Tuesday , October 17 2023

फूलों की सेज नहीं, एक तपस्या है योगमय होना

लखनऊ। आगामी 21 जून को विश्व योग दिवस है। भारत की पहल पर मनाये जाने वाले इस दिवस को लेकर पूरे भारत वर्ष में इसकी जोरदार तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इस मौके पर ‘सेहत टाइम्स’ ने आयुर्वेद, पंचकर्म, योग, एक्यूप्रेशर व एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ डॉ देवेश श्रीवास्तव से मुलाकात की। डॉ देवेश ने बताया कि योग को समझना और योगमय होना फूलों की सेज नहीं यह एक तपस्या है।

अच्छे योग साधक बनने के लिए हैं आठ अंग, पहला है यम

योग के बारे में जानकारी देते हुए डॉ देवेश ने बताया कि चित्त की वृत्ति का निरोध करना ही योग है। उन्होंने बताया कि एक अच्छा योग साधक बनने के लिए आठ अंगों के बारे में जानना आवश्यक है। इन आठों अंगों के बारे में उन्होंने सरल तरीके से बताते हुए कहा कि पहला है यम। उन्होंने कहा कि सभी प्राणियों के प्रति सम्यक दृष्टि होना, सदभाव, उचित व्यवहार,अच्छे-बुरे कार्य समझना, अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करना, बुरे कार्य हटाना, शरीर से, मन से, कर्म से हिंसा, चोरी, व्यभिचार, झूठ, चुगली,कटु वचन, बकवास, लोभ, लालच, प्रतिहिंसा, झूठी शान, घमंड छोड़ देना ही यम है।

नियम

डॉ देवेश ने दूसरे अंग नियम के बारे में बताते हुए कहा कि नियम मनुष्य के अंत:करण से संबंध रखता है। अडिग रूप से संयमित-नियमित रहते हुए पवित्रता का परिचय देना नियम के अंतर्गत आता है। उन्होंने बताया कि इससे चेहरे पर तेज आता है।

आसन

उन्होंने बताया कि तीसरा अंग है आसन।  आसन से शरीर सुगठित शक्तिशाली और मन एकाग्रचित्त होता है। शरीर व मन में बुरी और अशोभनीय भावनाओं पर नियंत्रण और शुभ भावनाओं के उत्पादन में आसनों का बहुत बड़ा योग दान है।

प्राणायाम

डॉ देवेश ने बताया कि इसके बाद चौथा है प्राणायाम। उन्होंने बताया कि सांस का शरीर में अंदर जाना श्वांस, सांस का शरीर से बाहर आना प्रशवास कहलाता है। श्वांस की गति को वश में रखना ही प्राणायाम है। शरीर को अंदर-बाहर से पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए प्राणायाम संजीवनी के समान है तथा यह अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने का आधार है। स्वस्थ रहते हुए दीर्घायु प्राप्त करने सबसे सर्वोत्तम उपाय है प्राणायाम ।

डॉक्टर देवेश श्रीवास्तव

प्रत्याहार

उन्होंने बताया कि इसी प्रकार पांचवां है प्रत्याहार। उन्होंने बताया कि मन की चंचलता को नाना प्रकार के विषयों में रमण करने से रोकना, सात्विक विचार बनाये रखना प्रत्याहार है।

धारण

छठे अंग के बारे में बताते हुए डॉ देवेश ने कहा कि छठा अंग है धारण, तामसिक और राजसिक गुणों पर विजय प्राप्त करना ही धारणा का मूल तत्व है। चित्त की मूढ़ता को धारणा द्वारा वश में किया जाता है।

ध्यान

उन्होंने बताया कि इसी प्रकार सातवां अंग है ध्यान। चित्त को लगातार एक ही सात्विक वृत्ति में ठहरायें रखना ध्यान कहलाता है। अभ्यास करने से ही ध्यान की स्थिरता बढ़ती है। ध्यान का अभ्यास में मन की चंचलता पर नियंत्रण कराता है।

समाधि

डॉ देवेश ने बताया कि आठवां अंग है समाधि। उन्होंने बताया कि समाधि योग की चरम सीमा है जिसमे योगी मोह माया छोड़ कर परम शक्ति में लीन हो जाता है। उन्होंने बताया कि बहुत ही दिव्य योगी ही समाधि तक पहुचते हैं।

सांस लेते समय और सांस छोड़ते समय ये सोचें

डॉ देवेश ने बताया कि प्रकृति के नियमों के साथ जो चलेगा वो आजीवन शारीरिक वा मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकता है जिस प्रकार मानव जीवन अपनी सांसों पर जिन्दा है सांस खत्म तो सब खत्म, सांसो में क्या होता है नाक से ऑक्सीजन (अच्छी चीज है) लेते हैं कार्बन डाई ऑक्साइड (खराब चीज है) निकालते हैं, आष्टांग योग में ठीक इसी तरह बताया गया है कि ऐसा सोचना है कि सांसों के द्वारा अपने शरीर के अंदर अच्छी इच्छा, अच्छी भावना अच्छाइयों का समावेश हो रहा है और सांस निकालने में यह सोचना है कि हमारे शरीर से बुरी इच्छा बुरी भावना,गंदगी बाहर निकल रही है। केवल इतना करने मात्र से और आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सक की देख रेख में उचित-आहार, विहार नियम-संयम का पालन करने से बड़े बड़े रोग भगाकर हम स्वस्थ रहते हुए दीर्घायु को प्राप्त कर सकते हैं।
(योग दिवस के उपलक्ष्य में ‘सेहत टाइम्स ‘आगे भी महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी देता रहेगा)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.