अस्पतालों में सीजेरियन प्रसव कराने के संबंध में दिशा-निर्देश तय करने की मांग को लेकर दायर की गयी थी याचिका

उच्चतम न्यायालय ने अस्पतालों में सीजेरियन प्रसव को लेकर दायर की गयी जनहित याचिका को ख़ारिज करते हुए इस तरह के विषय को लेकर याचिका दायर करने पर प्रश्न भी उठाया है. उच्चतम न्यायालय ने अस्पतालों में सीजेरियन प्रसव कराने के संबंध में दिशा-निर्देश तय करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए आज कहा कि यह याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने याचिका दायर करने वाले पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया और चार सप्ताह के भीतर यह राशि शीर्ष सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पास जमा कराने को कहा। पीठ ने कहा, ‘‘आप क्या चाहते हैं? आप बताएं कि आप पर कितना जुर्माना लगाया जाये? आप चाहते हैं कि न्यायालय दिशा-निर्देश तय करे कि सीजेरियन प्रसव कैसे हों? क्या यह जनहित याचिका है?’’
पीठ ने कहा, ‘‘जनहित याचिका पर विचार करते हुए हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।’’ रीपक कंसल नामक व्यक्ति की याचिका में आरोप लगाया गया है कि कोई ठोस नीति नहीं होने के कारण ‘स्वास्थ्य क्षेत्र के नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन और दुरुपयोग किया जा रहा है। याचिका में दावा किया गया है कि कई निजी अस्पताल और प्रसव केन्द्र सिर्फ धन कमाने के लिए बिना वजह सीजेरियन प्रसव का रास्ता अपनाते हैं।
कंसल ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि सीजेरियन प्रसव सिर्फ तभी होना चाहिए जब यह मेडिकल अनिवार्यता बन जाये। उसने दावा किया है कि भारत में ऐसे उदाहरण हैं जहां बिना किसी मेडिकल अनिवार्यता के सिर्फ धन कमाने की लालच में निजी अस्पतालों ने सीजेरियन प्रसव कराया है।

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