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यह मरीजों की जान से खिलवाड़ नहीं तो क्या है?

डॉ संदीप साहू

लखनऊ। चिकित्सा के क्षेत्र में भारत ने अनेक उपलब्धियां हासिल कर ली हैं लेकिन अभी छोटी-छोटी बातों को लेकर बहुत ज्यादा जागरूकता की आवश्यकता है। इन्हीं में से एक है सर्जरी करने से पहले प्री एनेस्थेटिक चेकअप का न होना। वर्तमान में मरीजों की 60 -70 फीसदी सर्जरी बिना प्री एनेस्थिेटिक चेकअप (पीएसी) के हो रही हैं। इन मरीजों पर सर्जरी के दौरान जान जाने का खतरा मंडराया करता है।

पीजीआई में तीन दिवसीय पोस्ट ग्रेजुएट एनेस्थीसिया रिफेश कोर्स शुरू

यह महत्वपूर्ण जानकारी संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के एडीशनल प्रोफेसर एनेस्थीसिया डॉ संदीप साहू ने दी। वह पीजीआई में आज से शुरू हुए तीन दिवसीय पोस्ट ग्रेजुएट एनेस्थिसिया रिफ्रेश कोर्स के कार्यक्रम में बोल रहे थे।

जान बचाने के लिए पीएसी जरूरी

डॉ साहू ने बताया कि पीजीआई में तो बिना पीएसी किये कोई सर्जरी नहीं की जाती है लेकिन काफी अस्पतालों में ऐसा नहीं हैं। दरअसल इसका एक बड़ा कारण है कि चिकित्सा क्षेत्र में आ रहे नये-नये बदलावों से चिकित्सक अपडेट नहीं होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अक्सर समयाभाव व एनेस्थेटिक की सहज उपलब्धता के अभाव में सर्जन सर्जरी प्लान कर देते हैं, जबकि ऐसा करना उचित नही है। उन्होंने मरीजों और उनके परिजनों से भी अपील की है कि सर्जरी पूर्व वे खुद भी एनेस्थेटिक से समय लेकर पीएसी जांच जरूर करायें।  उन्होंने बताया कि पीजीआई में हर साल इस तरह का रिफ्रेश कोर्स रखा जाता है जहां पर हम पीजी स्तर के छात्रों को देने वाली जानकारी को तीन दिनों में इसमें देश भर से आने वाले चिकित्सकों को देते हैं।

सर्जरी के दौरान होने वाली दिक्कतों को पहले ही भांप लेना संभव

पीएसी का महत्व बताते हुए मिनी ऑडीटोरियम में चल रहे प्रशिक्षण कोर्स में डॉ.संदीप साहू ने बताया कि सर्जरी कराने वाले मरीजों का सर्जरी करने से पूर्व एनेस्थेटिक द्वारा प्री एनेस्थेटिक चेकअप किया जाता है, इन जांचों में मरीजों का ब्लड प्रेशर, वजन व अन्य कई चीजों को परखा जाता है जिससे यह अनुमान लग जाता है कि सर्जरी के दौरान संभावित खतरों से मरीज को कैसे बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अगर कोई दिक्कत होती है तो सर्जरी टाल दी जाती है। उन्होंने बताया कि पीएसी टेस्ट का उद्देश्य गुणवत्तायुक्त सर्जरी करना है ताकि मरीज बिना नुकसान के सर्जरी उपरांत होश में आ जाये। डॉ.साहू ने बताया कि रिफ्रेश कोर्स में एनेस्थेटिक्स को मरीजो में दी जाने वाली दवाएं ओर संभावित खतरों में बचाव के गुर सिखाये जा रहे हैं।

प्रसूताओं की मौतों में 10 फीसदी मौतें एनेस्थीसिया न मिलने के कारण

डॉ.साहू ने बताया कि भारत में हर 10 हजार प्रसव में 250 प्रसूताओं की मौत एनेस्थिेटिक के अभाव में हो जाती हैं।  एनिमिया ग्रस्त प्रसूता में प्रसव के दौरान ब्लीडिंग होने से मौत होना एक प्रमुख कारण है, और इस वजह से होने वाली मौतों को एनेस्थेटिक द्वारा बचाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मरीज की जीवन रक्षा में एनेस्थेटिक को मरीज हित में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिये,जबकि अफसोस की बात है कि एनेस्थेटिक को नजरअंदाज किया जाता है। उन्होंने बताया कि प्री ऑपरेटिव टेस्ट के साथ ही ओटी के बाहर भी मॉनिटर्ड एनेस्थिसिया केयर की जरूरत होती है।

हृदय रोगियों में सर्जरी से पूर्व टेस्ट महत्वपूर्ण

पीजीआई के ही कार्डियक एनेस्थेटिक प्रो.प्रभात तिवारी ने बताया कि हृदय रोगियों में सर्जरी पूर्व विशेष जांचें जरूरी है, क्योंकि सर्जरी के दौरान बीपी, पल्सरेट व धडक़न व हार्ट की कार्य प्रणाली प्रभावित होती है। सर्जरी के दौरान व बाद में दिक्कतें आने की संभावना होती है इसलिए एनेस्थेटिक टेस्ट जरूरी हैं। उन्होंने बताया कि सर्जरी के दौरान दी जाने वाली एनेस्थिसिया व अन्य दवाओं के साथ बीपी व खून को पतला करने वाली दवाओं का खासा प्रभाव पड़ता है। संभावित खतरों से बचने के लिए जांचे जरूरी हैं। इसके अलावा हार्ट रोगियों को सर्जरी पूर्व ,दौरान व बाद में एनेस्थेटिक का इलाज जरूरी है, ताकि संभावित दिक्कतों को कम किया जा सके , साथ ही सर्जरी उपरांत इन मरीजों को गहन चिकित्सा यूनिट में 24 घंटे चिकित्सक की देखरेख में रखना चाहिये।

नॉर्मल सलाइन नहीं बैलेंस सॉल्ट सॉल्यूशन कारगर
प्रो.प्रभात तिवारी का कहना है कि सर्जरी दौरान अधिक ब्लीडिंग होने से खतरे की संभावना होती है। एेसे में पहले पानी देना चाहिये, जरूरत पडऩे पर ब्लड प्रोडक्ट देना चाहिये। आईसीयू में भर्ती मरीजों के संबन्ध में उन्होंने बताया कि नॉर्मल सलाइन फ्लूड नहीं देना चाहिये। इसकी जगह बैलेंस सॉल्ट सॉल्यूशन देना चाहिये, क्योंकि नॉर्मल फ्लूड में केवल सोडियम होता है, जबकि बैलेंस सॉल्ट साल्यूशन में पीएच और इलेक्ट्रोलाइट्स, खून में उपलब्ध मात्रा के बराबर होती है।

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