-फोन पर बात करने की फिक्र मरीज को नहीं, डॉक्टर को रहती थी
-केजीएमयू में 20 दिन भर्ती रहने के बाद कोरोना की जंग जीते दवा व्यवसायी ने साझा किये अनुभव

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। मौजूदा समय में चल रहे कोविड काल में इलाज को लेकर दुर्व्यवस्थाओं की खबरों के बीच सुखद अनुभूति देने वाली खबरें भी हैं। कोविड की जंग की जीत कर 20 दिनों बाद केजीएमयू से घर लौटे 61 वर्षीय दवा व्यवसायी ने जो अपने अनुभव शेयर किये हैं, उससे निश्चित रूप से इस महामारी से जंग लड़ रहे कोरोना योद्धाओं को जो ऊर्जा मिलेगी वह कोरोना के खिलाफ जंग में हौसलों को नयी ऊंचाई देने वाली है।
यहां माधव नगर, सेक्टर 11, इंदिरा नगर के रहने वाले सुरेश कुमार का दवाओं का बिजनेज है। सुरेश कुमार ने अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए बताया कि बीती जुलाई के आरम्भ में मैं अपनी पत्नी की कुछ पैथोलॉजी जांच कराने के सिलसिले में एक-दो पैथोलॉजी में गया था, उनका कहना है कि मुझे ऐसा लगता है कि वहीं से कुछ संक्रमण मुझे हुआ होगा। इसके बाद कोविड के लक्षण दिखने पर मैंने प्राइवेट पैथोलॉजी में जांच करायी जिसकी रिपोर्ट दूसरे दिन पॉजिटिव पता चली। इसके बाद सीएमओ ऑफिस से मेरे पास फोन आया कि आपको भर्ती होना है, इसके बाद आनन-फानन एम्बुलेंस आयी और मुझे केजीएमयू ले गयी। इस बीच घरवालों की जांच हुई तो मेरी पत्नी और बड़ी बेटी भी कोरोना पॉजिटिव निकलीं। वे दोनों तो दूसरे अस्पताल में भर्ती हुईं और मैं केजीएमयू के कोरोना वार्ड में भर्ती कर लिया गया।
सुरेश कुमार बताते हैं कि चार बेड के बनाये गये वार्ड में भरपूर सफाई दिखी, डॉक्टर व दूसरे चिकित्सा कर्मी सभी अच्छे से बात कर रहे थे। फिर मुझे कुछ दिक्कत होने के कारण आर्इसीयू में रखा गया था। अस्पताल के अनुभव बताते हुए सुरेश कुमार कहते हैं कि नाश्ता में अंडा, जूस, पोहा, पकौड़े जैसी तमाम चीजों के साथ दोपहर के खाने, रात के खाने की क्वालिटी बहुत अच्छी थी।
उन्होंने बताया कि मैं डॉ डी हिमांशु की देखरेख में भर्ती था। उन्होंने बताया कि डॉक्टर ने मुझे अपना फोन नम्बर दे रखा था, और कहा था कि 24 घंटे में जब भी जरूरत लगे तो फोन करियेगा, फोन खुला रहेगा। सुरेश कुमार बताते हैं कि कई बार स्थिति ऐसी हो जाती थी कि डॉक्टर अपनी तरफ से फोन करके सबका हाल लेते थे, कई बार तो ऐसा हुआ कि मेरे साथ भर्ती वार्ड में दूसरे मरीजों से का फोन नहीं उठा तो डॉक्टर साहब मेरे फोन पर करके उस मरीज को बताने को कहते थे, तो मैं अपने बिस्तर से ही आवाज लगाकर उस मरीज को कहता था कि तुम्हारा फोन नहीं उठ रहा है, डॉक्टर साहब फोन कर रहे हैं।
सुरेश कुमार कहते हैं कि सच कहूं तो मुझे खुद ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी, मेरे मस्तिष्क में आमतौर से सरकारी अस्पताल की जो छवि होती है, वही विद्यमान थी, लेकिन ऐसे व्यवहार को देखकर मैं सभी डॉक्टरों और उनके सहायक कर्मचारियों को अपना आभार व्यक्त करने से रोक नहीं पा रहा हूं। वह कहते हैं कि मैं 61 साल का हूं और इतने बड़े और महत्वपूर्ण अस्पताल से इतने अच्छे इलाज, देखभाल और व्यवहार के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
सुरेश कुमार कहते हैं कि डॉक्टरों के समर्थन, समर्पण, स्नेह, देखभाल और प्यार के बिना रोगी कभी रिकवरी नहीं कर सकते। उनकी इस सेवा को जीवन में कभी नहीं भूल पाऊंगा। पीपीई किट पहने सभी चिकित्सक व चिकित्सा कर्मी मुझे एंजल लगते थे, इन्हीं के कारण आज मैं फिर से अपने परिवार के साथ हूं। सुरेश कुमार ने यूपी सरकार और अधिकारियों की भी सराहना की। वह कहते हैं कि सरकारी अस्पताल के बारे में सामान्य धारणा केवल नकारात्मक है, जिसे इन डॉक्टर्स-कर्मी जैसे कोरोना योद्धाओं ने पूरी तरह से पलट दिया है।

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