-विश्व ऑटिज्म दिवस पर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता ने दी ऑटिज्म पर विस्तार से जानकारी
सेहत टाइम्स
लखनऊ। अगर अपनी बात को व्यक्त करने और लोगों के साथ घुलने-मिलने में बच्चा कठिनाई महसूस कर रहा है तो माता-पिता को सतर्क हो जाना चाहिये, क्योंकि हो सकता है बच्चा ऑटिज्म का शिकार हो। ऑटिज्म के लक्षणों को बच्चे की छह-सात माह की उम्र से ही पता लगाया जा सकता है। यह कहना है सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ ‘फेदर्स’ की संस्थापक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता का। एक विशेष मुलाकात में सावनी ने विश्व ऑटिज्म दिवस के मौके पर ऑटिज्म के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक न्यूरो डेवलेपमेंटल डिस्ऑर्डर है जो बच्चे के सोशल स्किल्स, अपनी बात को व्यक्त करने की क्षमता तथा व्यवहार को प्रभावित करता है। जिस प्रकार नॉर्मल बच्चे का बैठना, दौड़ना, खड़े होना, चलना होता है वैसे ही ऑटिज्म बच्चों में भी ये बातें आ जाती हैं लेकिन कभी-कभी हम बच्चे के संचार कौशल और सामाजिक सम्पर्क पर ध्यान नहीं दे पाते हैं कि बच्चा इसमें नॉर्मल है अथवा नहीं। उन्होंने बताया कि कुछ ऐसे लक्षण हैं जिन्हें देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे को ऑटिज्म हो सकता है।
कब हो जायेंं सतर्क
-छह से सात माह में बच्चे की सोशल स्माइल आ जानी चाहिये, यानी अगर मां बच्चे को देखकर हंसे या चेहरे पर तरह-तरह के हंसने वाले भाव बनाये और उसे देखकर बच्चा भी मां की तरफ देखे और मुस्कुराये, अगर बच्चा ऐसा नहीं कर रहा है तो ध्यान देना जरूरी है।
-इसी प्रकार 12 माह की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते भी बच्चा अगर अपना नाम बुलाये जाने पर पलट कर नहीं देख रहा है तो यह ऑटिज्म का लक्षण हो सकता है।
-14 माह तक बच्चे के अंदर प्वॉइंटिंग आ जानी चाहिये, यानी उसे जो भी चीज चाहिये हो तो उसे वह उंगली दिखा कर मांगे। अगर बच्चा ऐसा नहीं कर रहा है तो यह भी ऑटिज्म का लक्षण हो सकता है।
-बच्चा अगर आंख से आंख मिलाकर बात नहीं करता है, तो आप सतर्क हो जायें।
-इसी प्रकार ऑटिस्टिक बच्चे अपनी बात को दूसरों को समझाने में और दूसरों की बात को समझने में दिक्कत महसूस करते हैं।
-ऑटिस्टिक बच्चे एक ही स्थान पर एक ही प्रक्रिया को करते रह सकते हैं, जैसे एक ही जगह पर बार-बार घूमना, अपने शरीर को लगातार हिलाते रहना, हाथ को लगातार फड़फड़ाते रहना।
सावनी बताती हैं कि इस तरह के लक्षण वाले बच्चों के उपचार के लिए लाइसेंस प्राप्त मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा मां के गर्भधारण से लेकर बच्चे की वर्तमान उम्र तक एक उचित विस्तृत इतिहास लिया जाता है, जिसके बाद व्यवहार का विश्लेषण होता है।
सावनी ने बताया कि ऑटिज़्म के कारणों की बात करें तो यह जैविक, जन्म से या वंशानुगत हो सकता है। इसके अलावा बच्चे की असामान्य EEG, मिर्गी या मस्तिष्क में सेरोटोनिन (5-HT) के स्तर में वृद्धि होना, 2 साल से कम उम्र में स्क्रीन टाइम के अत्यधिक उपयोग के कारण वर्चुअल ऑटिज्म हो सकता है जिससे लाक्षण एएसडी जैसे हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा आनुवांशिकी और पर्यावरण दोनों तरह की कमियां जैसे संचार की कमी, माता-पिता की ज्यादा उम्र, गर्भावस्था की जटिलताएं या एक वर्ष से कम समय में गर्भावस्था जैसे कारण भी हो सकते हैं।
ऑटिज़्म के बारे में मिथक
सावनी ने बताया कि ऑटिज्म को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। जैसे
1. ऑटिस्टिक लोग भावनाओं को महसूस नहीं कर सकते
2. वे दोस्त नहीं चाहते
3. यह एक बौद्धिक अक्षमता है
4. वे स्वतंत्र और सफल नहीं हो सकते
5. यह खराब पालन-पोषण का परिणाम है
6. इसे दवा से ठीक किया जा सकता है
7. टीके ऑटिज्म का कारण बनते हैं
8. विशेष आहार से ऑटिज्म ठीक हो सकता है
सलाह
सावनी ने बताया कि बदलाव को अपनाना एक चुनौती हो सकती है। संचार के तरीकों और बच्चों की दिनचर्या पर लगातार ध्यान दें। स्क्रीन टाइम का ध्यान रखें। बच्चे के साथ बातचीत को अधिक प्रभावी बनाने के लिए चित्रों, ध्वनियों और अन्य इशारों का उपयोग करें। उपचार में प्रगति को बनाए रखने के लिए थैरेपिस्ट और दी जा रही थैरेपी के सम्पर्क में रहें।