केजीएमयू के पैरामेडिकल छात्र-छात्राओं के लिए आयोजित की गयी वर्कशॉप
केजीएमयू के सेंटर फॉर एडवांस स्किल डेवलेपमेंट व पर्यावरण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय कार्यशाला

लखनऊ। बायोमेडिकल वेस्ट को ठिकाने लगाना एक बड़ी समस्या है। इसके निस्तारण के साथ ही इसका खाद बनाने में किस तरह उपयोग किया जाये, इसके बारे में जानकारी देने के लिए पैरामेडिकल की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में किया गया। इस तरह की यह पहली वर्कशॉप है जिसकी शुरुआत किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एडवांस स्किल डेवलेपमेंट एवं केजीएमयू के पर्यावरण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में की गयी। सेंटर फॉर एडवांस स्किल डेवलेपमेंट के मुखिया व डीन पैरामेडिकल साइंसेस प्रो विनोद जैन ने बताया कि ऐसी कार्यशाला एडवांस स्किल डेवेलपमेंट द्वारा प्रत्येक सप्ताह आयोजित की जाएगी।
प्रो जैन ने बताया कि इस कार्यशाला में चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैरामेडिकल साइंसेस के 32 छात्र-छात्राओं के प्रथम बैच को फिल्मांकन, प्री-टेस्ट एवं साइट विजिट के माध्यम से बायोमेडिकल वेस्ट के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए जागरूक किया गया। इस अवसर पर पर्यावरण के प्रति छात्र-छात्राओं को जागरूक करने के साथ ही बायोमेडिकल वेस्ट से खाद बनाने एवं इसके निस्तारण के बारे में विस्तार से बताया गया।
प्रो0 विनोद जैन ने कार्यशाला में उपस्थित विद्यार्थियों को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बदलती जीवनशैली में बीमार लोगों की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है और उसी हिसाब से इन मरीजों के इलाज में प्रयुक्त होने वाले सामानों की संख्या बढ़ रही है, जिन्हें इस्तेमाल करके कचरे में फेंक दिया जाता है, जो एक बायोमेडिकल कचरे को रूप ले लेता है, इससे न केवल और बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है बल्कि जल, थल और वायु सभी दूषित होते हैं। उन्होंने बताया कि ये कचरा भले ही एक अस्पताल के लिए मामूली कचरा हो लेकिन ऐसे कचरे से इन्फेक्शन, एचआईवी, महामारी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होने का डर बना रहता है।

इस कार्यशाला में केजीएमयू पर्यावरण विभाग की डॉ कीर्ति श्रीवास्तव ने उपस्थित विद्यार्थियों को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में बताया कि अस्पताल जहां हमें रोगों से मुक्ति प्रदान करता है, वहीं इस विभिन्न प्रकार के हानिकारक अपशिष्ट यानि कचरा भी छोड़ता है। लेकिन यह हमारी समझदारी पर निर्भर करता है कि हम इससे कैसे छुटकारा पाएं। उन्होंने कहा कि यह संभव ही नहीं है कि अस्पतालों से कचरा न निकले, परन्तु इसके खतरे से बचने के लिए इसका उचित प्रबंधन और निपटान आवश्यक है।
इस अवसर पर डॉ डी हिमांशु ने बताया कि अस्पताल एवं घरों से निकलने वाले कूड़े का उचित निस्तारण किस प्रकार से किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि किस रंग की डस्टबिन में कौन सा वेस्ट निस्तारित किया जाना चाहिए, जैसे लाल रंग की बिन में प्लास्टिक और रबड़ इत्यादि का कचरा रखना चाहिए। पीले रंग की बिन में मानव अंग, रुई, पट्टी इत्यादि, नीले रंग की बिन में कांच की वस्तुएं आदि तथा काले रंग की बिन में म्यूनिस्पिल कचरा, जैसे भोजन आदि। इसके साथ ही उन्होंने घरों से निकलने वाले कचरे को गीले और सूखे को किस प्रकार अलग-अलग रखे और उसे निस्तारित करे इस बारे में जानकारी दी। कार्यशाला का संचालन मुख्य रूप से केजीएमयू सेंटर फॉर एडवांस स्किल डेवेलपमेंट की दुर्गा गिरि ने किया।

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