Monday , October 30 2023

फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स को समर्पित है इस वर्ष का अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस

-महिला के प्रति सम्‍मान और समानता होने तक अधूरा है सशक्तिकरण

-चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में भी धूमधाम से मनाया गया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ/चित्रकूट। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में कुलपति प्रोफेसर नरेश चंद्र गौतम के निर्देश पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम विश्वविद्यालय के कला संकाय में पूरे उत्साह के साथ मनाया गया।

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता विभागाध्यक्ष हिंदी डॉक्टर कुसुम सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संबोधन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्ष 1908 में अमेरिका में महिलाओं ने अपने अधिकारों (जिसमें वोट का अधिकार, समान वेतन आदि की प्रमुख मांगें सम्मिलित थीं) के लिए प्रदर्शन किया। ‌तत्कालीन समय में श्रम आंदोलन प्रमुख विषय रहा। ‌सन 1917 में  सोवियत संघ की महिलाओं ने अपने हक के लिए आंदोलन किया। सोवियत रूस में जब यह आंदोलन समाप्त हुआ वह दिन गेग्रेरियन कैलेंडर के अनुसार  8 मार्च था। संयुक्त राष्ट्र ने भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की घोषणा 8 मार्च को की थी।

वर्ष 1996 से संयुक्त राष्ट्र ने महिला जगत के लिए प्रतिवर्ष एक थीम निर्धारित की, ‌जिसका विश्व भर के देशों की सरकारें पालन करती हैं और उसी अनुरूप महिलाओं के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करती हैं। इसी प्रकार वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित महिलाओं को समर्पित थीम ‘कोरोना वारियर्स’ के रूप में फ्रंटलाइन वर्कर्स को समर्पित है। समाज में महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वैश्विक रूप से महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर को सशक्त बनाया जाए। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर थीम आधारित बैगनी, हरा एवं सफेद रंगों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बैगनी रंग न्याय का प्रतीक है, हरा रंग उम्मीद को दर्शाता है वही सफेद रंग शुद्धता एवं शुचिता का प्रतीक है। वर्तमान समय में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें महिलाओं के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित विभिन्न प्रकार की योजनाएं चला रही हैं। समाज में जब तक समानता, सम्मान की भावना महिलाओं के प्रति नहीं होगी तब तक महिला सशक्तिकरण अधूरा रहेगा। आज समाज में स्त्रियों को जो भी मुकाम हासिल है उसमें पुरुष की भूमिका भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। आज की महिला को अपनी ऊर्जा को पहचान कर, ऊर्जा का प्रयोग करते हुए सशक्त बनाना होगा, तब जाकर हम प्रतिदिन महिला दिवस उमंग उत्साह के साथ मना सकेंगे।

नारी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन

विशिष्ट वक्ता डॉ वंदना पाठक ने कहा कि आज का दिन नारी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है। प्रख्यात समाजसेवी एवं विश्वविद्यालय के संस्थापक भारत रत्न राष्ट्र ऋषि नानाजी ने भी ग्राम विकास में महिलाओं के स्वावलंबन की बात हमेशा की और उसे एक मॉडल के रूप में साकार कर के दिखाया भी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। नारी की शिक्षा ही उसमें आत्मविश्वास जगाती है जिससे नारी स्वावलंबन की ओर प्रेरित होती है। महिलाएं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से ग्रामीण अंचलों में भी स्वाबलंबन की नई दिशा समाज को दे रही हैं।

समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव को समाप्त करने की जरूरत

डॉ अर्चना शर्मा ने कहा कि‍ आज आवश्यकता है समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव को समाप्त करने की। यह समाज तभी आगे बढ़ेगा जब दोनों वर्ग समान रूप से बिना किसी प्रतिस्पर्धा भाव के आगे रहे। नारी सशक्तिकरण के लिए सुरक्षा एवं संरक्षण देने का अधिकार पुरुष वर्ग को है उसे अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए।  समाज के हर पुरुष को महिला के सम्मान में आगे आना चाहिए तब यह महिला दिवस केवल एक दिन का न होकर प्रतिदिन मानाया जाने लगेगा। ‌

आत्‍मविश्‍वास बढ़ाना पुरुषों की भी जिम्मेदारी

डॉ अभय वर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान समय में समाज में धीरे-धीरे महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ रहा है। शिक्षा एक प्रमुख साधन है महिलाओं में आत्मविश्वास जागृत करने का। उन्होंने मनुस्मृति का उदाहरण देते हुए कहा कि, मनुस्मृति में नारी का स्थान सर्वोपरि दे रखा है। यह पुरुष वर्ग की भी जिम्मेवारी है कि वह महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करें जिससे वह घर, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए अपना योगदान दे सकें।

महिलाओं को समान अधिकार देना जरूरी

समाज कार्य के प्राध्यापक डॉ विनोद शंकर सिंह ने अपने उद्बोधन में आज की महत्ता को सारगर्भित करते हुए समाज में महिलाओं के प्रति समानता की बात कही। समाज में सशक्तिकरण के माध्यम से महिलाओं को समान अधिकार देना होगा। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सुदृढ़ता की बात कही। कोविड-19 वैश्विक महामारी में चिकित्सालयों में कोरोना वारियर्स के रूप में सेवा दे कर नारी सशक्तिकरण का प्रदर्शन किया है। महिलाओं के संदर्भ में शिक्षा, राजनीतिक, प्रशासनिक सेवा आदि समस्त क्षेत्रों में समानता लानी होगी।

सशक्‍त बनाने में पुरुषों को करनी चाहिये पहल

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं कला संकाय के अधिष्ठाता डॉ नंद लाल मिश्रा ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि समाज में महिला सशक्त कैसे हो, इस पर चिंतन होना चाहिए। समाज में उनकी भूमिका प्रभावी बने, इस दिशा में पुरुषों को पहल करना चाहिए। महिला दिवस पुरुष एवं महिला दोनों वर्गों को समर्पित है। भगवत गीता में श्री कृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं ही वह प्रकृति हूं जो गर्भ धारण करता है और मैं ही बीज प्रदान करने वाला हूं। डॉ मिश्र ने कहा कि वे हमारे अर्धनारीश्वर हैं। महिलाओं को अपनी आवश्यकता के लिए जागरूक होना होगा, अपने हक के लिए एकजुट होकर पहल करनी होगी। जिसके लिए कॉरपोरेशन और कॉम्‍प्टीशन दोनों की आवश्यकता का मूल मंत्र डॉ मिश्रा ने दिया।

खंड-खंड में नहीं चाहिये…

कला संकाय की छात्रा गायत्री कोमल द्विवेदी ने स्त्री पर आधारित अपनी स्वरचित कविता ‘ खंड खंड में नहीं चाहिए- अब पूरा संसार दो । जीने का अधिकार दो – जीने का अधिकार दो ‘ को प्रस्तुत किया। कला संकाय की शिखांजलि, प्रियंका गुप्ता, मोनिका गुप्ता,सविता टाडिया, अजीत सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने अपने विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के डॉ रघुवंश बाजपेई, डॉ साधना चौरसिया, डॉ अजय आर चौरे ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम शुभारंभ मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर किया गया। मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम के अवसर पर अधिष्ठाता कला संकाय डॉ नंदलाल मिश्र, डॉ वाई के सिंह, डॉ विनोद सिंह, ललित कला के डॉ अभय वर्मा, डॉ जय शंकर मिश्रा, संचार विज्ञानी शुभम राय त्रिपाठी उपस्थित रहे।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन समाजशास्त्र की प्राध्यापक डॉ नीलम चौरे ने किया। विषय प्रवेश करते हुए डॉ नीलम चौरे ने कहा कि‍ महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को स्वावलंबी होना आवश्यक है। महिला शिक्षित होगी तो वह स्वावलंबी बनेगी और स्वावलंबन से सशक्तिकरण स्वत: हो जाएगा। पुरुष और महिला संपूर्ण सृष्टि के संचालक एवं राष्ट्र की सामाजिक व्यवस्था का आधार है। डॉ चौरे ने निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी समय के साथ कितनी प्रतिशत बढ़ी है। कितने प्रतिशत स्वतंत्रता महिलाओं को प्राप्त है इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। महिला के विकास में परिवार को भी जब संतुष्टि मिले तब यह पहल सार्थक सिद्ध होगी।