-आगरा मेडिकल कॉलेज की डॉ रुचिका गर्ग की स्टडी में सामने आये कई तथ्य
-इंडियन मीनोपॉज सोसाइटी के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुई है स्टडी
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। एस्ट्रोजन हार्मोन, जो स्त्री को मां बनाने में सहायक है, ने वैश्विक महामारी कोविड की गंभीरता से भी स्त्री को बचाया है। उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रुचिका गर्ग द्वारा पिछले साल मार्च 2020 से सितंबर 2020 के बीच किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
‘सेहत टाइम्स‘ से विशेष वार्ता में डॉ रुचिका ने बताया कि अध्ययन में यह पाया गया कि एस्ट्रोजन हार्मोन ने कोरोना वायरस के एसीई 2 रिसेप्टर को ब्लॉक कर दिया इसलिए जिन महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर अच्छा था उनकी जान बच गई। स्टडी के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए डॉ रुचिका ने बताया कि उनके यहां मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने वाले 720 कोरोना संक्रमित मरीजों (427 पुरुष और 293 महिलाएं) पर एक स्टडी की गई। उन्होंने बताया कि इन सभी का इलाज एक ही गाइडलाइन के अनुसार किया गया साथ ही अन्य पैरामीटर्स को भी देखा गया। उन्होंने बताया कि 427 पुरुषों में 83 पुरुषों यानी 19.43 प्रतिशत की मृत्यु हो गई जबकि 293 महिलाओं में से 33 महिलाओं की मृत्यु हुई जो कि 11.26% है।
डॉ रुचिका ने बताया कि 293 महिलाओं में भी दो ग्रुप बनाकर स्टडी की गई, इसमें 48 वर्ष तक की आयु वाले एक ग्रुप में 185 वे महिलाएं थीं जिनके पीरियड्स आ रहे थे और वे मां बन सकती थीं, जबकि दूसरे ग्रुप में 48 वर्ष से ज्यादा उम्र की उन 108 महिलाओं को रखा गया जिनके पीरियड बंद हो चुके थे।
डॉ रुचिका ने बताया कि चूंकि रजोनिवृत्ति यानी पीरियड बंद होने पर एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है, इसलिए जिन 108 महिलाओं के पीरियड्स बंद हो चुके थे, उनमें 17 महिलाओं यानी 15.07 प्रतिशत की मौत हुई जबकि दूसरे ग्रुप की 185 महिलाओं जिनके पीरियड्स आ रहे थे और वे मां बन सकती थीं, में से 16 यानी 8.64% की मृत्यु हुई।
एस्ट्रोजन की तरह टेस्टोस्टेरोन नहीं रहा असरकारक
उन्होंने बताया इस स्टडी में यह तथ्य भी सामने आया कि जिस तरह एस्ट्रोजन हार्मोन ने महिलाओं को कोरोना की गंभीरता से बचाया, वहीं पुरुषों में पाए जाने वाले टेस्टोस्टेरोन हार्मोन (सेक्स हार्मोन) का कोरोना के रिसेप्टर पर असर नहीं दिखा। इसीलिए महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा संक्रमित हुए और उनकी मृत्यु भी ज्यादा हुई। उन्होंने बताया उनकी यह स्टडी इंडियन मीनोपॉज सोसाइटी के अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में प्रकाशित हो चुकी है।