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सरकार तो दे 10 लाख मुआवजा और डॉक्टर दे दस करोड़, यह कहां का इंसाफ ?

आईएमए का 4 जनवरी को उपभोक्ता संरक्षण बिल के खिलाफ ‘विरोध दिवस’ 

काली पट्टी बांधकर चिकित्‍सक जतायेंगे विरोध, सांसदों को ज्ञापन सौंपेंगे

आम मरीज, चिकित्‍सक और मेडिकल स्‍टूडेंट्स के खिलाफ है विधेयक  

पत्रकारों से वार्ता करते बायें से डॉ एएम खान, डॉ जीपी सिंह तथा डॉ जेडी रावत।

   

लखनऊ। अगर कोई सैनिक, पुलिस वाला या फि‍र कोई अन्‍य सरकारी कर्मचारी के साथ अगर ड्यूटी पर कोई अनहोनी होती है, तो सरकार उसे कितना मुआवजा देती है, कुछ निश्चित नहीं है लेकिन मान लीजिये दस लाख, लेकिन अगर मरीज की मौत को लेकर विवाद होता है तो उस स्थिति में यह मुआवजा करोड़ों में क्‍यों। क्‍या कोई डॉक्‍टर जानबूझकर अपने मरीज को मार डालना चाहता है? उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के स्‍थान पर उपभोक्‍ता संरक्षण बिल-2018 लाने की तैयारी की जा रही है। पूरी तरह से अगर यह बिल लागू हुआ तो मुआवजे के रूप में धनराशि का भुगतान डॉक्‍टरों को करोड़ों में ही करना होगा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इसका विरोध करती है। फि‍लहाल इसके विरोध स्‍वरूप शुक्रवार 4 जनवरी को ऑल इंडिया प्रोटेस्‍ट दिवस मनाया जायेगा। इसके तहत सभी चिकित्‍सक काला फीता बांधकर चिकित्‍सकीय कार्य करेंगे, तथा विरोध और बिल से मरीजों को होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करने के लिए क्षेत्रीय सांसदों को ज्ञापन सौंपेंगे। हमारा यह मानना है कि सरकार और उसके नीति निर्धारक इस बिल को पारित न करने पर विचार करें क्‍योंकि यह कदम छोटे अस्‍पतालों और मरीज के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो स‍कता है।

 

यह बात गुरुवार को यहां आईएमए भवन में पत्रकारों से आईएमए उत्‍तर प्रदेश के अध्‍यक्ष डॉ एएम खान, आईएमए लखनऊ के अध्‍यक्ष डॉ जीपी सिंह, आईएमए लखनऊ के सचिव डॉ जेडी रावत ने कही। डॉ जीपी सिंह ने कहा कि डॉक्‍टरों की समस्‍याएं जनता से जुड़ी हैं। उन्‍होंने कहा कि जब मुआवजे का इतना बोझ डॉक्‍टर पर डाल दिया जायेगा तो वह क्‍या करेगा, डॉक्‍टर इस धनराशि की पूर्ति भी तो मरीजों से ही करेगा, इस तरह से मरीज का इलाज जब महंगा हो जायेगा तो सारा बोझ मरीज पर ही तो आयेगा।

 

उन्‍होंने कहा कि दूसरी बात यह है कि ऐसे में डॉक्‍टर सीरियस मरीज लेने से डरेगा, तो ऐसी स्थिति में मरीज को इलाज नहीं मिल पायेगा, यह भी मरीज के खिलाफ ही जायेगा। उन्‍होंने बताया कि नये बिल में जिला फोरम के अधिकार क्षेत्र को 10 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ करने का कदम और राज्य फोरम का 1 करोड़ से 10 करोड़ और राष्ट्रीय का 10 करोड़ से ऊपर का लक्ष्य सीधे चिकित्सा पेशे पर लक्षित है।  उन्‍होंने कहा कि इसी तरह नेशनल मेडिकल कमीशन के गठन पर भी आईएमए को आपत्ति है, जो कि मौजूदा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का स्‍थान लेगा। आपत्तिजनक यह है कि इसमें 25 सदस्‍य होंगे उनमें चिकित्‍सकों की संख्‍या सिर्फ पांच है जबकि 20 दूसरे सदस्‍य होंगे। ऐसे में मेडिकल कॉलेजों के लिए नियम-कानून, फीस निर्धारण मनमानी तरीके से होने की आशंका बलवती होती है, जो‍ कि गरीब छात्रों को डॉक्‍टरी पढाई में आड़े आ सकती है।

 

आईएमए उत्‍तर प्रदेश के अध्‍यक्ष डॉ एएम खान ने कहा कि यह तो सरासर छोटे यानी 50 बेड से कम वाले अस्‍पतालों को बंद करने की साजिश है क्‍योंकि इतना मुआवजा डॉक्‍टर कैसे भरेगा। उन्‍होंने कहा कि छोटे अस्‍पताल तो बंद होंगे ही, कई बड़े अस्‍पताल भी बंद करने या किसी विदेशी को हैंडओवर करने को बाध्‍य हो जायेंगे। उन्‍होंने दिल्‍ली स्थित एक निजी अस्‍पताल का उदाहरण देते हुए बताया कि उस अस्‍पताल को संचालकों ने विदेशी के हाथों सौंप दिया है।

 

उन्‍होंने कहा कि हमारा मानना है कि यह विधेयक गरीबों के, आम जनता के एवं मेडिकल स्टूडेंट्स के खिलाफ है। उन्‍होंने कहा कि अगर यह बिल लागू हुआ तो मरीजों पर बहुत बोझ पड़ेगा। साथ ही हर साल बहुत से लोग गरीबी की रेखा के नीचे आते जायेंगे। डॉ खान ने कहा कि एक ओर सरकार भयावह स्वास्थ्य देखभाल लागत के बारे में चिंतित है और दूसरी ओर वही सरकार अप्रत्यक्ष रूप से नियमों में बदलाव करती है। उन्‍होंने कहा कि इस तरह के कदम लोगों को सीधे प्रभावित करते हैं।   सचिव डॉ जेडी रावत ने कहा कि इस तरह का बिल चिकित्‍सकों के साथ ही जनविरोधी भी है। उन्‍होंने कहा कि सांसदों को सौंपे जाने वाले ज्ञापन में उनसे यह अनुरोध किया जायेगा कि वह इस बिल के लागू होने के बाद आम मरीज पर होने वाले असर के बारे में गहराई से विचार करें कि क्‍या वह निजी अस्‍पताल में इलाज कराने की स्थिति में होगा?

डॉ जयंत शर्मा

इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन उत्‍तर प्रदेश सचिव डॉ जयंत शर्मा ने फोन पर बताया कि लोकसभा से यह विधेयक बीती 20 दिसम्‍बर को पारित हुआ था तथा अभी राज्‍यसभा में नहीं पारित हुआ है। उन्‍होंने बताया कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ केंद्र सरकार की बातचीत अभी जारी है। भारत सरकार अभी भी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ बातचीत में लगी हुई है और सिद्धांत रूप में ड्रग ट्रायल के रूप में मुआवजे पर सहमति व्यक्त की है। इस बीच बिल के लोकसभा में पारित होने से सरकार के साथ संवाद में भाईचारे के विश्वास को धक्का लगा है। डॉ शर्मा ने कहा कि इस कठोर उर्ध्वगामी संशोधन के परिणामस्वरूप,  मुकदमेबाजी बढ़ेगी और कई छोटे और मझले अस्पताल अस्थिर हो जाएंगे।