वर्ल्ड सेप्सिस डे पर केजीएमयू में आयोजित हुआ जागरूकता कार्यक्रम
लखनऊ। क्या आप चिकित्सक से बिना पूछे अपनी जानकारी के मुताबिक या झोलाछाप डॉक्टर की राय से एंटीबायटिक दवा का इस्तेमाल करते हैं, अगर करते हैं तो यह गलत है, जिस दवा को खाने की सलाह वर्षों की पढ़ाई के बाद डॉक्टर दे पाता है उसी दवा को कोई भी व्यक्ति अपने मन से कैसे खा और खिला सकता है। दरअसल होता यह है कि इन दवाओं को अपने मन से खाने के कारण मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया का शिकार हो जाता है, इसी के चलते मरीज को सेप्सिस होने का खतरा बढ़ जाता है। शरीर के अंदर अति तीव्र प्रतिरोधक क्षमता के कारण सेप्सिस होता है।
पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग के डॉ वेद प्रकाश ने यह जानकारी आज वर्ल्ड सेप्सिस डे के अवसर पर एक जागरूकता कार्यक्रम में दी। यह कार्यक्रम शताब्दी अस्पताल फेज 2 स्थित विभाग में आयोजित किया गया था। चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ को जागरूक करने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ वेदप्रकाश ने बताया कि सेप्सिस बीमारी मुख्य रूप से संक्रमण के चलते होती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी की भयावहता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व में 8 मिलियन लोग हर साल सेप्सिस के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। में चूंकि सबसे ज्यादा असर मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है, यह क्षमता कमजोर हो जाती है। इसलिए मरीज में रोगों से लड़ने की क्षमता नहीं रहने के कारण रोग हावी हो जाता है।
उन्होंने बताया कि सेप्सिस होने का खतरा वयस्कों में 90 फीसदी और बच्चों में 70 फीसदी होता है। मरीजों के फेफड़ों, त्वचा, पेशाब की नली, पेट में संक्रमण हो जाता है। फेफड़ों में संक्रमण से 35, पेशाब की नली में 25 तथा पेट और त्वचा के संक्रमण में 11 फीसदी सेप्सिस रोग होने की संभावना रहती है। उन्होंने बताया कि एक वर्ष से कम की आयु का बच्चा व 65 वर्ष से ऊपर के बुजुर्ग को इस बीमारी की संभावना ज्यादा रहती है, क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
कार्यक्रम में सीनियर रेजीडेन्ट डॉ अंकित कुमार ने भी इस बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने विचारों को रखा। इसके अलावा कार्यक्रम में सीनियर रेजीडेंट्स डॉ जयेन्द्र शुक्ला, डॉ विकास गुप्ता, डॉ सुलक्षणा गौतम के अलावा कई पैरामेडिकल स्टाफ भी उपस्थित रहा।

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