-आईएमए में आयोजित सीएमई में डॉ निरुपमा पांडे मिश्रा ने दी प्रस्तुति
सेहत टाइम्स
लखनऊ। ऑटिज्म 18-24 माह के बच्चों में भी हो सकता है, इसके लिए मां को सतर्क रहना जरूरी है। यदि बच्चे में विकास (बोलना, चलना, सुनना) में देरी हो, अपने आप में खेले, कुछ विशेष पसंदीदा कपड़े या खिलौने ही रखें तो मां को सतर्क हो जाना चाहिए। समय से इस समस्या को पहचान कर बच्चे की मदद की जा सकती है।
यह जानकारी निदेशक, राजेश्वरी हेल्थ केयर लखनऊ व वाइस प्रेसिडेंट लखनऊ एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स डॉ निरुपमा पांडे मिश्रा ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ द्वारा 2 अप्रैल को यहां आईएमए भवन में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स और सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में अपने प्रेजेन्टेशन में दी। उन्होंने ऑटिज्म बीमारी के लक्षण और निदान के उपाय बताते हुए कहा कि ये बच्चे आम बच्चों में घुल मिल नहीं पाते, अपने को व्यक्त नहीं कर पाते।
उन्होंने कहा कि आटिज्म हर 100 में एक बच्चे को हो सकता है, पर इस विषय में अभी भी जानकारी का अभाव है। इसलिए मां-बाप, टीचर्स और डॉक्टरों को भी इसके लक्षण समझने से इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक भले ना कर सके पर इन बच्चों की जीवन-शैली अवश्य बेहतर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसकी कोई दवा या स्टेम सेल थेरेपी नहीं है। संगीत को भी इनके उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
डॉ निरुपमा ने कहा कि इसके अलावा मानसिक और शारीरिक बीमारियों को अलग-अलग श्रेणी में विभाजित करना भी ठीक नहीं है क्योंकि कई बार इससे मर्ज की जड़ का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक दृष्टि से भी उनपर मनोरोगी का ठप्पा लग जाता है। इसलिए मरीज को संपूर्णता में देखना ही उचित है। उन्होंने कहा कि विदेशों में इसकी पहल हो गई है। हमारे यहां भी इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं। इससे मरीजों में मानसिक/शारीरिक का भेद-भाव कम होगा और उनका बेहतर इलाज हो सकेगा।