-24 वर्षीय युवक को कैंसर के डर के चलते हो गया था हाथों में फंगस
सेहत टाइम्स
लखनऊ। ऐसी अनेक बीमारियां हैं, जिनमें मन:स्थिति या मानसिक सोच की मुख्य भूमिका हैं, इन बीमारियों में अनेक प्रकार के त्वचा रोग भी शामिल हैं। इन मरीजों को जब लक्षणों के साथ उनके मन में चल रहे विचार, डर, क्षोभ जैसी स्थितियों को केंद्र में रखते हुए दवा दी जाती है तो न सिर्फ उनका उनका त्वचा रोग ठीक होता है बल्कि डर भी समाप्त हो जाता है। ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों एक 24 वर्षीय युवक का सामने आया, जिसमें युवक के हाथों में फंगस रोग हो गया था।
यह जानकारी देते हुए गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक व चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि यह युवक उनके पास बीते नवम्बर माह में पहली बार आया था। युवक अपने हाथों में फंगस की शिकायत लेकर आया था। डॉ गिरीश ने बताया कि होम्योपैथी उपचार का मूल मंत्र है कि इसमें उपचार रोग का नहीं बल्कि रोगी का किया जाता है, क्योंकि प्राकृतिक रूप से मनुष्यों का स्वभाव जिस प्रकार अलग-अलग होता है, उसी प्रकार उनकी पसंद-नापसंद जैसी बहुत सी बातें भी अलग-अलग प्रकार की होती हैं। ऐसे में रोग का उपचार करने के लिए रोगी की प्रकृति और लक्षण के अनुसार दवाओं का चुनाव किया जाता है। उन्होंने बताया कि उपचार की प्रक्रिया के दौरान रोगी से जब हिस्ट्री ली गयी तो एक मुख्य बात यह मालूम चली कि उसे कैंसर होने का डर मन में बैठा हुआ है, उसे लगता था कि उसे कैंसर हो जायेगा, उसका यही डर उसके त्वचा रोग का कारण बना।
डॉ गिरीश ने बताया कि इसके बाद युवक को कैंसर का डर दूर करने के लिए दवा दी गयी तथा उसे 15 दिन बाद बुलाया गया। डॉ गुप्ता बताते हैं कि 15 दिन बाद जब युवक दूसरे विजिट पर आया तो उसका कहना था कि मानसिक रूप से अब वह बहुत अच्छा महसूस कर रहा है तथा उसे अब कैंसर होने का डर भी नहीं महसूस हो रहा है, उससे जब हाथ की फंगस की स्थिति के बारे में पूछा गया तो उसका कहना था कि कैंसर होने का डर मेरा दूर हो गया है यह बहुत बड़ी बात है, मुझे अब इसकी चिंता नहीं है कि हाथ का फंगस कब तक ठीक होगा। डॉ गुप्ता ने बताया कि जिस प्रकार मरीज के मन में पहले डर आया और फिर उस डर के कारण फंगस हुआ, उसी प्रकार दवा से पहले डर दूर होता है, फिर उसके बाद त्वचा रोग ठीक होगा। ऐसा दूसरे मरीजों में पहले भी देखा जा चुका है। होम्योपैथी की इस थ्योरी के बारे में डॉ गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथी के अविष्कारक डॉ सैमुअल हैनिमैन ने लिखा है कि यदि शारीरिक व्याधि से ग्रस्त व्यक्ति को दवा लेने के बाद मानसिक आराम मिलना शुरू हो जाये तो यह पक्का है कि दवा ने फायदा करना शुरू कर दिया है, बाद में शारीरिक व्याधि में भी लाभ दिखना शुरू हो जायेगा।
उन्होंने बताया कि कैंसर का डर कैंसर होने से ज्यादा खतरनाक है। उन्होंने बताया कि इसे ऐसे समझें जैसे किसी व्यक्ति को लम्बे समय से कैंसर है, जिसका उसे पता नहीं है, लेकिन जिस दिन से उस व्यक्ति को पता चलता है कि उसे कैंसर है, तो समझ लीजिये वह उसी दिन से मरना शुरू हो जाता है।
ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्ता ने विभिन्न प्रकार के स्त्री रोगों, त्वचा रोगों तथा ऑटो इम्यून डिजीजेस के उपचार पर दर्जनों रिसर्च की हैं, जिनका प्रकाशन अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय जर्नल्स में हो चुका है। उन्होंने साक्ष्य सहित उपचार का विस्तार से वर्णन करने हुए अब तक तीन पुस्तकें भी लिखी हैं।