-मुख्यमंत्री को भेजे ज्ञापन में कहा, सरकारी और प्राइवेट में भेदभाव क्यों
-बड़ी भ्रम की स्थिति है, पूरे प्रदेश के लिए तय कर दें एक गाइडलाइन

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। उत्तर प्रदेश नर्सिंग होम एसोसिएशन ने कुछ जिलों में प्राइवेट हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमण पाए जाने पर डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर लिखने का विरोध किया है। एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि प्रदेश स्तर पर एक गाइडलाइन जारी की जाए जिसे नर्सिंग होम फॉलो कर सकें, अलग-अलग स्तर पर जारी गाइडलाइंस से भ्रम की स्थिति है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ सुशील सिन्हा तथा सचिव डॉ देवेश कुमार की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुए कहा गया है कि इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर मांग की गयी है कि कोरोना का मरीज मिलने पर प्राइवेट अस्पतालों पर सीलिंग और एफआईआर की कार्यवाही न की जाए तथा उन्हें भी विसंक्रमित एवं क्वारंटाइन करने की गाइडलाइन पूरे उत्तर प्रदेश में लागू की जाए।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि आईसीएमआर, डब्ल्यूएचओ और लोकल गाइडलाइंस में बहुत अंतर है, जिससे भ्रम का माहौल है। डॉ सुशील ने डॉक्टरों पर एफआईआर लिखने, अस्पताल सील करने तथा रासुका लगाने की धमकी दिए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण पर फैक्टरी तथा उद्यमी पर कोई कार्यवाही नहीं होती है पर अस्पताल में संक्रमण मिलने पर दफा 307 का केस दर्ज करने की धमकी दी जा रही है।
सचिव डॉ देवेश मौर्य ने कहा है कि प्रशासन ने अनेक जिलों में डॉक्टर खिलाफ एफआईआर लिखी है तथा अस्पतालों को सील किया गया है। जहां सरकारी अस्पतालों में कोरोना का मरीज मिलने पर उसे केवल विसंक्रमित किया जाता है, चिकित्साकर्मी क्वारंटाइन किये जाते हैं, वहीं प्राइवेट अस्पताल को बंद करने से निराशा एवं भय का माहौल बनता है। एसोसिएशन के संरक्षक डॉ एसके भसीन ने कहा कि कोरोना एक बहुत ही संक्रामक रोग है, पूरी सावधानी बरतने के बाद भी यह रोग दूसरों को लग जाता है। उन्होंने कहा है कि सरकारी व्यवस्था में फुल पीपीई किट पहनने के बाद भी अनेक स्वास्थ्य कर्मी इससे प्रभावित हुए हैं, जबकि बहुत सारे मरीजों में यह पता नहीं चलता।
उन्होंने कहा है कि प्राइवेट अस्पतालों में दूसरी बीमारी का इलाज कराने आए मरीजों में कोरोना मिलने पर डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर लिखी गई है तथा अस्पतालों को सील किया गया है, इससे डॉक्टरों में भय का वातावरण बन रहा है। एसिंप्टोमेटिक मरीजों में बीमारी की पहचान का कोई तरीका नहीं है, उन्होंने यह भी कहा है कि हर जिले में अलग-अलग बताई जा रही है, मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के आदेशों में भी अंतर है जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश प्रशासन द्वारा पूरे प्रदेश के लिए एक गाइडलाइन जारी करना चाहिए।

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