![](http://sehattimes.com/wp-content/uploads/2017/01/dr-anirudh-verma.jpg)
लखनऊ। जाडे़ के स्वास्थ्यप्रद मौसम के बाद जब जाड़ा समाप्त हो रहा हो और गर्मी का मौसम दस्तक दे रहा हो तब लापरवाही बरतने पर कई रोग अपना प्रभाव दिखाने लगते हैं। अस्पतालों एवं डाक्टरों के यहां भीड़ बढ़ जाती है। मौजूदा मौसम में दिन एवं रात के तापमान में बहुत अन्तर पाया जाता है इस मौसम दिन में गर्मी और रात में ठण्डक रहती है। ऐसे मौसम में जरा सी लापरवाही आपको अनेक रोगों की चपेट में ला सकती है। इस मौसम में ज्यादातर लोग वायरल फीवर, सर्दी जुकाम, फ्लू, खांसी, गले की खराश, थकान आदि से पीड़ित रहते हैं परन्तु यदि हम थोड़ी सी सावधानी रखें, खाने-पीने पर नियंत्रण रखें तथा होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग करें तो इस मौसम की बीमारियों से बचा जा सकता है।
होम्योपैथिक विशेषज्ञ डॉक्टर अनुरुद्ध वर्मा बताते हैं कि जाड़े के बाद जब गर्मी का मौसम शुरू हो रहा होता है वातावरण का तापक्रम घटता-बढ़ता रहता है, रात में ठन्ड एवं दिन में मौसम गर्म रहता है यह मौसम वायरस एवं जीवाणु के फैलने के लिए बहुत ही मुफीद रहता है। वायरस बुखार में तेज बुखार, आंख से पानी, आंख लाल, शरीर में दर्द, ऐंठन, कमजोरी, कब्ज या दस्त, चक्कर आना, कभी-कभी मिचली के साथ उल्टी भी हो सकती है तथा कंपकपी के साथ बुखार चढ़ना आदि लक्षण हो सकते हैं। सामान्यतया वह बुखार तीन से सात दिन में ठीक हो जाता है परन्तु कभी-कभी यह बुखार ज्यादा दिन तक भी चल सकता है इस बुखार से बचाव के लिए आवश्यक है कि साफ-सफाई रखें, तथा रोगी से सीखे सम्पर्क से बचें, रोगी को हवादार कमरे में रखें तथा सुपाच्य भोजन दें। यदि बुखार ज्यादा हो तो साधारण साफ पानी से पट्टी करें। डॉक्टर अनुरुद्ध वर्मा बताते हैं कि वायरल बुखार के उपचार में जहां ऐलोपौथिक दवाइयां अपनी असमर्थता जाहिर कर देती हैं वहीं पर होम्योपैथिक दवाइयां पूरी तरह रोगी को ठीक कर देती है वायरल फीवर के उपचार में जेल्सीमियम, डल्कामारा, इपीटोरियम पर्फ, बेलाडोना, यूफ्रेसिया, एलियम सिपा, एकोनाइट आदि दवाइयां बहुत ही लाभदायक हैं।
उन्होंने बताया कि इस बदलते मौसम में फ्लू, जुकाम, सर्दी, खांसी की शिकायत बहुत होती है जो कि विषाणुओं एवं जीवाणुओं द्वारा उपरी श्वसन-तंत्र में संक्रमण के कारण होती है जिसके कारण वायरल बुखार से मिलते-जुलते लक्षणों के साथ-साथ आँख व नाक से पानी आना, आंखों में जलन, एवं छीकें आना आदि लक्षण शामिल है इससे बचाव के लिए इन्फ्ल्युजिनम 200 देकर सर्दी एवं जुकाम से बचा जा सकता है इसके उपचार में लक्षणों के आधार पर होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है।
इस बार इस मौसम में स्वाइन फ्लू फैलने की भी सम्भावना रहती है इससे बचाव के लिये इन्फ्ल्युजिनम 200 एवं आर्सेनिक एल्ब 200 का तीन दिन तथा प्रयोग करना चाहिये साथ ही रोगी व्यक्ति से सम्पर्क से बचना चाहिये।
इस मौसम में पौधों में फूूल आदि ज्यादा होते है जिससे उनसे उड़ने वाले पराग कणों से दमा की शिकायत बढ़ सकती है इस लिये पराग कणों एवं धूल . तथा कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, जूस तथा फास्टफूड तथा मांसाहारी भोजन से बचना चाहियें लक्षणों के आधार पर ब्लाटा क्यू, एपिस, एलियम सिपा, आर्सेनिक, ऐरिरिया, कालीवाई, नैट्रमसल्प आदि होम्योपैथिक दवाईयां प्रयोग करनी चाहिए।
इस मौसमें सी0ओ0पी0डी0 की समस्या बढ़ जाती है इससे बचाव के लिए धूम्रपान, वातावरण में फैले हानिकारक रसायनों, धूल, धुआं आदि से बचना चाहिए। इसके उपचार के लिए आर्सेनिक, कैम्फर, क्रोकस, सल्फर, स्पोन्जिया , कैमोमिला, कैक्टस, बोरेक्स, बै्रनिया आदि दवाईयां प्रशिक्षित शिक्षक की सलाह से प्रयोग की जा सकती हैं।
डॉक्टर अनुरुद्ध वर्मा ने बताया कि इस मौसम में खसरे का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है जिसके लक्षणों में तेज बुखार, सिर दर्द, नाक से पानी, छींके, आंख लाल, कमजोरी आदि लक्षण हो सकते हैं। इससे बचाव के लिये मार्बलिनम 200 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। इसके उपचार में बेलाडोना, आर्सेनिक, ब्रयानिया, इन्फिल्ंयूजिनम, पाइरोजिनम, रस्कटास, सल्फर आदि दवाईयों का प्रयोग लाभदायक हो सकता है।
इस मौसम में चिकन पॉक्स छोटी माता की समस्या भी अपना रंग दिखाती है इसमें भी खसरे के लक्षणों के साथ-साथ पानी भरे दाने शरीर पर निकलते हैं इससे बचाव के लिए वैरियोलिनम 200 का प्रयोग यिका जा सकता है।
इस मौसम में होने वाली खांसी में बेलाडोना, ब्रायोनिया, कास्टिकम पल्साटिला, जस्टीशिया, हिपरसल्फ आदि दवाईयां काफी फायदेमंद हो सकती हैं। इस मौसम में जब खांसी का प्रयोग हो तो गरम पानी से गलाला करें तथा ठंडी चीजे खाने से बचना चाहियें।
इसके अतिरिक्त इस मौसम में गले में खराश एवं दर्द की शिकायत भी रहती है इसके लिए बोलाडोना, फाइटोलक्का, एवं कास्टिकम आदि दवाइयों का प्रयोग लाभ दायक है साथ ही तेज बोलने से बचना चाहिये। इस मौसम में न्यूमोनिया का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। न्यूमोनिया के लक्षणों में तेज, बुखार, सीने में दर्द खांसी, साँस लेने में तकलीफ, बच्चों में पसली चलना आदि लक्षण होते हैं। इस मौसम में इससे बचने के लिये गरम पानी व पेय पदार्थ लें, ज्यादा ठंडक और नमी से बचें, बीमारी से ग्रसित होने पर पूर्ण आराम करें इसके उपचार में फास्फोरस, ब्रायोनिया, स्पॅांजिया, काली कार्ब, नैट्रम सल्प, आरम् ट्राइफलम, फेरमफास, स्टफैलोकाकस आदि दवाइयों का प्रयोग होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह करना चाहिए। इस मौसम में वाइरस जनित दस्त की सम्भावना काफी बढ़ जाती है। इससे उपचार के लिए बच्चे को ओ0आर0एस0 का घोल दें, पानी की कमी न होेने दें। मीठे फल एवं कोल्ड ड्रिंक न दें इसके उपचार में पोडोफाइलम, एलोज, चाइना, लाइको, नक्सओमिका, कैमोमिला, आर्सेनिक आदि दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है।
इस मौसम में बालो में खुसकी के कारण रूसी (ड्रैन्ड्रफ) की समस्या काफी बढ़ जाती है। इस कारण सिर में खुजली होने लगती है इससे बचने के लिये समय-समय पर तेल की मालिस करना चाहिए। होम्योपैथिक दवाईयों ड्रैन्ड्रफ की रोकथाम एवं उपचार में काफी कारिगर साबित होती हैं।
इस मौसम थकान बहुत लगती है, कुछ खाने की इच्छा नही होती है इसके जेल्सीमियम एवं रसटाक्स होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है। इस मौसम में तरल एवं सुपाच्य भोजन करना चाहिए तथा तली-भुनी चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिये कोई समस्या होने पर प्रशिक्षित होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि बदलते मौसम में आपके सेहत का ध्यान रखेंगी होम्योपैथी की मीठी गोलियां।
![](http://sehattimes.com/wp-content/uploads/2023/01/Dr.Virendra-Yadav-and-Dr.Saraswati-Patel-1.jpg)