Tuesday , October 24 2023

रोका जा सकता है फेफड़े के कैंसर से होने वाली 42000 मौतों को

तम्‍बाकू छोड़ने से 70 प्रतिशत कम होता है फेफड़े का कैंसर

केजीएमयू में ‘नॉन स्‍मॉल सेल लंग कैंसर’ पर कार्यशाला सम्‍पन्‍न

लखनऊ। भारत में इस समय फेफड़े का कैंसर सबसे ज्‍यादा हो रहा है। फेफड़े के कैंसर की बात करें तो इसके हर साल करीब 65 हजार नये केस आ जाते हैं जिनमें करीब 60 हजार की मौत हो जाती है। एक और सावधान करने वाला तथ्‍य यह है कि फेफड़े के कैंसर के मामलों में 70 प्रतिशत की वजह तम्‍बाकू है। यानी अगर सिर्फ तम्‍बाकू खाना लोग छोड़ दें तो फेफड़े के कैंसर की करीब 42 हजार मौतों को रोका जा सकता है।

 

यह जानकारी मुम्‍बई के कोकिला बेन अस्‍पताल के कैंसर सर्जन डॉ राजेश मिस्‍त्री ने दी। डॉ मिस्‍त्री यहां केजीएमयू के कलाम सेंटर में सर्जिकल ऑन्‍कोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित  Non Small Cell Lung Cancer  के विषय पर कार्यशाला में दी। उन्‍होंने बताया कि तम्‍बाकू का प्रयोग किसी रूप में हो चाहें वह धूम्रपान में हो या फि‍र चबाने के रूप में, फेफड़े के कैंसर को दावत देता है। उन्‍होंने कहा कि विदेशों में जहां-जहां तम्‍बाकू पर रोक लगायी गयी वहां दस वर्ष पूर्व के मुकाबले फेफड़े के कैंसर के मामलों में कमी आयी है।

 

उन्‍होंने कहा कि व्‍यक्ति को जीवन शैली में बदलाव लाने की जरूरत है। इसके लिए चार बातों पर ध्‍यान रखना होगा। पहली बात तम्बाकू का सेवन न करें, दूसरा अपना वजन नियंत्रित रखें, तीसरी बात नयी स्‍टडी में सामने आया है कि अल्‍कोहल की थोड़ी मात्रा भी सुरक्षित नहीं है, इसलिए इसका सेवन बंद करना होगा तथा चौथी बात खाने में हरी सब्जियों और फल का सेवन अवश्‍य करें। डॉ राजेश मिस्त्री ने फेफड़े के कैंसर में दूरबीन विधि और रोबोटिक सर्जरी के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस विधि से मरीज का उपचार किए जाने से वह पहले के मुकाबले जल्दी स्वस्थ होता है।

 

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट ने फेफड़े के कैंसर के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए इसके लिए मुख्य रूप से धूम्रपान को जिम्मेदार बताया। कुलपति ने बताया कि धूम्रपान से होने वाले नुकसान के प्रति आम लोगों को विभिन्न योजनाओं एवं जागरूकता अभियान चलाए जाने के बावजूद ज्यादातर लोग इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में फेफड़े के कैंसर के उपचार के लिए कई उन्नत तकनीक उपलब्ध हैं और अगर इस बीमारी के बारे में सही समय पर पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है।

 

जल्‍दी पकड़ में आ जाये तो उपचार आसान

केजीएमयू सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरुण चतुर्वेदी ने फेफड़े के कैंसर के कारणों तथा उसके निदान व उपचार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यदि फेफड़े के कैंसर के बारे में जल्द जानकारी हो जाए तो उसका उपचार करने में आसानी होती है और मरीज को भी जटिल चिकित्सा प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता है।

केजीएमयू में बिना दर्द दूरबीन विधि से ऑपरेशन हो रहा

कार्यक्रम का संचालन करते हुए आयोजन सचिव डॉ शिवराजन ने बताया कि फेफड़े के कैंसर का शुरुआती चरण में ऑपरेशन करके मरीज को कैंसर मुक्त किया जा सकता है और यह ऑपरेशन अब केजीएमयू में दूरबीन विधि से बिना दर्द के संभव है।

 

बॉन्‍कोस्‍कोपी से जल्‍द पता लगाना संभव

केजीएमयू श्वांस विभाग के डॉ राजीव गर्ग ने फेफड़े के कैंसर में ब्रॉन्‍कोस्‍कोपी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस विधि के माध्यम से फेफड़े के कैंसर में बारे में जल्द पता लगाया जा सकता है, जिससे मरीज के उपचार में आसानी होती है। इस अवसर पर एसजीपीजीआई लखनऊ से आए डॉ नीरज रस्तोगी ने कीमो रेडियोथेरेपी एवं राम मनोहर लोहिया संस्थान, लखनऊ से आए डॉ गौरव गुप्ता ने कीमोथेरेपी के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस विधि के द्वारा मरीज रोग मुक्त रह सकता है।

 

डॉ राम मनोहर लोहिया संस्थान की प्राचार्य नुजहत हुसैन ने फेफड़े के कैंसर के बारे में विस्तार से चर्चा की। अपोलो मेडिक्स अस्पताल, लखनऊ से आए डॉ कुमार नरवेश ने भी सीटी और पीईटी स्‍कैन के महत्व के बारे में जानकारी दी। इस मौके पर अलग-अलग टॉपिक पर हुए प्रेजेन्‍टेशन के चेयरपर्सन के रूप में पल्‍मोनरी विभाग के हेड डॉ सूर्यकांत, डॉ नरवेश कुमार, डॉ नुजहत हुसैन, डॉ राजेश मिस्‍त्री, डॉ नीरज रस्‍तोगी तथा डॉ गौरव गुप्‍ता भाग लिया।