अनेक खास बिन्दुओं पर विचार करने के लिए रविवार को बुलायी गयी है केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ उत्तर प्रदेश की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक कल रविवार को होने जा रही है। इस बैठक में उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों के अध्यक्ष और मंत्री भाग लेंगे। इस बैठक पर सभी की निगाहें लगी हैं क्योंकि अन्य मसलों के अलावा चिकित्सकों की अधिवर्षता आयु 62 वर्ष से सीधे 70 वर्ष किये जाने के प्रस्ताव पर भी विचार विमर्श होगा।
बैठक के बारे में जानकारी देते हुए पीएमएस संघ यूपी के महामंत्री डॉ अमित सिंह ने बताया कि बैठक का आयोजन यहां गोमती नगर स्थित लोहिया संस्थान में सुबह 11 बजे से किया गया है। बैठक शाम 5 बजे तक चलेगी। उन्होंने बताया कि इस बैठक में संवर्ग के विषयों सहित राज्य में चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाओं की कार्यदशा में सुधार कर उन्हें गुणवत्तापरक और जन अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने पर विस्तार से विचार-विमर्श होगा।
ज्ञात हो दो दिन पूर्व प्रदेश शासन द्वारा बुलायी गयी बैठक में चिकित्सकों की कमी पूरी करने की दिशा में की जा रही कोशिशों के तहत सेवा निवृत्ति की आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर सीधे 70 वर्ष किये जाने के प्रस्ताव पर पीएमएस संघ से इस बारे में चर्चा की गयी थी। पीएमएस संघ ने इस प्रस्ताव पर सशर्त सहमति जताते हुए यह सुझाव दिया है कि आवश्यक यह है कि 60 वर्ष या 62 वर्ष पर ऐच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प हर हाल में दिया जाये।
‘सेहत टाइम्स’ का मत
स्थिति काफी शोचनीय है कि आखिर लम्बे प्रयासों के बाद भी चिकित्सक उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा में क्यों नहीं आना चाह रहे हैं। जाहिर सी बात है कि वर्तमान में चल रही सेवा नियमावली में कुछ तो खामियां हैं जो स्वास्थ्य जैसी सरकारी सेवाओं की ओर युवा आकर्षित नहीं हो रहा है। जबकि किसी भी देश की प्रगति के आकलन में शिक्षा और स्वास्थ्य की दशा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। आखिर क्या वजह है चिकित्सा शिक्षा पर भारी भरकम सरकारी खर्च होने यानी जनता के टैक्स के पैसों से चिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को भी सरकारी अस्पताल में लाने के लिए अनिवार्य फॉर्मूला बनाने की ओर क्यों नहीं कारगर प्रयास किये जा रहे हैं।
देश चलाने वालों की आखिर देश की आम जनता के स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी भी तो है न, लेकिन जो स्थितियां हैं उनसे तो यह लगता है जल्दी ही सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर ढूंढ़े नहीं मिलेंगे। मौजूदा डॉक्टरों से आखिर कितनी उम्र तक काम लिया जा सकता है? आम तौर पर 60 वर्ष में रिटायर होने की उम्र कुछ देखकर ही तय की गयी होगी? तो आखिर सभी नौकरियों में उसका पालन हो रहा है तो चिकित्सा-स्वास्थ्य में क्यों नहीं? यह तो माना जा सकता है कि जो चिकित्सक फिट हैं और अगर वे अपनी सेवा देना चाहते हैं तो बहुत अच्छी बात है, देना चाहिये, उनके अनुभव का लाभ उठाना चाहिये लेकिन जो चिकित्सक नहीं चाहता है उससे जबरन काम लेते रहना कहां तक उचित होगा?
जिम्मेदारों को यह भी सोचना होगा कि आखिर क्या वजह हैं कि डॉक्टरों की भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग द्वारा लम्बे समय से प्रयास करने के बावजूद अभी तक अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं हासिल हुए हैं? सीधा सा अर्थ है कि कहीं न कहीं तो ऐसी दिक्कतें हैं जिन्हें गंभीरता से विचार करके ठीक किये जाने की जरूरत है।
