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पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए पर्यावरणीय क्लीनिक जरूरी

लखनऊ। मानव जनसंख्या पर पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए पर्यावरणीय क्लीनिक स्थापित करना आवश्यक है। यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रविकांत ने कही। वे आज यहाँ देश के प्रमुख विषविज्ञान संस्थान सीएसआईआर- भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान आईआईटीआर, लखनऊ में ‘पर्यावरण प्रदूषण: महिला और बाल स्वास्थ्य पर प्रभाव पर मंथन’ पर आयोजित कार्यक्रम में उद्घाटन भाषण दे रहे थे।

फ्लोरोसिस, आर्सेनिक विषाक्तता, ब्रोन्कियल अस्थमा आदि त्रासदियों से निपटने पर जोर 

प्रोफेसर रवि कांत ने कहा कि अतीत में इस समस्या पर कई विचार-विमर्श के बावजूद वांछित परिणाम नहीं मिले हैं। अब समय आ गया है कि इस दिशा में प्रभावी रूप से कार्य किया जाए। उन्होंने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि फ्लोरोसिस, आर्सेनिक विषाक्तता, ब्रोन्कियल अस्थमा आदि त्रासदियों से निपटने और सुधारने के लिए सभी प्रयासों को आगे बढ़ाया जाए, जो पर्यावरणीय कारकों द्वारा जनित होती हैं।

इन क्षेत्रों में हों सुधार के उपाय

अपने संबोधन में प्रोफेसर पी के मिश्रा, प्रिंसिपल किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ने कहा कि महिलाओं और बच्चों की संख्या आबादी का दो तिहाई है और इस समुदाय की सुरक्षा पूरी आबादी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में काफी मददगार होगी। विभिन्न उपाय  जैसे सार्वजनिक परिवहन की बुनियादी सुविधाओं को सुदृढ़ करना, भोजन संदूषण को रोकना, जनता को शिक्षित करना और कचरे का सुरक्षित निपटान इत्यादि पर्यावरणीय क्षति को कम करने के उद्देश्य को बल प्रदान कर सकते हैं।
डॉ सी एस नौटियाल, अध्यक्ष, नासी  लखनऊ अध्याय ने कहा कि इस सत्र से उत्पन्न अनुशंसाएं आईसीएमआर को भेजी जाएंगी और परिणामस्वरूप इस समस्या से निपटने के  नए द्वार खुलेंगे।

रोका जा सकता है 3 करोड़ लोगों की मौत को

प्रोफेसर पी के सेठ, वरिष्ठ वैज्ञानिक नासी और पूर्व सीईओ, बायोटेक पार्क, लखनऊ ने कहा कि हालांकि पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के क्षेत्र में कई वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं पर इस समस्या के प्रभावी समाधान के लिए नासी और अन्य विज्ञान अकादमियों ने सभी भागीदारों को एक ही मंच पर लाने की आवश्यकता महसूस की। उन्होने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि लगभग सभी बीमारियाँ पर्यावरणीय कारणों से जुड़ी हैं और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार कर विश्व भर में लगभग 3 करोड़ लोगों की मौत को रोका जा सकता है।
इसके पूर्व संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन ने सभा का स्वागत करते हुए कहा कि इस  संस्थान की स्थापना पर्यावरण और पर्यावरण विष विज्ञान से निपटने के उद्देश्य से की गई थी और इसी उद्देश्य से पर्यावरण प्रदूषण पर मंथन सत्र का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस सत्र के परिणाम पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के लिए एक विजन दस्तावेज तैयार करने में तथा विभिन्न विज्ञानों और हितधारकों/ विषय विशेषज्ञों के एकीकरण करने में सहायक सिद्ध होंगे।

देश भर के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का जमावड़ा

इस सत्र में चेन्नई, बेंगलुरु, नई दिल्ली, चंडीगढ़, कोलकाता, इलाहाबाद और लखनऊ के विशेषज्ञ चिकित्सक, न्यूरोलॉजिस्ट और स्वास्थ्य वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। इसके अलावा इस सत्र में  आईआईटी के पर्यावरण वैज्ञानिक, पर्यावरण कानून के विशेषज्ञ, एनजीओ के सदस्य और समाज के विभिन्न वर्गों के सदस्य भी भाग ले रहे हैं। इस अवसर पर डॉ॰ नित्यानंद, डॉ॰ बी एन धवन, डॉ वी पी कांबोज, डॉ॰ बारिख, डॉ पी एस चौहान, प्रोफेसर प्रमोद टंडन जैसे कई वैज्ञानिक दिग्गज भी उपस्थित थे। इस सत्र के दूसरे दिन ‘पर्यावरण प्रदूषण पर महिला और बाल स्वास्थ्य पर प्रभाव – भविष्य की रणनीति’ पर एक परिचर्चा आयोजित की जाएगी।
डॉ॰ विनय के खन्ना, संयोजक और वरिष्ठ मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर – भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।

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