-विश्व पार्किन्सन दिवस पर केजीएमयू के पीएमआर विभाग में संगोष्ठी का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। पार्किन्सन रोग वृद्धों में होने वाली प्रमुखतः लकवा की बीमारी है, जिसमें हाथ व पैरों की मांशपेशियों में गंभीर जकड़न तथा कम्पन होना पाया जाता है। इसमें रोगी को चलने-फिरने में तथा हाथों से कार्य करने में कठिनाई होती है। इस बीमारी का वर्तमान में कोई पूर्ण इलाज नहीं है। इसके लक्षणों को कम करने के लिए कई सारी थेरेपी उपलब्ध हैं, जिसमें डोपामीन थेरेपी प्रमुख है। इसके अलावा पार्किन्सन रोग का अधिकतम सफल इलाज फिजियोथेरेपी से मूवमेंट थेरेपी द्वारा संभव है, जिससे रोगी को अधिकतम लक्षणों से निजात दिलाई जाती है।
यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार ये जानकारी आज विश्व पार्किन्सन दिवस (11 अप्रैल) के अवसर पर यहां पीएमआर डिपार्टमेंट (आरएएलसी) केजीएमयू लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में डॉ अरविन्द कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर द्वारा व्याख्यान में दी गयी। उन्होंने बताया कि यह बीमारी 50 वर्ष की उम्र के उपरान्त प्रारम्भ होती है तथा धीरे-धीरे गंभीर रूप लेकर मरीज को असहाय बना देती है। इसका वास्तविक कारण अभी तक पता नहीं है, परन्तु ऐसा माना जाता है कि पूर्व में हुई मस्तिष्क की चोट या इंफेक्शन की वजह से यह बीमारी हो जाती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पालतू जानवरों के सम्पर्क में ज्यादा रहने से भी यह रोग हो सकता है। इस रोग में मस्तिष्क का क्षय प्रारम्भ हो जाता है, जिससे शरीर की मांसपेशियों का नियंत्रण खत्म हो जाता है। इसमें प्रमुखतः मस्तिष्क में पाये जाने वाले डोपामीन हार्मोन की कमी हो जाती है, जिससे मस्तिष्क का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है।
व्याख्यान में बताया गया कि बीमारी की प्रारम्भिक अवस्था में हाथ व पैरों की मांसपेशियों में गंभीर जकड़न होती है, जिससे हाथ व पैरों का मूवमेंट करना मुश्किल हो जाता है, साथ ही हाथ व पैरों में कम्पन भी होने लगता है। इससे रोगी को उठने-बैठने तथा चलने में कठिनाई होती है तथा प्रायः ऐसे रोगी आगे झुककर छोटे कदमों से तेज चलने लगते हैं। हाथ से काम करने में कठिनाई होती है तथा पकड़ी हुई चीजें गिरने लगती हैं। इसके अतिरिक्त लिखने में परेशानी होती है तथा चेहरे की मांसपेशियों का कार्य करना बंद हो जाता है, जिससे रोगी का चेहरा मास्क जैसा लगने लगता है, क्योंकि चेहरे के हाव-भाव गायब हो जाते है। रोगी की आवाज में भी परिवर्तन आ जाता है तथा उच्चारण भी सही तरीके से नहीं हो पाता है। शरीर की पोजीशन/मुद्रा भी खराब हो जाती है तथा व्यक्ति आगे की तरफ झुका रहता है।
इस बीमारी का वर्तमान में कोई प्रभावी इलाज नहीं है। इसके लक्षणों को कम करने के लिए कई सारी थेरेपी उपलब्ध हैं, जिसमें डोपामीन थेरेपी प्रमुख है, जिससे डोपामीन का स्तर मस्तिष्क में सही करके बीमारी के लक्षणों में सुधार किया जाता है। कुछ लोगों में जब इस थेरेपी से सुधार नहीं हो पाता तब सर्जरी की आवश्यकता होती है, जिसमें डीप ब्रेन स्टीमुलेशन किया जाता है।
पार्किन्सन रोग का अधिकतम सफल इलाज फिजियोथेरेपी से मूवमेंट थेरेपी द्वारा संभव है, जिससे रोगी को अधिकतम लक्षणों से निजात दिलाई जाती है। इसमें मांसपेशियों की अकड़न को कम करके उनको सुदृढ़ बनाकर रोगी को बीमारी से पहले की भांति क्रियाशील किया जाता है एवं उसको अपनी दैनिक क्रियाओं के लिए आत्मनिर्भर बनाया जाता है। पैसिव मूवमेंट, स्ट्रेन्थ एक्सरसाइजेस व एडीएल ट्रेनिंग प्रमुख तकनीक है। इसके अतिरिक्त ग्रुप एक्सरसाइज, रिक्रिएशनल एक्टिविटी से रोगी को पूर्व की भांति सामाजिक रूप से गतिशील व सक्षम बनाया जाता है। रोगी को जोड़ों में दर्द से निजात दिलाने के लिए हीट थेरेपी व इन्टरफ्रेन्शियल करेंट से इलाज देकर अधिकतम क्रियाशील बनाकर सफलतापूर्वक रिहैब किया जाता है।
इस मौके पर डा0 अतुल मिश्रा, डा0 रविन्द्र गौतम, मानवेन्द्र सिंह, मनमोहन व हार्षिका (फिजियोथेरेपिस्ट) व फीजियोथेरेपी इंटर्न एवं छात्रों द्वारा प्रतिभाग लेते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए गए। निकट भविष्य में पार्किन्सन बीमारी का फीजियोथेरेपी से एडवान्स इलाज पर चर्चा हुई।