-स्तनपान कराने से मां से शिशु में नहीं फैलता है कोविड संक्रमण
-साफ हाथ और मुंह पर मास्क का रखें ध्यान, फिर करायें स्तनपान

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। शिशु के लिए मां के दूध से सर्वोत्तम कोई भी आहार नहीं है, आजकल जब संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, ऐसे समय में भी स्तनपान शिशु के लिए जीवन रक्षक का काम करता है, यहीं नहीं यदि मां कोरोना संक्रमित है तो उस हालत में भी साफ-सफाई की गाइडलाइंस का पालन करते हुए मां शिशु को स्तनपान करा सकती है।
यह महत्वपूर्ण जानकारी 1 अगस्त से शुरू हो रहे विश्व स्तनपान सप्ताह की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एवं यूनिसेफ द्वारा आयोजित वर्चुअल वीडियो मीट के मौके पर यूनिसेफ की पोषण विशेषज्ञ डॉक्टर ऋचा सिंह पांडे ने कहा कि स्तनपान शिशु का पहला अधिकार है, यह प्राकृतिक वरदान है जो शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि स्तनपान कराने से पहले और इसके बाद मां को चाहिए सही तरह से अपने हाथों को धो ले। इसके साथ ही मुंह पर मास्क लगाकर तथा जिस स्थान पर बैठकर स्तनपान कराना है, उस स्थान को अच्छी तरह सैनिटाइज करने के बाद बच्चे को स्तनपान कराएं।
मां का दूध निकालकर कटोरी-चम्मच से पिलाने का भी है विकल्प
उन्होंने कहा कि यदि किसी वजह से मां स्तनपान नहीं करा सकती है तो मां का दूध हाथों से दबाकर निकालने के बाद कटोरी चम्मच से शिशु को दिया जाये। दूध निकालने के लिए बाजार में आने वाले प्रेशर पम्प का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही करें। इसके लिए मां दूसरे व्यक्ति की मदद भी ले सकती है। इस दौरान मां और उसकी सहायता करने वाला व्यक्ति अपने हाथों को अच्छी तरह से सैनिटाइज अवश्य कर ले। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हेल्थ वर्कर को यह बताया जाना चाहिये कि इस कोविड काल में वह इस बारे में लोगों का भ्रम दूर करें कि संदिग्ध या पुष्टि कोविड की स्थिति में भी मां शिशु का स्तनपान करा सकती है।
मीट में उपस्थित यूनिसेफ के न्यूट्रीशन ऑफिसर रवीश शर्मा ने कहा कि मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है उन्होंने कहा कि बाजार में मिलने वाला डिब्बाबंद दूध मां के दूध का स्थान नहीं ले सकते बल्कि यह डब्बा बंद दूध शिशु को स्तनपान से होने वाले लाभ से वंचित रखते हैं और यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हैं। उन्होंने बताया कि डिब्बाबंद दूध के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए इन्फेंट मिल्क सब्स्टीट्यूट एक्ट है जिसके तहत डिब्बाबंद दूध के प्रमोशन को रोकने का प्रावधान है। कुछ मेडिकल कारणों से इसके उत्पादन को रोकने का प्रावधान नहीं है।
उन्होंने बताया कि क्योंकि उत्पादन पर रोक नहीं है, सिर्फ प्रमोशन पर रोक होने की वजह से ही इसका प्रचार-प्रसार इस प्रकार किया जाता है कि प्रमोशन की श्रेणी में न आये और प्रमोशन भी हो जाये। जैसे केमिस्ट की शॉप पर डिब्बाबंद दूध ऐसी जगह डिस्प्ले किया जाता है जहां से शॉप पर पहुंचने वाले व्यक्ति की नजर उस पर अपने आप पड़ जाए। ज्ञात हो कि कुछ डॉक्टर भी इसके प्रमोशन में लगे रहते हैं, क्योंकि सिजेरियन केस में शुरुआत में मां को बच्चे से अलग रखते हैं ऐसे में बच्चे के आहार के लिए डॉक्टर डिब्बाबंद दूध को बाजार से लाने को लिख दिया जाता है।
इस बारे में डॉ ऋचा का कहना था कि यह देखा गया है कि अगर बच्चे को एक बार बोतल में डिब्बा बंद दूध दे दिया जाता है तो फिर मां की शिशु को स्तनपान कराने की और बच्चे को डिब्बेवाला दूध पीने की आदत लग जाती है और धीरे-धीरे स्थिति यह हो जाती है कि बच्चा जब बड़ा होता है और डायरिया का शिकार होता है तब यह अहसास होता है कि मां के दूध से मिलने वाली इम्युनिटी का महत्व क्या है।
मीट में यूनिसेफ की गीताली त्रिवेदी ने इन्फेंट मिल्क सब्स्टीट्यूट एक्ट सहित अन्य मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किये, संचालन का दायित्व सम्भाल रहीं यूनिसेफ की ऋचा श्रीवास्तव ने इस कोविड काल में पत्रकारों से अपने दायित्व का निर्वहन करते समय कोविड से सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा बतायी गयी गाइडलाइन्स का पालन करते हुए अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने की अपील की।

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