अमान्य तरीके से तैयार पैथोलॉजी रिपोर्ट बीमा कम्पनियां कर रहीं स्वीकार
जयपुर/लखनऊ। बीमा कम्पनियों के कार्यों पर नजर रखने और इनका उचित क्रियान्वयन हो इसके लिए गठित भारतीय बीमा विनियामक और विकास परिषद (इरडा) अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल साबित हो रही है। यही नहीं स्वास्थ्य बीमा के क्लेम में लगने वाली पैथोलॉजी रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नियमानुसार ही स्वीकार करने के निर्देश देते हुए इसका पालन कराने के लिए कहा गया था लेकिन 15 महीने पूर्व सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद भी इरडा द्वारा अपनी गलती का सुधार करने के बजाय लगातार उसे अनदेखा किया जा रहा है।
इरडा का यह कारनामा सूचना के अधिकार के तहत मिले जवाब से उजागर हुआ है। प्राप्त जानकारी के अनुसार राजस्थान के जयपुर के रहने वाले पैथोलॉजिस्ट डॉ रोहित जैन ने बीमा कम्पनियों द्वारा लोगों द्वारा लिये जा रहे क्लेम के दस्तावेजों में शामिल की जा रही पैथोलॉजी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश व एमसीआई की गाइडलाइन्स के मुताबिक न होने के बावजूद स्वीकार किये जाने को लेकर जानकारी चाही थी। आपको बता दें कि नियम के अनुसार पैथोलॉजी रिपोर्ट पर दस्तखत पैथोलॉली लैब में कार्य करने वाला सक्षम पैथोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट या बायोकेमिस्ट ही कर सकता है, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं हो रहा है।
बीमा कम्पनियां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत तैयार पैथोलॉजी रिपोर्ट को भी मान्यता देकर कार्य कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिए केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (स्वास्थ्य विभाग) द्वारा पहली बार 15 माह पूर्व दिसम्बर 2017 में तथा दूसरी बार रिव्यू पेटीशन पर आठ माह पूर्व इरडा को निर्देश जारी किये गये थे लेकिन इरडा ने इसके पालन के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
दायर याचिकाओं पर इरडा कम्पनी को दिये गये निर्देश के बारे में बीती डॉ रोहित जैन ने 6 मार्च को जानकारी चाही थी। इसके जवाब ने 3 अप्रैल को केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (स्वास्थ्य विभाग) की तरफ से दिये गये उत्तर में बताया गया है कि इरडा की ओर से अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है।
आपको बता दें कि याचिका में कहा गया है कि ‘झोलाछाप’ लोगों के द्वारा तैयार की जा रही पैथोलॉजी रिपोर्ट से लोगों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। डॉ रोहित जैन का कहना है कि एक गलत रिपोर्ट मरीज के इलाज की दिशा बदल सकती है जिससे उसकी मौत भी हो सकती है।