“नेत्र स्वास्थ्य पर स्क्रीन समय का प्रभाव” विषय पर जन जागरूकता कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने दी सलाह
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सेहत टाइम्स
लखनऊ नोएडा। आजकल के समय विशेषकर कोविड के बाद से हमारी सबकी आदत धीरे-धीरे जरूरत बनती गयी। बच्चों की बात करें तो उनका स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हमारे बच्चों की आंखें सुरक्षित कैसे रहें। नोएडा स्थित पीजीआईसीएच के नेत्र रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. दिव्या जैन ने एक महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए बच्चों के केस में 20-20-20 का नियम अपनाने की सलाह दी है। इस फॉमूला के तहत हर 20 मिनट में 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट की दूरी से स्क्रीन देखनी चाहिये।
मिली जानकारी के अनुसार आज 13 जून को संस्थान के नेत्र रोग विभाग द्वारा “नेत्र स्वास्थ्य पर स्क्रीन टाइम के प्रभाव” विषय पर एक जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें विशेषकर बच्चों के लिए अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये। नेत्र रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. दिव्या जैन ने बताया कि बच्चों द्वारा स्मार्ट फोन, लैपटॉप/डेस्कटॉप आदि उपकरणों का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है।
उन्होंने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि COVID महामारी से पहले के समय में 7-12 वर्ष की आयु के लगभग 30% बच्चों द्वारा प्रतिदिन 5 घंटे से अधिक डिजिटल उपकरणों का उपयोग किया जा रहा था और 44% बच्चों को 1 वर्ष की आयु से पहले स्मार्टफोन दिए गए थे। COVID के उद्भव के बाद, बच्चो द्वारा औसतन लगभग 10-12 घंटे प्रति दिन डिजिटल डिवाइस का उपयोग किया जा रहा है, जो कि उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से आंखों में तनाव, सिरदर्द, मायोपिया या निकट दृष्टि दोष का विकास, शुष्क आंखें और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी के रूप में आंखों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
डॉ दिव्या ने बताया कि इन समस्याओं से बचने के लिए डिजिटल डिवाइस के उपयोग को कम करने की जरूरत है तथा कुछ बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए-
ध्यान रखने योग्य बातें
1) 20-20-20 नियम का पालन करना, अर्थात। हर 20 मिनट में 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट की दूरी देखें
2) टीयर फिल्म को आंखों में फिर से सामान्य रूप से करने के लिए स्वेच्छा से अपनी आंखें झपकाएं जो कि कम पलक दर के कारण लंबे समय तक स्क्रीन देखने पर डिस्टर्ब हो जाती है
3) आंखों से डिजिटल उपकरणों की उचित स्थिति, 1 फुट की दूरी पर मोबाइल, 2 फीट की दूरी पर लैपटॉप, 10 फीट की दूरी से टीवी देखना।
4) स्क्रीन आंख के स्तर से ऊपर नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे आंखें चौड़ी हो जाती हैं और सूखापन बढ़ जाता है
5) बच्चों के लिए बाहरी गतिविधि बढ़ाएं क्योंकि प्राकृतिक प्रकाश से अपवर्तक त्रुटि (refractiv err) विकास को कम होते हुए देखा गया है।
6) स्क्रीन की चमक (brightness) कम होनी चाहिए और चकाचौंध को रोकने के लिए खिड़की, दरवाजे की ओर फेसिंग नहीं होनी चाहिए।
7) बच्चों की आंखों की जांच हर 6 महीने में नियमित रूप से या जरूरत के अनुसार जल्द करना चाहिए।
कार्यक्रम में निदेशक प्रो. अजय सिंह ने स्क्रीन टाइम को कम करने और मनोरंजन के लिए मोबाइल के इस्तेमाल से बचने और खाने के दौरान टेलीविजन देखने की आदत में सुधार करने पर जोर दिया। उन्होंने हरी पत्तेदार सब्जियों और विटामिन ए से समृद्ध पीले फल और सब्जियों के रूप में पौष्टिक भोजन के माध्यम से आंखों के स्वास्थ्य में सुधार और डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते हुए उचित रोशनी के उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सोने से 1 घंटे पहले डिजिटल उपकरणों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इन उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी बच्चों के नींद पैटर्न पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।
संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक, डॉ आकाश राज ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया और डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते समय उचित मुद्रा में रहने की सलाह दी अन्यथा यह लंबे समय तक पोस्चर विकारों जैसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस आदि के विकास को जन्म दे सकता है।
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