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मां हमें जो भाषा सिखाती है, वही होती है मातृ भाषा : प्रो विनोद जैन

-अंतर्राष्‍ट्रीय भाषा दिवस पर केजीएमयू में आयोजित हुआ कार्यक्रम


सेहत टाइम्‍स
लखनऊ।
हिंदी भाषा अपनी मातृभाषा है हम जब पैदा होते हैं और हमारी मां जिस भाषा को हमें सिखाती है उसी को मातृभाषा कहते हैं।
यह बात आज 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय भाषा दिवस के अवसर पर केजीएमयू पैरामेडिकल विज्ञान संकाय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्‍य वक्‍ता अधिष्ठाता पैरामेडिकल विज्ञान संकाय प्रो विनोद जैन ने कही। इस बार अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम – बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग चुनौतियां एवं अवसर है। प्रो जैन ने कहा कि हमारी हर किताबें अंग्रेजी में आती हैं जबकि हम चाहते हैं कि हम चाहे वो दंत विज्ञान संकाय की हो, चाहे वह मेडिकल की किताबें हो चाहे वह पैरामेडिकल के किताबें, इन सबका हिंदी में भी उल्लेख होना चाहिए। प्रो जैन ने सारे प्रतिभागियों को बधाइयां दीं।

इस कार्यक्रम में दो प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, पहली प्रतियोगिता रंगोली एवं दूसरी स्वरचित कविता प्रतियोगिता थी। प्रतियोगिता के जज डॉ आर. के. दीक्षित, डॉ अमिय अग्रवाल, डॉ ज्योति चोपड़ा एवं डॉ शिवली थीं। रंगोली प्रतियोगिता में समूह – 6 ने प्रथम स्थान एवं समूह-10 ने द्वितीय स्थान, जबकि समूह – 9 तृतीय स्थान प्राप्त किया।
इसी प्रकार स्वरचित कविता प्रतियोगिता में दीपमाला तिवारी को प्रथम स्थान, दिव्यांशी गुप्ता को द्वितीय स्थान एवं अदिति पटेल को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ।


गांव हो या शहर, मातृ भाषा को नहीं भूलना चाहिये


इस मौके पर डॉ आरके दीक्षित ने कहा हम चाहे शहर चले जाएं या गांव हमें अपनी भाषा को नहीं भूलना चाहिए और हमें गौरव से अपनी भाषा में बात करनी चाहिए।


भाषा को वापस लाने के लिए करनी होगी मेहनत


डॉ अमिय अग्रवाल ने कविता के माध्यम से देश के जवानों द्वारा कोरोना काल में किए गए काम एवं मरीजों को याद किया और बताया वह खाली दोपहर सनसनी हमे डरा जाती थी। उन्होंने कहा किसी भी कार्य को करने के लिए हमें दिलोंजान से लगना पड़ता है इसलिए अगर हमें फिर से अपनी भाषा को वापस लाना है तो हमें उसके लिए फिर से मेहनत करनी पड़ेगी।


अफसोस है कि हम हिन्‍दी में अटकते हैं


डॉ ज्योति चोपड़ा ने बताया कि हम बहुत सारे एप्स का यूज कर रहे हैं जिसके द्वारा हम लोगों की बातों को आसानी से ट्रांसलेट करके समझ लेते हैं परंतु अपनी हिंदी भाषा में अटकते हैं।


मातृभाषा में झलकनी चाहिये संस्‍कृति


डॉ शिवली ने बताया कि हमें इस प्रकार के कार्यक्रम करते रहना चाहिए जिससे हमारी संस्कृति हमारी मातृभाषा में झलके।

कार्यक्रम का संचालन सोनिया शुक्ला ने किया तथा इस कार्यक्रम को सफल बनाने में आकांक्षा दीप, रश्मि वर्मा, अनामिका राजपूत, सचिन शर्मा एवं मनीष का विशेष योगदान रहा।

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