Tuesday , October 17 2023

ज्ञान व विज्ञान का भंडार थे हमारे ऋषि-मुनि, जानिये नवरात्रि से जुड़े विज्ञान को

-क्‍या होती है उपासना, साधना, आराधना और क्‍यों रखे जाते हैं व्रत

शारदीय नवरात्रि आरम्‍भ हो चुकी हैं। नवरात्रि यूं तो दुर्गा देवी और उनके अन्‍य रूपों की पूजा, शक्ति की उपासना करने का पर्व है। लेकिन नवरात्रि में की जाने वाली पूजा, व्रत आदि जिसे सामान्‍यत: परम्‍परा बताया जाता है, इस परम्‍परा के पीछे का विज्ञान क्‍या है, इसे बता रहे हैं गायत्री परिवार के लखनऊ-अयोध्या जोन के समन्‍वयक एवं वेदमाता गायत्री ट्रस्ट आरोग्य धाम लखनऊ के मुख्य प्रबंध ट्रस्टी  तथा गायत्री परिवार को वरिष्‍ठ प्रतिनिधि अरविन्‍द निगम।  

चैत्र, आषाढ़, आश्विन और पौष में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रि होती हैं। अधिकतर चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक  नवरात्रि का आयोजन होता है। जबकि आषाढ़ और पौष की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते है। इसमें तांत्रिक साधना का विशेष महत्त्व है।

चैत्र की नवरात्रि और आश्विन की नवरात्रि को सन्धि काल या ऋतु परिवर्तन काल भी कहते हैं। चैत्र में शरद ऋतु से गरम ऋतु और अश्विन माह में वर्षा ऋतु से शरद ऋतु में प्रवेश होता है। इस दौरान जीवाणुओं और विषाणुओ का प्रकोप (उत्पत्ति) बहुत अधिक होता है। अतः ऋषियों ने इस दौरान व्रत रखने का प्रावधान बनाया ताकि बीमारियों से बचा जा सके क्योंकि अशिक्षा बहुत अधिक थी और समझाने का और कोई विकल्प नहीं था। अतः आज व्रत में विवेक को महत्‍व दें न कि परम्परा।

अरविन्‍द निगम

उपासना

पूजा स्थल ( घर या मन्दिर ) में अपने आराध्य (ईश्वरीय शक्ति की कल्पना करते) के समक्ष समर्पण करना या बैठना ही उपासना कहलाती है। आगे धूपबत्ती, अगरबत्ती जलाकर थोड़ी पूजा करना यही प्रायः लोगों की आदत होती है। अंत में भगवान से कुछ न कुछ की मांग करना देना कुछ नहीं। सच्ची और कल्याणकारी भावना से समर्पण ही वास्तविक उपासना है।

साधना

अपने को, मन , वाणी और शरीर संयम से साधना। इसकी साधना ही वास्तविक पूजा है। यही जीवन के कल्याणकारी पथ को प्रशस्त करता है। चरित्र की प्रधानता का सोपान बनता है। इन पर नियंत्रण करना ही पूजा की सफलता है। यही नवरात्रि के व्रत का संकल्प है।

आराधना

साधना में पारंगत व्यक्ति ही अपने आराध्य की शक्ति का अनुभव कर सकता है और हो सकता है कि उन्हें उनका दर्शन भी हो जाए। समयानुसार यही शक्ति आपकी सहायता करती है। जन कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। ओजस, तेजस, वर्चस्व की वर्षा होती है। चरित्र की प्रधानता होती है। यही पूजा की सफलता है। आत्मबल इतना शक्तिशाली होता है कि किसी को दिया गया आशीर्वाद, सफलता को चूमता है। यहाँ अधर्म एवम असभ्यता के स्तम्भ ढहा जाते हैं। भाग्य ही कर्मफल है ।

आश्वनी शुक्लपक्ष नवरात्रि

यह वर्षा ऋतु से शरद ऋतु का सन्धि काल है। अनुपयोगी विषाणुओं के नाश के लिए हवन किया जाता है। सामग्री जब जलती है तो एक विशेष प्रकार की ऊर्जा जीवाणुओं का नाश कर देती है। इसीलिए बार-बार हवन करने की प्रथा अपनाने को कहा जाता है। मनुष्य की श्वसन क्रिया भी लाभान्वित होती है ।

नवरात्रि में व्रत रखने का उद्देश्य …….

1……..कम बोलें।( अतः जीवाणुओं का प्रवेश वर्जित )

2……..कम खाएं ।( अतः भोजन से अपच का बचाव )

3……..संयम रखे ।( अर्थात मन, वाणी और शरीर सयंम अर्थात शोधन।

नवरात्रि में ईश्वरीय शक्तियां अपना अनुदान बांटती हैं। उन्हें पाने के लिए साधना ही विकल्प है। लोग तन्त्र साधना भी करते हैं।

ईश्वर के 10 अवतारों में राम और कृष्ण को प्रधानता दी जाती है । मर्यादायों का पालन, कर्तव्य पर अविचल निष्ठा, व्यवहार में सौजन्य और अनीति के विरुद्ध संघर्ष इनका लक्ष्य था। जन्म से लेकर लीला समापन तक राम सभी प्रसंगों में आदर्शवादिता को चरितार्थ करते हैं। यही दशहरा का उद्देश्य है ।

आश्विन की नवरात्रि में 3 देवियों की विशेष पूजा होती है….

महालक्ष्मी, महासरस्वती और महादुर्गा ।

महादुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। आश्विन नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं ।

इस नवरात्रि में 9 दिन बाद 9 कन्‍याओं की भी पूजा की जाती है ।

प्रायः नवरात्रि में शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की आराधना, महिलाओं के अद्दुभ्य साहस, धैर्य और स्वयं सिद्धा व्यक्तित्व को समर्पित है ।

दसवां दिन दशहरा से प्रसिद्ध है।

सबसे पहले भगवान राम ने समुद्र तट पर शारदीय नवरात्रि का पूजन प्रारम्भ किया था उसके दशवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया था और विजय प्राप्त किया। इसीलिए नवरात्रि के दशवें दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है।

गुजरात में नवरात्रि समारोह को डांडिया और गरबा के रूप में मनाते हैं । देवी के सम्मान में आरती के पहले गरबा किया जाता है और बाद में डांडिया ।

नवरात्रि अर्चना, जप और ध्यान का पर्व है। इसमें आध्यात्मिक , मानसिक शक्ति के संचय के लिए नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते है ।