिसे रुमेटिक अर्थराइटिस भी कहते हैं, वह दवा से ही कंट्रोल होती है, इसलिए बराबर दवा लेनी होती है, लेकिन बढ़ती हुई उम्र की अर्थराइटिस जैसे गठिया, ऑस्टियो अर्थराइटिस दवा और एक्सरसाइज से कंट्रोल करते हैं, इन अर्थराइटिस में धीरे-धीरे दवा कम करते हैं, और बाद में बंद कर देते हैं, सिर्फ एक्सरसाइज चलती रहती है।

पत्रकार वार्ता में मौजूद अस्पताल के स्पोटर्स इंजरी विभाग के विशेषज्ञ डॉ सौरभ जैन ने डॉ जैन ने यंग एज में अर्थराइटिस होने की एक बड़ी वजह बतायी कि आजकल की जीवन शैली में व्यक्ति का शारीरिक श्रम कम हो चुका है, ऐसे में जब व्यक्ति कार्डियक विशेषज्ञ के पास पहुंचता है तो वह सबसे पहले वजन कम करने की सलाह देता है, इसके बाद अधिकांशत: होता यह है कि दूसरे दिन से ही व्यक्ति जिम ज्वॉइन करता है, और सोचता है कि जल्दी से अपना वजन कम करें, इस चक्कर में वह भारी-भारी वेट उठाना शुरू कर देता है, जिसका नतीजा यह होता है कि उसके घुटने, कंधे, एड़ी आदि जगहों पर लिगामेंट, जो कि स्प्रिंग की तरह होते हैं, सामान्य से ज्यादा खिंच जाते हैं और टूट जाते हैं, जिससे दर्द पैदा होता है। इसके बाद जब व्यक्ति अपने फिजीशियन के पास पहुंचता है तो सामान्यत: वे उसे दर्द की दवा देते हैं, जिस वजह से उसे तात्कालीन राहत तो मिलती है, लेकिन स्थायी आराम नहीं मिल पाता है, वास्तव में उस समय मरीज की लिगामेंट रिपेयर करने की जरूरत होती है, जिसके लिए उसे स्पोटर्स सर्जन या ऑर्थोपैडिक सर्जन के पास जाना चाहिये। उन्होंने बताया कि ऐसे मरीज की एमआरआई जांच करके लिगामेंट की स्थिति को देखने के बाद एक छोटे से चीरे से दूरबीन विधि से लिगामेंट सर्जरी कर दी जाती है, इसके विपरीत अगर शुरुआत में ही लिगामेंट का इलाज नहीं हुआ तो धीरे-धीरे लिगामेंट की सर्जरी का समय निकल जाता है, और फिर कुछ समय बाद घुटना बदलने की स्थिति आ जाती है।

एक प्रश्न के उत्तर में डॉ सौरभ ने बताया कि यदि बीमारी या किसी वजह से मसल्स कमजोर हो जाती हैं तो एक्सरसाइज करके उन्हें नॉर्मल करने में बहुत समय लगता है, साथ ही एक्सरसाइज कराने वाले और मरीज दोनों में ही डेडीकेशन यानी व्यायाम के प्रति समर्पण की भावना होना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि मसल्स फीजियोथैरेपिस्ट मांसपेशियों की एक्सरसाइज से उन्हें मजबूती प्रदान करता है। फीजियोथैरेपिस्ट के साथ ही मरीज का भी डेडीकेटेड होना जरूरी है, मान लीजिये फीजियोथैरेपिस्ट एक घंटा एक्सरसाइज कराके चला गया, लेकिन इसके बाद मरीज स्वयं कितनी एक्सरसाइज करता है, यह भी महत्वपूर्ण है। इसे आसानी से इस तरह समझा जा सकता है कि जिस प्रकार स्कूल में टीचर सभी विद्यार्थियों को एक सा पढ़ाता है, लेकिन इन विद्यार्थियों में कोई उच्च पदोें पर तो कोई मध्यम तो कोई निचले पदों पर नौकरी करता है, क्योंकि यह निर्भर करता है विद्यार्थी की मेहनत पर, यही बात यहां लागू होती है।

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